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कविता: “हम आदिवासी, प्रकृति निवासी”

An Ao tribesman in his village in Nagaland. (Photo: Wikimedia Commons)

आदिवासी

“आदि” “वासी” नाम में ही सार छिपा है

आदिकाल के निवासी।

 

किसी ने यह शब्द बड़े सोच विचार के इजात किया,

इस शब्द से ही सबकुछ वयक्त हो जाता है।

आदि काल का इतिहास,

जल,जंगल,जमीन का सार,

कला – संस्कृति का रंग,

सार्थकता लिए निवासी क्षेत्र का निर्माण।

 

हमारे जीवन का राज़ यही जल, जंगल,ज़मीन

जिसकी सार्थकता हम दिन प्रतिदिन खोते चले जा रहे हैं।

जिसकी कदर करना हम छोड़ते चले जा रहे हैं,

शान – शोहरत की दुनिया में बढ़ते चले जा रहे हैं,

जाने-अनजाने में प्रकृति को नुकसान पहुंचाते चले जा रहे हैं

ज़रा ठहरिये जनाब।

एक पल सांस तो आराम से लीजिए

अब ज़रा सोचिए क्या कर रहे हैं ?

“आप”, “मैं” और “हम”।

 

प्रकृति निवासियों को विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं

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