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“सना मुफ्ती, क्या कश्मीरियत का मतलब सिर्फ कश्मीरी मुसलमान है?”

सना मुफ्ती और महबूबा मुफ्ती

सना मुफ्ती और महबूबा मुफ्ती

प्यारी बहन सना मुफ्ती, खुश रहो। जब से मुझे पता चला कि आपने राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करने के बाद इंग्लैंड की वॉरविक यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय संबधों में मास्टर्स किया है लेकिन आप ज़्यादातर समय कश्मीर में ही रहती हैं, तो सुनकर बहुत खुशी हुई। यह सुनकर थोड़ा दुःख हुआ कि आप अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म किए जाने से काफी नाराज़ हो और आपको यह डर है कि इसके हटने से कश्मीरी संस्कृति तबाह हो जाएगी।

पता है सना, मेरे पास अंतर्राष्ट्रीय संबधों की कोई डिग्री नहीं है मगर आपसी सम्बन्धों के मामले में इतना पता है कि पड़ोस में रहने वाले इरशाद के परिवार को जब कोई दिक्कत होती है, तो सबसे पहले हम उसके घर जाते हैं। हमारे यहां भी अगर कुछ हो तो वह भी पीछे नहीं रहते। इससे हमारी या इरशाद की संस्कृति खत्म हुई, बल्कि समय के साथ और गाढ़ी हो गई।

संस्कृति रूह से महसूस की जाती है

सना, मेरा मानना है कि चार किताबें पढ़ लेने से या डिग्री ले लेने से संस्कृतियों का ज्ञान नहीं होता। किसी संस्कृति का ज्ञान तब होता है, जब हम उसे रूह से महसूस करते हैं। अब जिस संस्कृति के खत्म होने का आप लोग रोना रो रहे हैं, वह तो अस्सी-नब्बे के दशक में ही खत्म हो गई थी। उस संस्कृति की लाश को क्या बचाना?

फोटो साभार: pixabay

हां, सना इतना ज़रूर है कि आप कभी कश्मीर से निकलकर हिन्दुस्तान के अन्य हिस्सों में स्थित घरों में जाओगे, तो अपनी कश्मीरी संस्कृति का पता चलेगा कि लोग उससे कितना प्यार और सम्मान करते हैं। पता है सना, शेष भारत से जो भी कश्मीर जाता है, चाहे पुरुष हो या महिला वह कश्मीरी ड्रेस पहनकर एक फोटो ज़रूर लेकर आता है। उसे अपनी ड्रॉइंग रूम में सजाता है फिर प्यार और गर्व से बताता है कि यह फोटो तब की है, जब हम कश्मीर गए थे।

सना, इससे पता नहीं आपकी संस्कृति और सभ्यता को क्या खतरा हो जाता है मगर दुनिया की अनेकों संस्कृतियां इस उम्मीद में जी रही हैं कि उनकी संस्कृति का भी ऐसे ही प्रचार हो। शायद आपने कुछ किताबें पढ़ीं, अपने नाना और माँ के कुछ भाषण सुने और इसे ही संस्कृति समझ लिया। यदि तुम्हें संस्कृति को जानना हो तो एक बार भारत भ्रमण करो, तब इस देश को समझ पाओगी। 

गानों में देखकर लगता था कश्मीर जन्नत है

आज बिहार में पंजाब के गीत बज रहे होते हैं, तो पंजाब में भोजपुरी गीत। शादी चाहे कहीं भी हो लेकिन जब तक हरियाणवी गाने डीजे पर नहीं बजते, नाचने वालों को बिल्कुल मज़ा नहीं आता। सना, इससे ना कभी पंजाबियत खतरे में आई और ना बिहार की संस्कृति खत्म हुई। इसी तरह बाकी राज्यों के गीत, खाना और पहनावा दूसरे राज्यों में पहुंचा।

सना मुफ्ती और महबूबा मुफ्ती। फोटो साभार: Twitter

सना, नब्बे के दशक से पहले शायद ही कोई भारतीय फिल्म ऐसी होगी, जिसका कोई गीत कश्मीर घाटी में ना फिल्माया गया हो। उस समय हम छोटे थे, सप्ताह में बुधवार और शुक्रवार को जब दूरदर्शन पर चित्रहार या रविवार को रंगोली के गानों में बर्फ से ढकी चोटियां, ऊंचे लहराते चिनार के पेड़ और खुबसूरत वादियां दिखाई जाती थीं, तब एहसास होता था कि वाकई कश्मीर धरती की जन्नत है।

रक्तरंजित संस्कृति चाहिए या घुली-मिली संस्कृति?

अचानक 90 के दशक में धरती की जन्नत में एक मज़हबी आग लग गई और देखते-देखते चिनार के पेड़ जल उठे। सफेद बर्फ से ढ़की चोटियां रक्त की छींटों से लाल हो गईं। आज टीवी पर घाटी देखते हैं तो पत्थरबाज़ों और आंतकी संगठनों के पोस्टर के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता है। सना, क्या आप बता सकती हैं कि आपकी माँ समेत घाटी के अनेकों नेता इसी रक्तरंजित संस्कृति को बचाना चाहते हैं या वह नब्बे से पहली घुली-मिली संस्कृति चाहते हैं?

महबूबा मुफ्ती। फोटो साभार: Getty Images

सना, तुम्हारी अम्मी कह रही है कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्ज़े को हटाने के फैसले से कश्मीर के नौजवान बहुत नाराज़ हैं और ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। अब सना कम-से-कम आप ही उन्हें समझाइए कि यह कोई ठगी नहीं है। असली ठगी तो वह थी जब लाखों लोग रातों-रात घर छोड़ने को मजबूर किए गए थे।

सना, शायद आप तब छोटी रही होंगी, जब इसी कश्मीरियत का राग अलापने वाले चुप हो गए थे और खुबसूरत वादियों में नफरत के पर्चे बांटे जाने लगे थे। कश्मीरी हिन्दुओं को यह तक कहा गया कि अपनी माँ-बहन और बेटी को छोड़कर घाटी से चले जाओ।

कश्मीरियत का मतलब क्या है?

सर्वधर्म की प्रेम स्थली हिजबुल और लश्कर दुश्मन आतंकी संगठनों का ठिकाना बन गई। जहां हिन्दू, जैन, सिख बौद्ध और मुसलमान मिलकर रहते थे। उस समय आज की तरह वीडियो ले पाना सहज नहीं था, इसलिए उनके साथ पता नहीं और क्या-क्या हुआ होगा लेकिन जब विस्थापित कश्मीरी हिन्दू, सिख और बौद्ध उस समय की कहानी बताते हैं, तब आंखे ज़रूर नम हो जाती हैं।

सना, जब आप कश्मीर को जन्नत कहती हो, तो यह भी जानती होंगी कि जन्नत खुदा के घर को कहा जाता है। क्या खुदा के घर में इतना भेदभाव है कि वहां सिर्फ एक मज़हब के लोग ही रह सकते हैं? क्या जन्नत में आतंकी संगठनों के दरवाज़े खुले हैं? सना, आप यह भी बताना कि क्या खुदा के घर में ज़रा सी भी धर्मनिरपेक्षता नहीं है और क्या कश्मीरियत का मतलब सिर्फ कश्मीरी मुसलमान हैं?

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