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“Zomato केस में दिखी नफरत की नींव व्हाट्सऐप के ज़रिए हो रही है तैयार”

अभी जो एक ज़ोमैटो के साथ घटना घटी उससे सभी वाकिफ होंगे ही। कोई व्यक्ति खाना ऑर्डर करता है, फिर उसे लेने से सिर्फ इसलिए मना कर देता क्योंकि उसे डिलीवर करने वाला लड़का गैर हिन्दू है, या किसी विशेष समुदाय से ताल्लुक रखता है।

कुछ इसी तरह की घटना कुछ समय पहले भी घटित हुई थी, जब कैब ड्राइवर के मुस्लिम होने के कारण एक व्यक्ति ने कैब कैंसिल कर दी थी। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस तरह की मानसिकता को जन्म दे कौन रहा है? इस तरह की मानसिकता आ कहां से रही है?

बहरहाल, इसपर बात बाद में करेंगे पहले कुछ सवाल है जो मैं पूछना चाहूंगा, उन तमाम लोगों से जो इस तरह की मानसिकता रखते हैं।

अब बात करते हैं कि आखिर इस तरह की नफरत आ कहां से रही है-

अभी कुछ दिन पहले की बात है, मैं दिल्ली मेट्रो में था, मेरे बराबर में एक भाईसाहब बैठे हुए मोबाइल चला रहे थे। मैले कपड़ों से साफ प्रतीत हो रहा था कि भाईसाहब काम से लौट रहे हैं। कुछ देर बाद मेरी नज़र उनके मोबाइल पर जा रुकी। उनके फोन में व्हाट्सऐप का एक ग्रुप खुला हुआ था, जिसमें वह एक के बाद एक मैसेज को सेलेक्ट कर रहे थे।

मैं थोड़ा और ध्यान लगाकर उन मैसेज को पढ़ने लगा, तो मेरे होश उड़ते-उड़ते रह गए। एक से बढ़कर एक काल्पनिक घटनाएं, अफवाहें जो कभी हुई ही नहीं। मुस्लिमों ने ऐसा कर दिया, मुस्लिमों ने वैसा कर दिया। मतलब मुझे पढ़ते-पढ़ते लगने लगा जैसे अब कुछ बचा ही नहीं है।

इन मुस्लिमों ने सबकुछ खत्म कर दिया और ये लोग एक-एक करके सबको मार रहे हैं। मेरा नंबर भी आने ही वाला है। अभी मेट्रो का दरवाज़ा जैसे ही खुलेगा कोई दाढ़ी कुर्ते वाला व्यक्ति बड़ी सी बंदूक से सबको मारेगा या उसके हाथ में बड़ा सा छुरा टाइप होगा या बम भी फेंका जा सकता है।

कुछ मैसेज मुझे अभी भी याद है। जैसे-

और भी बहुत सारे लंबे-चौड़े मैसेज थे, जिनमें फर्ज़ी आकड़ें, झूठी घटनाएं, किसी में मुस्लिमों से कोई वस्तु ना खरीदने की हिदायत थी। ज़्यादातर मैसेज में किसी समुदाय विशेष से एक काल्पनिक डर दिखाया जा रहा था। वह उन सभी मैसेज को सलेक्ट करने में लगे हुए थे। मुझे लगा डिलीट करेंगे लेकिन उन्होंने डिलीट ना करके उन मैसेज को दूसरे ग्रुप्स में भेज दिया। इतने में मेरा स्टॉप आ चुका था। मैं रास्ते भर इसी घटना की बारे में सोचता रहा।

 

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