पूंजीवाद जब कभी किसी क्षेत्र में पहुंचा है, उसने अपनी नींव जमाने के लिए वहां की सांस्कृतिक जड़ें खोद कर रख दी हैं। आपकी मिट्टी पर आपके संसाधनों को आपसे छीनकर, खुद पर आश्रित कर, वह आपके ही चीज़ों को आपको बेचकर चला जाता है और आपके पास सिवाए एक बर्बाद हो चुकी सभ्यता के अलावा और कुछ भी नहीं बचता।
पूंजीवाद या औद्योगिकी कभी भी अकेले नहीं आता। वह अपने साथ अपना नशा और संस्कृति लेकर आता है। भारत सालों तक गुलाम रहा है और आप खुद देख पाएंगे कि इस गुलामी का एक असर यह है कि आज कुछ गिने-चुने आदिवासी या बहुत पुराने गाँवों में ही भारतीयता बची हुई है। वेस्टर्न तो हम कब का हो चुके हैं।
हमारे गाँव की सभ्यता और संस्कृति को पूंजीवाद ने हमसे छीना और एक बड़ा सा रेस्टोरेंट बनाकर उसी संस्कृति को हमें बेच दिया। पिंड बलूची के बाहर देसी लिबास में बैठे ताऊ के बगल में फोटो खिंचवाते वक्त आपको यह ख्याल कभी आया, नहीं ना?
अनुच्छेद 370 हटाने का मकसद
अब आते हैं, कश्मीर पर। मैं थोड़े में ही बहुत कुछ कहने की कोशिश करता हूं और उम्मीद करता हूं कि आप समझेंगे। वैसे भी जिस जनता को हर बात कहकर समझानी पड़े, उससे अच्छा है कि उसका पतन हो जाए। खैर, राष्ट्रवाद की आड़ में यह ध्यान रहे कि अनुच्छेद 370 कश्मीर से अलगाववाद और आतंकवाद मिटाने के लिए हटाया गया है, कश्मीरियत को खत्म करने के लिए नहीं।
बेशक आपको दिखाया जा रहा है कि अलगाववादी रो रहे हैं और आतंकवाद की कमर टूटने वाली है लेकिन जो आपको नहीं दिखाया जा रहा, वह यह कि कल को कश्मीर में भी पूंजीवाद पहुंचेगा। कहीं ऐसा ना हो कि छत्तीसगढ़ की तरह वहां की भी हरियाली पर किसी अडानी अंबानी के इंडस्ट्री की धुंध चढ़ने लगे। छोटे-छोटे कश्मीरी ढाबों की जगह बड़े-बड़े होटल खुलने लगे फिर वही कश्मीरी, वेटर और नौकर बनकर उन होटलों में कश्मीरियत परोसने को बाध्य हो जाए।
‘डल झील’ का हाल देश के बाकी तलाबों की तरह ना हो जाए। हाथ से खेवे जाने वाले नावों और शांत हिमालय के झील में कल-कल करते पतवारों की जगह कोई स्टीमर बोट ना ले ले।
कश्मीर होगा लेकिन कश्मीरियत नहीं
कश्मीर को कश्मीर रहने देना। उसे दिल्ली या मुंम्बई बनाने की कोशिश मत करना, हालांकि यह होगा नहीं। पूंजीपतियों ने तो होटल्स और इंडस्ट्री लगाने के लिए सरकार को मोटा कमीशन भेज भी दिया होगा। आप झंडा घुमाइए लेकिन बस इतना ज़रूर कीजिएगा कि कल को अगर कश्मीरी अपने प्रदेश में अपनी रोज़ी-रोटी बचाने के लिए विकास का विरोध करते दिखें, तो सरकार से दो सवाल आप भी ज़रूर पूछिएगा।
यदि आपने ऐसा नहीं किया तब यकीन मानिए कुछ सालों में आपको कश्मीर तो दिखेगा लेकिन कश्मीरियत नहीं दिखेगी। अगर यकीन ना हो तो बिरसा मुंडा के आंदोलन की वजह पढ़िये। आदिवासियों ने जब विकास का विरोध किया था, तब उन्हें राष्ट्रद्रोही कहा गया। आज उनके हम उपले और पूत्तों से बनी थालियां अमेज़न और फ्लिपकार्ट से खरीद रहें हैं, जो कभी हमारा ही था।