प्रसिद्ध कहावत है, “बड़ी मछली अक्सर छोटी मछलियों को खा जाती है”। मौजूदा लोकसभा सत्र में तीन तलाक कानून, आर्टिकल 370 जैसे बड़े बिलों ने उस बिल को पूरी तरह निगल लिया, जिससे मुल्क के हर इंसान का राफ्ता है।
31 जुलाई 2019 को लोकसभा से पास हुआ “मोटर वाहन संशोधन विधेयक” मुल्क के हर इंसान से जुड़ा हुआ वह बिल है, जिसपर अखबारों के पन्ने रंगे जाने चाहिए थे, जिससे लोगों को सही जानकारी मिल सके। मुख्यधारा मीडिया की इस गंभीरता से समझ सकते हैं कि वे सड़कों पर नागरिक सुरक्षा के लिए कितनी चिंता करती है?

इस बिल पर इसलिए सबसे अधिक बातचीत होनी चाहिए, क्योंकि सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय की “रोड एक्सीडेंट्स इन इंडिया रिपोर्ट 2014” के अनुसार 1.5 लाख लोगों की मौत सड़क दुर्घटना के कारण होती है, क्योंकि दुर्घटना में घायल लोगों को सही समय पर पैसे के अभाव में इलाज नहीं मिल पाता है।
- मौजूदा बिल दुर्घटना में घायल को कैशलेस इलाज का इतंज़ाम करेगी, जिससे बहुत सारी ज़िन्दगियां बचाई जा सकती हैं।
- इसके साथ-साथ टक्कर मारकर भाग जाने के मामले में भी न्यूनतम मुआवज़े को बढ़ा दिया गया है।
- दुर्घटना में मौत होने पर पच्चीस हज़ार से दो लाख रुपये देने का प्रावधान किया गया है और
- गंभीर चोट आने पर बारह हज़ार से बढ़ाकर पचास हज़ार रुपया देने का प्रावधान है।
- इसके साथ-साथ विधेयक में मोटर वाहन दुर्घटना कोष बनाने की योजना भी शामिल की गई है, जो भारत में सड़क का प्रयोग करने वाले सभी लोगों को स्वत: बीमा कवर करेगी।
- विधेयक नियम तोड़ने पर मसलन नशे में वाहन चलाने, बिना लाइसेंस के वाहन चलाने, गति सीमा से अधिक वाहन चलाने, बिना सीट बेल्ट, बिना हेलमेट वाहन चलाने, वाहन चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल पर ज़ुर्माना राशि बढ़ाने की वकालत करता है, अब इसमें दस प्रतिशत वृद्धि की गई है।
- वाहन नियम तोड़ने या दुर्घटना करने पर अभिभावक या वाहन मालिक पर ज़ुर्माना लगाया जाएगा और सज़ा का प्रावधान भी शामिल है।
सड़क निर्माण में खामियों के कारण हादसों के लिए कंपनी के इंजीनियरों की जवाबदेही भी तय की गई हैं।
ग्रामीण इलाकों के लिए विधेयक में बात नहीं
विधेयक को देखकर यही लगता है कि सरकार “सड़क सुरक्षा, जीवन रक्षा” की नीति पर काम करना चाहती है लेकिन ग्रामीण इलाकों में वाहन चलाने में जो लापरवाही बरती जाती है, उसपर नियंत्रण की कोई बात इस विधेयक में नहीं है।
भारत में ग्रामीण इलाकों में बिना लाइसेंस गाड़ी चलाने का ही नहीं गाड़ियों से जुड़ी हर चीज़ का एक अलग तंत्र है, जिसपर सकरार का कोई नियंत्रण नहीं है। इस लापरवाही के कारण राष्ट्रीय राज्यमार्गों पर कई दुर्घटनाएं होती हैं, इसपर नियंत्रण के मामले पर विधेयक निराश करते हैं।
प्रदूषण नियंत्रण की समस्या का कोई प्रावधान नहीं
विधेयक में प्रदूषण नियंत्रण की समस्या पर कोई प्रावधान नहीं है, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि देश में दस-बीस साल से ऊपर के वाहनों की भड़मार है, जो प्रदूषण बढ़ाने में सहयोग करते हैं, इसपर नियंत्रण आवश्यक है।
विधेयक राज्य सरकार के साथ सहयोग के मामले में भी उलझा हुआ है, जबकि इस पुल को ही सबसे अधिक भरोसेमंद बनाने की ज़रूरत है। इस बिल को लेकर राज्य सरकारों में अच्छा-खासा गतिरोध है, इसपर सबसे अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि “सड़क सुरक्षा, जीवन रक्षा” जैसे कार्यक्रमों के सफल होने के लिए केंद्र और राज्य की एजेंसी के बीच सहयोग होना पहली ज़रूरत है, इसको नज़रअदांज नहीं किया जा सकता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि “सड़क सुरक्षा, जीवन रक्षा” यह केवल एक पंचलाइन नहीं है, यह लोगों के जीवन से जुड़ा मामला है। सड़कों पर अपने निजी वाहन का इस्तेमाल करने वाले हर नागरिक को अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्वयं भी उठानी पड़ेगी, क्योंकि स्वयं से की जा रही लापरवाही का जवाब भी स्वयं को ही देना पड़ता है। हम अगर स्वयं सचेत हो तो हादसे रोक भी सकते हैं।