कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अभूतपूर्व फैसले का जहां एक ओर खुले दिल से स्वागत हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ कुछ अराजक और तुच्छ मानसिकता के लोग कश्मीरी बहन-बेटियों पर बेहूदा एवं अश्लील टिप्पणी कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं। हमारी संस्कृति में बेटी कश्मीर की हो या कन्याकुमारी की, वह हमारे लिए उतनी ही सम्मानीय है।
ऐसी टिप्पणी करने वाले उसी कुंठित मानसिकता से ग्रसित हैं, जो महिलाओं को सिर्फ संभोग की वस्तु के रूप में देखते हैं। ऐसे लोगों को पहचानिए और इनका सामाजिक बहिष्कार कीजिये, क्योंकि ये अराजक तत्व कभी राष्ट्र हितैषी नहीं हो सकते हैं।
इतिहास गवाह है कि सशस्त्र बलों की ताकत से अस्थायी शांति कायम की जा सकती है परन्तु कश्मीर में स्थायी तौर पर शांति बहाली का रास्ता आत्मिक जुड़ाव और परस्पर प्रेम की भावना के द्वार से ही होकर गुज़रता है।
हमारा यह जानना भी ज़रूरी है कि इस समय कश्मीर में इंटरनेट टीवी और संचार के अन्य माध्यम बन्द हैं, धारा 144 लागू है, कश्मीर के बड़े नेताओं को नज़रबंद करके रखा गया है। आखिर कब तक ताकत के बल पर इस तरह का माहौल बनाया जा सकता है?
केंद्र सरकार ने कश्मीरियों को बिना विश्वास में लिए हुए संवैधानिक व्यवस्था के लूप होल के बल पर अनुच्छेद 370 खत्म कर दी है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीरियत के बिना कश्मीर मात्र एक ज़मीन के टुकड़े से ज़्यादा कुछ नहीं है।
कश्मीरियत वहां के रहने वाले लोगों के दिल-ओ-दिमाग का वह अभिन्न हिस्सा है, जो उन्हें स्वयं को सिर्फ कश्मीरी से अधिक कुछ नहीं मानने देता है, जिसके बिना कोई कश्मीरी अपने वजूद की कल्पना नहीं कर सकता है। अगर आपको कश्मीर की पूरी लड़ाई जितनी है, तो कश्मीरी भाइयों-बहनों के दिलों को भी जीतना होगा, जिसके लिए वहां की बहनों-बेटियों को सम्मान देना होगा, युवाओं को गले लगाकर मुख्यधारा से जोड़ने का काम करना होगा।
इस संवेदनशील समय में हर हिंदुस्तानी को अपना फर्ज़ निभाना होगा, तभी हिन्दुस्तान के नक्शे की बॉर्डर लाइन कागज़ों से निकलकर कश्मीरियों के दिलों में भी अपनी जगह बना पाएगी।