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अंधविश्वास की आड़ में मासूम बच्चों तक की चढ़ा दी जाती है बलि

आज 21वीं सदी में भी देश में अनेक लोग अंधविश्वास में यकीन करते हैं। ऐसे लोग अक्सर बाबाओं, साधुओं, तांत्रिकों के बहकावे में आकर अपना धन, जान और इज़्ज़त गंवा बैठते हैं। यही नहीं उनके बहकावे में आकर लोग दूसरों की जान भी ले लेते हैं।

सात साल की बच्ची को गर्म लोहे से दागा

पिछले महीने गुजरात के बनासकांठा ज़िले में अंधविश्वास की शिकार बनी। एक सात महीने की बच्ची की बीमारी के इलाज के लिए उसे गर्म लोहे से दाग दिया गया। बाद में उसे सेप्टिक हो गया।

बच्ची का इलाज करने वाले डॉक्टर ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस दुधमुंही बच्ची को दिल की बीमारी थी और एक सप्ताह पहले उसके माता-पिता लखानी क्षेत्र में इलाज के लिए उसे ले गए, जहां उसका कथित इलाज करते हुए गर्म लोहे से दाग दिया गया। उसके इस घाव में सेप्टिक हो गया और उसकी हालत बिगड़ गई।

इस ज़िले में इस महीने अंधविश्वास का यह दूसरा मामला सामने आया है। गत दो जून को इसी तरह की घटना में वाव तालुके के वसेडा गांव में एक बच्चे की मौत हो गई थी।

बच्चे की दी बलि

अंधविश्वास की ऐसी ही दिल दहलाने वाली खबर तेलंगाना के हैदराबाद से आई, जहां एक शख्स ने एक बच्चे की बलि दे दी। इस घटना ने पूरे समाज को सकते में डाल दिया है। एक तांत्रिक के कहने पर उस शख्स ने चंद्र ग्रहण के दिन पूजा की और बच्चे को छत से फेंक दिया। तांत्रिक ने उसे कहा था कि ऐसा करने से उसकी पत्नी की लंबे समय से चली आ रही बीमारी ठीक हो जाएगी। तेलंगाना पुलिस बच्चे के शव की तलाश कर रही है।

पड़ोसी के बच्चे की दी बलि

आपको बता दे कि यह कोई पहली या दूसरी ऐसी वारदात नहीं है, जिसमें अंधविश्वास के कारण बच्चों की बलि दी गई है। बीते दिनों असम के उदालगुड़ी ज़िले के कलाईगांव से अंधविश्वास के चक्कर में पड़ोसी के बच्चे की बलि देने का मामला सामने आया था। हर कोई यह घटना सुनकर चौंक गया था कि कलाईगांव के सरकारी स्कूल में विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक जादव सहरिया ने अपने पड़ोसी के बच्चे की बलि देने की कोशिश की। 

आरोपी शिक्षक ने बलि देने से पहले घर और वाहनों में आग लगा दी थी, इससे गांव वालों को घटना का पता चला। पुलिस मौके पर पहुंची तो यह देखकर चौंक गई कि शिक्षक के परिवार के लोग और तांत्रिक क्रिया में भाग लेने वाले सभी लोग नंगे थे। आरोपियों ने पुलिस पर जानलेवा हमला कर दिया। पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। संघर्ष में जादव सहरिया और उसके बेटे पुलकेश को भी गोली लगी। पुलकेश की अस्पताल में मौत हो गई थी।

तंत्र-मंत्र के जाल में फंसने की ऐसी कितनी कहानियां हमारे देश में हैं, जहां एक छोटे से अंधविश्वास के कारण लोग दूसरों की जान तक ले लेते हैं। अंधविश्वास के कारण बच्चे ही नहीं, बल्कि कितनी औरतों को भी जान से मार दिया गया है।

अंधविश्वास की भयावह परिणति हत्याओं में होती है

संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुछ सालों पहले एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें भारत में 1987 से 2003 तक 2,556 महिलाओं को डायन या चुडैल कहकर मार देने की बात कही गई थी। इस तरह की हत्या करने के मामले में झारखंड सबसे आगे है। दूसरे नंबर पर ओड़िशा और तीसरे नंबर पर तमिलनाडु है।

एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2011 में 240, 2012 में 119, और 2013 में 160 हत्याएं अंधविश्वास के नाम पर की गई। अकेले झारखंड में 2001 से 2015 तक 400 महिलाओं की हत्या अंधविश्वास से प्रेरित होकर की गई।

एक तरफ देश जहां तेज़ी से विकास के पथ पर गतिमान है, वहीं अंधविश्वास की वजह से मासूम बच्चों और औरतों को जान से मारने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। यह हमारे लिए बहुत ही शर्म की बात है कि हम 21वीं सदी में रहकर और इतने पढ़े-लिखे होकर भी इन सब पर भरोसा करते हैं।

लोगों का यही अंधविश्वास उन्हें इस मोड़ पर ले जाकर खड़ा कर देता है, जहां कोई भी ढोंगी बाबा उनके भले का हवाला देकर उनको बलि या हत्या के लिए उकसा देता है। इसके पीछे लोगों से धन ऐंठने से लेकर उनके घर, ज़मीन पर कब्ज़ा करने का लालच होता है, अब तो ये महिलाओं के शारीरिक शोषण के लिए भी अंधविश्वास का सहारा लेते हैं।

आपको बता दे कि अंधविश्वास से कभी किसी तरह का कोई फायदा नहीं होता है। सिर्फ नुकसान ही होता है, इसलिये अंधविश्वास के चक्कर में ना ही खुद पड़ना चाहिए और ना ही दूसरों को पड़ने देना चाहिए।

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सोर्स- https://bit.ly/2O3V6Em, https://bit.ly/2GjOkEt

 

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