3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक, यानी करीब 3 महीने चले भारत और पाकिस्तान के युद्ध को 20 वर्ष पूरे हो रहे हैं, जिसमें भारत की जीत हुई थी। इसे ”ऑपरेशन विजय” के नाम से जाना जाता है और इस “ऑपरेशन विजय” को अंजाम देते हुए 550 भारतीय सेना के जवानों ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और 1400 जवान घायल हुए।
वीरतापूर्ण बलिदान को देश 2 दशक बाद अपनी नम आंखो से श्रद्धांजलि दे रहा है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा रक्षा मंत्री से लेकर आम नागरिक तक, कोई भी अपने वीर सपूतों को नमन करने में पीछे नहीं है। यह सेना का देश के प्रति निस्वार्थ रक्षा का जज़्बा ही है जो देश के प्रत्येक नागरिक में सेना और सैनिकों के प्रति आदर और सम्मान का भाव उत्पन्न करता है।
खुद को भारतीय साबित करने की लड़ाई
हम भारतीय सेना के खिलाफ़ एक शब्द भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो, उसे समाज के सामने बेइज्ज़त होना पड़ता है और लगातार “देशद्रोही” जैसे तमगों से उनका सत्कार किया जाता है। लेकिन हाल ही में असम में सामने आए एक मामले ने हमारे सामने कुछ अपवाद भी पेश किए हैं।
करगिल में भारत की ओर से लड़ने वाले रिटायर्ड मेजर मोहम्मद सनाउल्लाह को असम में इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उनका नाम, राष्ट्रीय नागरिक सूची यानी “नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस” में नहीं था और इस सूची में नाम ना होने पर व्यक्ति को “विदेशी” घोषित कर दिया जाता है। जो कि शुरू से ही विवादित विषय है। इस तरह मोहम्मद सनाउल्लाह को भी “विदेशी” घोषित कर दिया गया और “विदेशी” होने के इस जुर्म में उन्हें कई दिनों तक जेल में रखा गया।
जब देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले पर संज्ञान लिया तो मोहम्मद सनाउल्लाह को रिहा किया गया। लेकिन सरकार ने जांच के बाद राज्य सभा को बताया कि मोहम्मद सनाउल्लाह खुद को “भारतीय” साबित नहीं कर पाए हैं और इस तरह वो “विदेशी” ही हैं। एक सैनिक जिसने अपने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए, आतंक के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लिया, जिसके लिए उसने अपनी जान की भी परवाह नहीं की, वो यह साबित नहीं कर पाया कि वो उसी देश का नागरिक है।
इस मामले में सन्नाटा क्यों?
गौरतलब है कि, ज़रा से अपमान की आहट होने पर बवाल खड़ा कर देने वाले समाचार चैनल और “इंटरनेट के राष्ट्रवादी” एक सैनिक को “विदेशी” घोषित कर दिए जाने पर इस तरह चुप रहे जैसे उन्होंने “राष्ट्रीयता” और ”देश-भक्ति” का प्रमाण पत्र देना बंद कर दिया है। इस मामले पर जो सन्नाटा देखने को मिला वो वाकई आश्चर्यचकित कर देने वाला है।
द इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने साक्षात्कार में मोहम्मद सनाउल्लाह ने अपने ही देश में खुद को विदेशी घोषित किए जाने और उसके कारण गिरफ्तार होने के दर्द को बयां करते हुए कहा कि,
जब मैं जेल में प्रवेश कर रहा था, तब मैं बहुत रोया और मैंने खुद से पूछा कि मैने ऐसा कौन सा पाप किया है कि मुझे 3 दशक तक मेरी मातृभूमि की सेवा करने के बाद भी, एक विदेशी की तरह गिरफ़्तार किया जा रहा है?
इस सवाल का जवाब देने की कोशिश अभी तक तो किसी ने नहीं और शायद किसी के पास जवाब है भी नहीं। उन्हें इस तरह विदेशी घोषित कर जेल में डाल देना, उनके योगदान और वीरता का तिरस्कार नहीं है? शायद ये छोटी-छोटी बातों पर हैशटैग ट्रेंड करवाने वाले नायकों के लिए छोटी सी बात होगी।
एक साथी और भी था
इसी युद्ध पर बनी बॉलीवुड फ़िल्म, “LoC Kargil” का एक गीत “बस इतना याद रहे, एक साथी और भी था”, युद्ध में अपने साथियों को खो चुके सैनिकों दर्द को दर्शाता है। लेकिन, मोहम्मद सनाउल्लाह तो अपने नागरिक होने के सबूत भी तलाश रहे हैं, उनके इस दर्द को समझ पाना किसी भी “इंटरनेट राष्ट्रवादी” के लिए लगभग नामुमकिन है।
इत्तेफ़ाक़ से यह सब “ऑपरेशन विजय” के 20 साल पूरे होने पर हुआ और कई लोगों के चेहरों से पाखंड का नकाब भी उतर गया। सैनिकों और शहीदों के सम्मान को केवल कुछ बातों तक ही सीमित कर देना या इस तरह गंभीर मुद्दों पर चुप्पी साध लेना अपमान से कम नहीं है।