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RTI 2019 संशोधन बिल: क्या सूचना के अधिकार को कमज़ोर करना चाहती है सरकार?

देश के आज़ाद होने के 53 साल बाद तक किसी भी सरकार ने सूचना का अधिकार लाने की पहल नहीं की थी। 1975 के बाद अलग-अलग मुकदमों में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि सूचना का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है, इसको लेकर कानून बनाया जाए। 2002 में वाजपयी सरकार ने कानून तो पास किया लेकिन इसे लागू नहीं किया। फिर 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में इस कानून को पास भी किया गया और लागू भी।

जल्दबाज़ी में कानून में बदलाव किए गए

सूचना के अधिकार के लिए अरूणा रॉय से लेकर अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आंदोलन किए। इस कानून का जनता ने भरपूर उपयोग भी किया। जिसके चलते सरकार का उत्तरदायित्व बढ़ गया। कानून लागू होने के 3 साल बाद कॉंग्रेस ने उसमें बदलाव लाने की कोशिश की थी लेकिन बाद में उसे वापस ले लिया गया।

अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चोरी-छिपे और जल्दबाज़ी में इस कानून में बदलाव किए गए हैं और फिर लोकसभा में बहुमत के चलते यह कानून पास भी हो गया। सिर्फ 2 दिन पहले सांसदों को कानून में बदलाव के बारे में बताया गया। क्या यह कवायद लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ नहीं है?

पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने बीते शनिवार को एक खुला पत्र लिखा जिसमें उन्होंने सांसदों से सूचना के अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को पारित करने से रोकने की अपील की।  उन्होंने कहा,

कार्यपालिका विधायिका की शक्ति को छीनने की कोशिश कर रही है।

इस पत्र में, आचार्युलु ने पारदर्शिता की वकालत करते हुए कहा,

इस संशोधन के ज़रिये मोदी सरकार आरटीआई के पूरे तंत्र को कार्यपालिका की कठपुतली बनाना चाह रही है।

आचार्युलु ने पत्र में लिखा,

राज्यसभा के सदस्यों पर ज़िम्मेदारी अधिक है क्योंकि वो उन राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी स्वतंत्र आयुक्तों को नियुक्त करने की शक्ति केंद्र को दी जा रही है।  

फोटो क्रेडिट- getty images

क्या बदलाव होंगे

लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया, जिसमें आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 13, 16 में संशोधन किए गए। जैसे कि

और पढ़ें: क्या मोदी सरकार की वापसी, लोकतंत्र पर खतरा है?

नए बदलाव के बाद शायद यह लगभग असंभव हो जाएगा कि

इस बदलाव के बाद पूरी संंभावनाएं है कि कानून यहां पर बेअसर हो जाएगा। सरकार गवर्नमेंट सीक्रेट एक्ट के नाम पर शायद लोगों को अहम जानकारियों से दूर रखा जाएगा। वित्त मंत्रालय में पत्रकारों के आने-जाने पर नज़र रखी जा रही है। अन्य मंत्रालय भी इसे लागू कर दें तो बड़ी बात नहीं होगी। पाठक इस बारे में विचार करें की सूचना के बिना लोकतंत्र कैसा होगा?

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