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प्राइवेट स्कूलों का परिवार नियोजन में बेहतरीन योगदान

सरकार परिवार नियोजन की बात हमेशा से करती आई है। इसके लिए सरकार तरह-तरह की योजनाएं भी चला रही है, जैसे आंगनवाड़ी, गाँव कि आशा दीदी। भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखकर लगता है कि ये सारी योजनाएं ठीक से काम नहीं कर रही हैं और आम जनता तक नहीं पहुंच पा रही हैं।

सरकारी स्कूलों की हालत खराब

मैं यहां प्राइवेट स्कूल प्रबंधन को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने सरकार की परिवार नियोजन योजना को सफल बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। अब आप ही सोचिए कि इतनी महंगाई के दौर में कोई व्यक्ति कैसे 3-4 बच्चों का पालन, पोषण करेगा।

आज सभी लोग शिक्षा के महत्व से परिचित हैं और हर कोई अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहता है। शिक्षा का सबसे आसान उपाय है बच्चों को स्कूल भेजना। हमारे यहां सरकारी स्कूल भी अनेक हैं पर समस्या यह है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। ऐसे में लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं। प्राइवेट स्कूल वाले भी आपके बच्चों को वही किताब पढ़ाते हैं जो एक सरकारी स्कूल वाले पढ़ाते हैं।

एक प्राइवेट स्कूल के बच्चे

प्राइवेट स्कूल वसूलते हैं मनमानी फीस।

कुछ दिन पहले की बात है। मेरे एक दोस्त का बेटा एक हिंदी माध्यम के प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है। मैं अपने उस दोस्त के साथ उसके बच्चे के लिए किताब लेने उसके स्कूल गया था। किताबें आपको स्कूल से ही लेनी होती है। आप बाहर से नहीं ले सकते।

वैसे वह बच्चा अभी पहली क्लास में ही है पर उसके गणित के किताब का मूल्य 225 रुपए है। उस किताब में पूरे 100 पन्ने हैं। अगर ठीक-ठीक हिसाब लगाया जाए तो एक पन्ने का मूल्य 2.25 रुपए पड़ रहा है। वैसे किताब का प्रिंट बहुत अच्छा था और उस पर कुछ कार्टून भी बने हुए थे।

अब उस बच्चे को शायद 6-7 किताबें खरीदनी होंगी और उसी के हिसाब से कॉपी भी लेनी होगी। मतलब लगभग 4 हज़ार रुपए सिर्फ किताब-कॉपी में चले जाएंगे। स्कूल की मासिक फीस और आने-जाने का किराया अलग से देना पड़ेगा।

अगर आपका बच्चा इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है तो आप खर्च को दोगुना कर लीजिए क्योंकि 2000 रुपए तो केवल मासिक शुल्क लग जाता है। इसके अलावा इंग्लिश मीडियम स्कूलों में तो घुड़सवारी, तैराकी, मुक्केबाज़ी और कई सारे खेल होते हैं। उनका शुल्क अलग से देना पड़ता है। आज रोज़गार की स्थिति और मासिक वेतनमान से तो हर कोई वाकिफ है। एक व्यक्ति महीने का 10000 रुपए भी ठीक से नहीं कमा पाता। ऐसे में बेचारा परिवार का भरण पोषण कैसे करे?

अब आप सोचकर देखिए कि ऐसे में कोई 3-4 बच्चों की परवरिश कैसे कर पाएगा? इसलिए मैं प्राइवेट स्कूलों को धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि उनके प्रयासों से परिवार नियोजन कुछ हद तक सफल हो सका है।

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