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जानिए लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की राजनीतिक पृष्ठभूमि

om birla

आखिर मोदी सरकार ने उस वक्त अपने फैसले से सबको चौंका दिया, जब कयासों के परे एक नया नाम निकलकर सामने आया, वह नाम था, ओम बिड़ला। मात्र दूसरी बार सांसद बने ओम बिड़ला का राजनीति से जुड़ाव बहुत पुराना है। भले ही वरिष्ठतम लोगों की सूची में उनका नाम ऊपर ना आता हो लेकिन राजस्थान की कोटा लोकसभा सीट से जीतकर आए ओम बिड़ला विद्यालय काल से ही स्टूडेंट पॉलिटिक्स में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला। फोटो सोर्स- Getty

जी हां, वही कोटा जो भारत की शिक्षा राजधानी बना हुआ है। हर एक उस स्टूडेंट का ठिकाना, जो मेडिकल और इंजिनियरिंग में अपना भविष्य देखता है। 23 नवम्बर 1962 को जन्मे ओम बिड़ला, वसुंधरा सरकार में 3 बार विधायक और संसदीय सचिव रह चुके हैं। कभी छात्रसंघ चुनावों में एक वोट से हारने वाले ओम बिड़ला ने राजनीति की सीढ़ी ऐसी पकड़ी कि फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। राजस्थान की शेखावत सरकार में युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने वाले ओम बिड़ला के लिए वह पद उनके करियर के लिए नींव का पत्थर साबित हुआ।

एक कार्यकर्ता के रूप में जीवन

संघ और संघठन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाले ओम बिड़ला का अध्यक्ष पद पर चयन चौंकाने वाला ज़रूर है लेकिन नाजायज़ नहीं है। मोदी सरकार द्वारा लिए गए अनेक फैसलों में हमने देखा है कि अहम पदों पर संघठन में सक्रिय लोगों का चुनाव किया जाता रहा है। ओम बिड़ला का चुनाव भी उसी कड़ी में गिना जा सकता है।

कुछ भाजपा विरोधी लोगों को मैंने व्यंग्य में कहते सुना है, यह सरकार तो है ही बिड़ला और अम्बानियों की। अध्यक्ष किसी को बनाओ क्या फर्क पड़ता है? गत रूप से ओम बिड़ला को जानने वाले लोग यह समझते हैं कि यह वह बिड़ला या अंबानी नहीं हैं, जिनके साथ इनका नाम जोड़ा जा रहा है।

बेहद सरल स्वभाव के हैं ओम बिड़ला

बेहद सरल स्वभाव और शांत छवि वाले सांसद महोदय ने रातों-रात कोटा की सड़कों पर गरीबों को कंबल बांटे हैं। आपदाओं के समय अक्सर ओम बिड़ला की उपस्थिति उन्हें एक सामाजिक कार्यकर्ता और बेहतर सांसद तो बनाती ही है और प्रधानमंत्री ने कच्छ में आए भूकंप का तो ज़िक्र किया ही है, जिसमें ओम बिड़ला ने काफी सामाजिक सहयोग दिया था।

पारंपरिक तौर से परे जाकर फैसले लेने वाले मोदी सरकार के कितने और फैसले हमें चौंकाने वाले हैं, यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन इससे यह तो ज़ाहिर होता है कि मोदी भविष्य की टीम बनाने में जुटे हैं, जिसमें व्यक्ति के तज़ुर्बे से ज़्यादा तरजीह उसके द्वारा संघठन में किए कामों को दी जानी तय है।

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