भारत नाम तो पुरुष लिंग को प्रदर्शित करता है पर हम देशवासी अपने देश को भारत माता के नाम से संबोधित करते हैं, सम्मान करते हैं, सजदे में अपना सर झुकाते हैं। वो एक औरत है, सरस्वती देवी है जो ज्ञान की देवी है। शायद ही इस पूरे संसार मे कोई प्राणी हो जिसे माँ सरस्वती के ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती होगी, एक देवी होने के साथ वो एक औरत भी है।
क्यों जन्म नहीं लिया देने जाता है लड़कियों को
हमारे देश में बहुत सी देवियों की पूजा होती है, जिनका स्थान मंदिर में होता है और जिनके चरणों में हर व्यक्ति नमन कर अपना सर झुकाता है, वे सारी देवियां औरत हैं।
तो फिर क्यों हमारे देश में लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार दिया जाता है? क्या इसलिए क्योंकि
- उसे अपना जीवन यापन करने के लिए बहुत सी चीज़ों की आवश्यकता होती है,
- या उसे एक समय की अवधि के अनुसार जीवन जीना पड़ता है
- क्या सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि उन्हें शादी कर किसी और का वंश चलाना पड़ता है?
- या इसलिए कि जिस घर में वे पैदा हुई हैं, उस वंश को वे आगे गति नहीं दे सकती हैं।
पर इंसान को कौन समझाए कि अगर किसी के घर बेटी पैदा नहीं होती तो वह उसके घर का वंश कैसे आगे बढ़ाती?
लिंगानुपात पर हरियाणा के बाद उत्तराखंड की हालत सबसे दयनीय
वैसे तो देश के हर हिस्से की यही कहानी है पर बहुत ही चौकाने वाली खबर यह है कि उत्तराखंड में पिछले तीन महीने में 133 गाँव में करीब 218 बच्चों ने जन्म लिया है। हैरान करने वाली बात यह है कि ये सब लड़के हैं। इन 218 बच्चों में कोई भी लड़की नहीं पैदा होने की वजह से पूरे उत्तराखंड के सरकारी महकमों में हड़कंप मच गई है।
जन्म के समय लिंगानुपात पर ध्यान दें तो पता चलता है कि हरियाणा के बाद उत्तराखंड की हालत सबसे दयनीय है।
यह तो करिश्मा ही हो गया, आप कह सकते हैं कि विज्ञान असफल हो गया क्योंकि विज्ञान के हिसाब से 3 लड़कियों पर एक लड़का पैदा होता है। 3:1 का अनुपात अमूमन जन्म के समय होता है। अब या तो उत्तराखंड में विज्ञान का अनुपात बदल गया या भगवान ने कोई करिश्मा कर दिया।
अब भगवान का दूसरा रूप डॉक्टर भी है। आप समझ सकते हैं कि इशारा किस ओर है। वैसे अभी तक तो कोई कारण पता नहीं चल पाया है लेकिन फिर भी हम कई कारणों पर नज़र डाल सकते हैं कि आखिर लड़कियों के पैदा ना होने की वजह क्या रही होगी।
चंद रुपयों के लिए कन्या भ्रूणहत्या
ज़्यादातर सम्पन्न और पढ़े लिखे परिवार के लोग इस तरह का कदम उठाते हैं। एक तरफ हम शिक्षित होने पर गर्व महसूस करते हैं और दूसरी ओर अभी भी वही पुरानी मान्यताओं को बढ़ावा देते हैं। अभी भी यह सोचते हैं कि लड़की हुई तो अभिशाप लेकर पैदा होगी क्योंकि उसकी शादी में बहुत सारा दहेज देना पड़ता है।
वैसे अगर हम यह कहें कि हम सब इस सोच से बाहर निकल चुके हैं तो यह बिल्कुल गलत होगा, क्योंकि यह वह सोच है, जो जाने कितनी पीढ़ियों से कितनी पीढ़ियों तक विरासत के रूप में अपनी जड़ें फैला रही हैं।
आप लोग सोचने पर मजबूर होंगे कि आखिर क्यों एक औरत खुद अपने ही अस्तित्व को खाक में मिला देती हैं? आखिर क्यों नवजात बच्चियों के शव कूड़े कचरे में पड़े मिलते हैं? क्यों अनाथालयों में बच्चियों को गोद लेने वालों की संख्या कम है? जबकि सच यह है कि इस दुनिया का अस्तित्व ही औरत से है।
चलिए बात करते हैं उन दुकानदारों की, जो बोली लगाते हैं बच्चियों को गर्भ में ही गिराने की। बात क्लीनिक में ही दबकर रह जाती हैं। अब इसमें दोषी कौन है? वे माता-पिता जो वंश के लिए बेटे की इच्छा रखते हैं? या वे डॉक्टर जो चंद रुपयों के लिए यह पाप अपने सर मोल लेते हैं?
जो उच्च वर्ग के लोग हैं, वे ऐसी हरकतें अधिक करते हैं, क्योंकि उनकी विरासत को आगे ले जाने के लिए उन्हें बेटे की आवश्यकता होती है। बेटी तो पराया धन है। ऐसी सोच आज भी आपको मिल ही जाएगी।
मेरे हिसाब से उपरोक्त कारण पर्याप्त हैं, जो ये बता सके कि आखिर उत्तराखंड में पिछले 3 महीनों से एक भी लड़की ने जन्म क्यों नहीं लिया?