सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रांसजेंडर्स के अस्तित्व को संवैधानिक मान्यता देने के बाद देश के विभिन्न राज्यों में LGBTQ+ कम्युनिटी द्वारा सफलता के नित नए कीर्तिमान स्थापित किए जा रहे हैं। इस वर्ष के फीफा महिला विश्वकप में कई रिकॉर्ड बने। उनमें से एक रिकॉर्ड थर्ड जेंडर के नाम भी रहा।
इस बार इस टूर्नामेंट में कुल 40 लेस्बियन और बाइसेक्सुअल खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। 2015 के विश्वकप में LGBTQ+ कम्युनिटी के खिलाड़ियों की संख्या मात्र 20 ही थी। इससे पूर्व भारतीय एथलीट दुतीचंद ने भी अपनी सेक्सुअलिटी का खुलासा करके सबको चौंकाया है।
इससे पता चलता है कि धीरे-धीरे ही सही मगर तृतीय पंथ के प्रति दुनिया का नज़रिया बदल रहा है। अपनी वास्तविक पहचान के साथ उनका दुनिया के सामने आना सुखद है।
रोज वेंकटशान: चेन्नई, तमिलनाडु की रहने वाली रोज वेंकटेशन भारत की पहली टीवी टॉक शो होस्ट हैं। वह देश की पहली ट्रांस वुमन हैं, जो टीवी और रेडियो के साथ-साथ अन्य कई क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
पद्मिनी प्रकाश: पद्मिनी प्रकाश भारत की पहली ट्रांस न्यूज़ एंकर होने के साथ ही एक अभिनेत्री और ट्रांसजेंडर अधिकारों की एक सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं। उन्होंने 15 अगस्त, 2014 को तमिलनाडु राज्य से प्रसारित लोटस चैनल में एक न्यूज़ एंकर के रूप में जुड़ कर इतिहास रच दिया।
के पृथिका यशिनी: अपने शारीरिक परीक्षण में चंद सेकंड से पिछड़ने के बावजूद राज्य सरकार ने उन्हें नियुक्ति देने का फैसला सुनाया और इसके साथ ही के. पृथिका यशिनी (पूर्व में प्रदीप कुमार) ने देश की पहली ट्रांस वुमन पुलिस ऑफिसर के रूप चयनित होकर इतिहास रच दिया। वर्तमान में वह तमिलनाडु के धर्मापुरी पुलिस थाने में सब-इंस्पेक्टर के रूप में पदस्थापित हैं।
एक पुलिस ऑफिसर होने के साथ ही पृथिका एक एप्प डेवलपर भी हैं। वह अन्य ट्रांसजेंडर्स को उनकी वास्तविक पहचान के साथ जीने के लिए प्रेरित करती हैं।
मानबी बंदोपध्याय: देश की पहली ट्रांसजेंडर प्रोफेसर होने के साथ-साथ मानबी बंदोपाध्याय देश की पहली ट्रांस पर्सन भी हैं, जिन्होंने डॉक्टर ऑफ फिलॉसोफी (पीएचडी) भी पूरी की है। मानबी ने कोलकाता के विवेकानंद सत्वार्षिकी महाविद्यालय में बंगाली भाषा साहित्य के एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में पहली नियुक्ति पाई थी। 7 जून, 2015 को वह कोलकाता के कृष्णानगर वुमेंस कॉलेज में प्रिंसिपल के तौर पर पदस्थापित हैं।
जोइता मंडल: जोइता मंडल पश्चिमी बंगाल की ट्रांस सोशल वर्कर के तौर पर जानी जाती हैं। वह वर्ष 2010 से ‘नई रोशनी’ नामक एक गैर-सरकारी संस्था में LGBTQ+ कम्युनिटी के अधिकारों के लिए काम कर रही हैं। वर्ष 2017 में मात्र 29 वर्ष की आयु में वह उत्तरी पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर ज़िले की लोक अदालत में देश की पहली ट्रांस वुमन जज के रूप में नियुक्त हुईं।
बचपन में घर में हुए भेदभाव और स्कूल में मिले तानों से तंग आकर जोइता ने उस दुनिया को हमेशा के लिए ही अलविदा कह दिया। आगे कई वर्षों तक उन्हें मुफलिसी की ज़िदगी गुज़ारनी पड़ी। यहां तक उन्हें कि भीख भी मांगना पड़ा। बावजूद इसके जोइता ने हिम्मत नहीं हारी और वर्तमान में लोक अदालत की जज बनकर मिसाल कायम किया।
मोनिका दास: देश के पिछड़े राज्यों में शामिल बिहार ने भी LGBTQ+ कम्युनिटी के उत्थान के मामले में इतिहास रचा है। राजधानी पटना की रहने वाली मोनिका दास (पूर्व में गोपाल) 29 वर्ष की आयु में देश की पहली ट्रांस वुमन बैंकर बनीं। उनकी पहली नियुक्ति वर्ष 2007 में सिंडीकेट बैंक के फतुहा ब्रांच में हुई।
वर्ष 2014 में उनका ट्रांसफर पटना के हनुमान नगर ब्रांच में हो गया। वर्तमान में वह यहीं कार्यरत हैं। पटना लॉ कॉलेज से पोस्ट-ग्रैजुएट मोनिका दास ने अपनी स्कूली शिक्षा नवोदय विद्यालय से पूरी की है।
डिंपल जैसमीन: बिहार की रहने वाली डिंपल जैसमीन देश की पहली ऐसी ट्रांस वुमन हैं, जो पिछले सात वर्षों से एचआइवी संक्रमित लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में काम कर रही हैं। शुरुआत के तीन वर्ष तक अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘ग्लोबल फंड’ के साथ मिलकर एक वालंटियर के रूप में उन्होंने अपने समुदाय (ट्रांसजेंडर्स) के लिए काम किया।
पिछले चार वर्षों से वह बिहार सरकार के ‘विहान’ प्रोग्राम की एक प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर के तौर पर हाजीपुर में कार्यरत हैं। इनका काम एचआइवी संक्रमित लोगों और उनके बच्चे को बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न लाभकारी योजनाओं की जानकारी देना और उनसे जोड़ना है। डिंपल की मानें तो LGBTQ+ कम्युनिटी की तरह एचआइवी पेशेन्ट्स को भी काफी सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, इसलिए वह इनकी ज़िदगी को बेहतर बनाने के लिए कार्य कर रही हैं।
सत्यश्री शर्मिला: देश के सर्वोच्च शैक्षणिक दर को हासिल करने वाले तमिलनाडु राज्य की निवासी सत्यश्री शर्मिला (36) को अपने जीवन में कई तरह की रुढ़िवादी सामाजिक अवधारणाओं से रूबरू होना पड़ा। उसके बावजूद उन्होंने इन सबको पीछे धकेलते हुए अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने का फैसला किया और तमिलनाडु तथा पुदुचेरी बार काउंसिल में देश की पहली ट्रांस वुमन लॉयर के रूप अपना नाम दर्ज़ करवा कर इतिहास रच दिया।
शबनम मौसी: शबनम मौसी भारत की पहली ट्रांसजेंडर विधायक हैं। वह किसी सार्वजनिक पद पर चयनित होने वाली भारत की पहली ट्रांसजेंडर हैं। वह वर्ष 1998 से 2003 के बीच मध्य प्रदेश विधानसभा की निर्वाचित सदस्य रहीं। विधानसभा सदस्य के तौर पर शबनम के एजेंडे में भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, गरीबी और भूख से लड़ना जैसे मुद्दे शामिल थे।
पारिवारिक समर्थन एवं संरक्षण के अभाव में शबनम केवल दो वर्ष की स्कूली शिक्षा ही प्राप्त कर पाई थी लेकिन इधर-उधर जाने-आने के क्रम में कुल 12 भाषाएं सीख ली थीं। शबनम मौसी का जीवन और उनकी उपलब्धियां आगे चल कर कई अन्य ट्रांसजेंडर्स के लिए प्रेरणादायी साबित हुआ।
शाबी: भारत की पहली ट्रांसजेंडर सैनिक शाबी ने करीब आठ वर्ष पूर्व पूर्वी नेवल कमांड के मरीन इंजीनियरिंग विभाग में शामिल हुईं। उन्होंने वर्ष 2014 में अपना सेक्स चेंज करवाया और उसके विशाखापट्नम के नेवल बेस को ज्वॉइन किया।
जिया दास: मूलत: कोलकाता की रहने वाली जिया दास देश की पहली ट्रांस मेडिकल स्टाफ हैं। उनकी नियुक्त कोलकाता के एक अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर टेक्निशियन के तौर पर हुई है। सबसे अच्छी बात यह है कि जिया के साथ अस्पताल में आम महिला या पुरुष के समान व्यवहार ही किया जाता है।
जिया की मानें, तो करीब डेढ़ वर्ष पूर्व उनके और उनके सहयोगियों द्वारा आयोजित किए गए ‘सतरंगी’ नामक कार्यक्रम में एक स्वास्थ्य उद्यमी से उनकी मुलाकात हुई थी, जिसने कहा था वह LGBTQ+ कम्युनिटी के दो लोगों को ओटी टेक्निशियन के तौर पर प्रशिक्षण देने को इच्छुक हैं। जिया ने उस प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेकर आज इतिहास रच दिया है।
कमला जान: मध्य प्रदेश के कटनी निर्वाचन क्षेत्र से जनवरी, 2000 में चुनाव जीतकर कमला जान विश्व की पहली ट्रांसजेंडर मेयर बनीं। करीब ढाई साल तक उन्होंने इस पद पर अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने काफी बेहतरीन कार्य किए। सड़कों की मरम्मत करवाई, नालियां बनवाईं और बस पड़ाव का नवीनीकरण किया।
वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए अपने एक निर्णय में कहा गया कि उक्त पद चूंकि किसी ‘महिला’ प्रत्याशी के लिए आरक्षित हैं, इसलिए एक किन्नर होने के नाते कमला जान इस पद के योग्य नहीं हैं।
कल्कि सुब्रमण्यम: भारत की पहली ट्रांसजेंडर उद्यमी होने के साथ ही कल्कि सुब्रमण्यम एक पत्रकार, लेखक, अभिनेत्री और ट्रांस कार्यकर्ता भी हैं। उन्होंने जनसंचार एवं पत्रकारिता तथा अंतरराष्ट्रीय संबंध में मास्टर्स डिग्री हासिल की है।
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी: एशिया-पैसिफिक सम्मेलन में भारतीय ट्रांसजेंडर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी मुंबई की एक सक्रिय ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता होने के साथ ही बॉलीवुड नायिका और एक प्रख्यात भरतनाट्यम डांसर भी हैं।
वर्ष 1979 में मुंबई के थाणे क्षेत्र में पैदा हुईं लक्ष्मी देश की पहली ऐसी ट्रांसजेंडर हैं, जिन्होंने वर्ष 2008 में एशिया-पैसिफिक सम्मेलन में हिस्सा लिया था। सम्मेलन के दौरान उन्होंने दुनियाभर में यौन अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति के बारे में अपने विचार व्यक्त किये थे। उनका कहना था कि लोगों को LGBTQ+ कम्युनिटी के प्रति अधिक मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
लक्ष्मी वर्तमान में LGBTQ+ कम्युनिटी के लिए काम करने वाली कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्थाओं के कोर ग्रुप में शामिल हैं। वर्ष 2002 में वह एनजीओ ‘डाइ वेलफेयर सोसाइटी’ की अध्यक्ष निर्वाचित हुई्ं, जो कि दक्षिण एशिया में किन्नरों के लिए काम करने वाला पहला पंजीकृत संगठन हैं।
वर्ष 2007 में उन्होंने मुंबई में यौन अल्पसंख्यकों के कल्याण, सहयोग और विकास को समर्थन देने के उद्देश्य से ‘अस्तित्व’ नामक अपना खुद का गैर-सरकारी संगठन स्थापित किया। इनके जीवन एवं उपलब्धियों पर वर्ष 2017 में वाणी प्रकाशन की एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है, जिसका नाम है- मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी।
विशेष हुईरम: मणिपुर निवासी विशेष हुईरम (27) भारत की पहली ऐसी ट्रांस वुमन हैं, जिन्होंने वर्ष 2016 में पट्टाया, थाईलैंड के चोन्बुरी में होने वाले ‘मिस इंटरनेशनल ब्यूटी क्वीन’ कॉन्टेस्ट में भाग लिया और अंतिम 30 प्रतिभागियों में शामिल हुईं। यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे प्रतिष्ठित ब्यूटी कॉन्टेस्ट है, जिसमें चयनित होने वाली ट्रांसजेंडर महिलाएं रैंप वॉक करती हैं।
आरती कर: भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में ओबीसी कैटेगरी के तहत शामिल होने वाली आरती कर बंगाल की पहली ट्रांस वुमन हैं। इस उपलब्धि को पाने के लिए 28 वर्षीया आरती को करीब दो वर्षों तक कठिन संघर्ष करना पड़ा। अंतत: वर्ष 2014 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णय के तहत उन्हें ‘अन्य’ श्रेणी में सरकारी नौकरी हेतु आवेदन करने का अधिकार मिल ही गया।
हालांकि इस निर्णय के पांच वर्षों बाद भी यह निर्णय पूरे देश में लागू नहीं हो सका है। इस तरह से देखा जाए, तो LGBTQ+ कम्युनिटी को उनके अधिकार और संरक्षण देने के मामले में दक्षिणी राज्य (विशेषकर केरल और तमिलनाडु) पश्चिम बंगाल काफी आगे हैं। उनके अलावा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और बिहार में भी उनकी स्थिति थोड़ी बेहतर कही जा सकती है।
बिहार अभी देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां किसी ट्रांसजेंडर पर्सन को किराये का मकान देने से इंकार करने पर सज़ा का प्रावधान तय किया गया ह।
यूपी की बात की जाए तो वहां भी उनकी स्थिति सबसे बदतर है। इसके अलावा, झारखंड, ओडिशा, गुजरात आदि राज्यों में उनकी स्थिति को संतोषजनक भी नहीं कही जा सकती है। (सेल्फ सर्वे और ट्रांस परेड में आए किन्नरों से बातचीत के आधार पर) भारत सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा ट्रांसजेंडर कल्याण की दिशा में अहम कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।
नोट : इस आलेख को एनएफआई मीडिया फेलोशिप प्रोग्राम (2019-20) के तहत प्रस्तुत किया जा रहा है।