लड़के की उम्र जब चार की साल थी
पिता ने भेज दिया स्कूल, लड़का स्कूल जाने लगा,
पिता ने कहा हिन्दी मीडियम नहीं इंग्लिश मीडियम में पढ़ना है
लड़के का नाम हिन्दी स्कूल से इंग्लिश मीडियम में लिखा गया,
लड़का जब कक्षा आठ में पहुंचा, पिता को चाहिए थे 90% अंक
लड़के ने भरसक कोशिश की लेकिन लाया मात्र 55%, सेकेंड डिवीज़न,
पिता को गुस्सा आया, दबा दिया लड़के का गला
लड़के ने विरोध नहीं किया गला दबा, वह बेहोश हो गया,
सब शांत हुआ पिता ने फिर कहा पढ़ो, सरकारी नौकरी के लिए
समय आया ग्यारवीं में विषय चुनने का
पिता ने कहा डॉक्टर बनना है, इसलिए चुनो बायोलॉजी
लड़का रटने से डर गया और दोस्तों के साथ ले लिया गणित,
जैसे-तैसे लड़के ने दे डाली इंटर की परीक्षा
परीक्षा होते ही लड़का पिता के सामने खड़ा था, उनके कमरे में
जैसे वकील के सामने कठघरे में खड़ा था कोई मुलज़िम
सवाल थे, कितने नंबर ले आओगे, अब क्या करोगे
जिनके सारे उत्तर पिता खुद दे रहे थे,
80% के ऊपर नंबर आने चाहिए वरना सब बेकार है
दूसरा यह था कि करो बीएएलएलबी क्योंकि उनके दोस्त का बेटा कर रहा है
मन में बहुत कुछ होकर भी चुपचाप लड़के ने फिर हां कर दिया,
लड़के ने एक यूनिवर्सिटी में टॉप किया, पिता खुश हुए
लेकिन पहली बार लड़के ने ना करते हुए कहा उसे यह नहीं करना है,
उस वक्त का ना करना किसी को गलत नहीं लगा
शायद वो इसलिए था कि लड़के ने अपनी योग्यता दिखा दी थी
अगर वह लॉ की कोई परीक्षा पास नहीं कर पाता तो उसमें हिम्मत नहीं आती,
एक बार फिर उसे पिता के भीषण गुस्से का शिकार होना पड़ता
पिता ने कहा कुछ भी करो लेकिन साथ में लॉ पढ़ते रहो,
लड़के ने किया बीए, ऐसी डिग्री जो समाज में दलित की तरह है
इस बीच पिता हर दिन सवाल करते रहे कि बीए के बाद क्या?
लड़का चुप हो जाता, बोल देता जो बताओ कर लूंगा
पिता फिर बोलते, एलएलबी करो,
क्योंकि कुछ नहीं हुआ तो तख्त डालकर बैठ जाओगे कहीं,
लड़का हमेशा मन में सोचता रहता
कुछ ऐसा करेगा, जिसमें पैसा भले ना हो लेकिन समाज के लिए हो
लेकिन एक पिता चाहता है, लड़का करे ऐसा काम कि उसका घर चले,
लड़का सरकारी नौकर बने, ताकि बता पाए पड़ोस, रिश्तेदारी में
उनके लिए सरकारी नौकरी ज़रूरी है, भले ही वो हो कलेक्ट्रेट का चपरासी
क्योंकि तब भी वो बता पाएंगे कि लड़का डीएम के यहां चपरासी है,
चाहते हैं कि लड़का पुलिस में जाए वह बस इसलिए
कि जब पुलिस मोटरसाइकल के कागज़ चेक करेगी
तब बता पाएंगे उनका बेटा पुलिस में है, तो वह छूट जाएंगे,
पिता पढ़ते सुबह का अखबार और खोल देते हैं नौकरी का पन्ना
लड़के की तरफ फेंककर बोलते हैं, ले देख ले फॉर्म भर ज़रूर देना,
आगे समय बहुत खराब है, जो मिले कर लो
लड़का चुपचाप हां कर देता, उसमें उसे कोई दिलचस्पी नहीं होती,
लड़के ने टॉप विश्वविद्यालय से कर लिया है बीए, एमए
जिनसे उसे मिल सकती है, अच्छी प्राइवेट, या एनजीओ में नौकरी
उसे मिल सकती है इनटर्नशिप, फेलोशिप,
ये शब्द ही पिता की समझ से परे हैं
पिता के लिए वो डिग्री कूड़ा है, घर का,
पिता चाहते हैं लड़का बने मास्टर, घर के घर में रहेगा
रोज़ स्कूल जाने का झंझट नहीं, परिवार खेती भी देख आयेगा,
लड़का बनने को राज़ी है पढ़ रहा है मास्टरी
लड़का पिता की कहे अनुसार सब बनने को राज़ी हो जाता,
पिता हर दिन सोचते रहते, हर महीने कुछ नया बनाने को तैयार रहते
लड़का अब मास्टर बनने को तैयार है,
पिता कुछ वक्त बाद इसे भी बदलने को कह देंगे
लड़का फिर हां कर देगा, ना कर देने से उसे लगता है पिता को खराब लगेगा,
उसे लगता है अपने मन से कुछ किया तो लोग कहेंगे
पिता ने पढ़ाया लिखाया, अब जब बड़ा हो गया अपने मन की करने लगा,
लड़के ने कभी विरोध किया नहीं
लड़का सवालों के चक्रवात में घिरा रहता है, चुपचाप सब सुनकर हां कह देता है।