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कविता: ऊंच नीच में खो ना जाए मानव तेरी पहचान

ईश्वर की सबसे सुंदर रचना ‘मनुष्य’,

जो कलयुग का ‘दानव’ बन बैठा।

 

ईश्वर ने ‘मनु’ को भेजा, बिना जात-पात, ऊंच-नीच के,

परंतु मनुष्य ने मानवता को जात-पात, ऊंच-नीच में परिवर्तित कर दिया।

 

‘रावण’ को दशहरा में दहन करते हो,

क्या तुम रावण बनने के काबिल हो?

 

‘रावण’ ने तो सीता मैया को लंका में रख उनकी परछाई को भी नहीं छुआ,

वाह रे मनुष्य! तूने तो मासूम बच्ची को भी नही छोड़ा।

 

नीची जाति की परछाई को ना छूने वाले ऊंची जाति के लोग,

नीची जाति की बच्चियों पर बुरी नज़र डालने से क्यों नहीं शर्माते?

 

ईश्वर ने सबको एक बनाया, फिर क्यों मनुष्य ने जात-पात, ऊंच-नीच बनाया?

रे मनुष्य! ऊंचा उठ और इंसानियत को सबसे ऊंचा बना।

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