मैंने सोचा नहीं था कि कभी ऐसा भी समय आएगा, जब एक सामान्य व्यक्ति को शिक्षा जैसे वरदान रूपी विषय पर कुछ कहने का मौका मिलेगा।
मैं उत्तर प्रदेश के अति पिछड़े आदिवासी बहुल क्षेत्र (नक्सल प्रभावित क्षेत्र) से संबंध रखता हूं। यहां मुख्य रूप से गोड़ और बैगा समुदाय के लोग रहते हैं। आज सोनभद्र में सैकड़ों विद्यालय हैं, जिसमें हर कोई शिक्षा ले रहा है, किंतु सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब और आदिवासी बच्चों की स्थिति ने मुझे झकझोरकर रख दिया है।
अगर हमें आदरणीय अब्दुल कलाम के भारत को देखना है, तो हमें एकता की ज़रूरत होगी, जिसके लिए मैंने शिक्षा व्यवस्था को कई रूपों में बांट दिया है, जिससे अपने विचार को समझा सकूं।
- सरकारी स्कूल- सरकार द्वारा हर प्रदेश में हज़ारों विद्यालय चलाए जाते हैं, जिसमें पढ़ाने वाले अध्यापक अतिकुशल व ज्ञानी होते हैं लेकिन इसके बावजूद भी प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा है। आखिर कैसे बच्चों को शिक्षा दी जाए, ताकि वे कुशल ज्ञान प्राप्त कर सके?
सरकार द्वारा जारी शिक्षा बजट को बढ़ाना तथा शिक्षा का डिजिटलीकरण करना बहुत अनिवार्य है। शिक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों पर खर्च हो।
बच्चों को एनसीईआरटी पैटर्न पर ही सारी शिक्षा व्यवस्था को लागू करना चाहिए, क्योंकि यह देखा गया है कि पांचवी या आठवीं कक्षा के स्टूडेंट्स भी दो अंक का जोड़, गुणा, भाग नहीं कर पाते हैं, तथा अंग्रेज़ी की किताब भी ठीक तरह से उन्हें पढ़नी नहीं आती है, जबकि इसकी तुलना में प्राइवेट संस्था में पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति बेहतर है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।
प्राइमरी की तुलना में प्राइवेट विद्यालय शिक्षा पर काफी एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं, इसलिए सरकारी विद्यालयों में भी पढ़ाई के साथ एक्सपेरिमेंट आवश्यकता है, जो कि सरकार द्वारा दिए गए बजट में ही पूर्ण हो सकता है। इसमें कहीं और से पैसे लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
यदि पूरा प्रोसेस यथासंभव सही तरीके से कर दिया जाए, तो स्थिति बदल जाएगी। जिसके लिए ग्राम पंचायत, ज़िला पंचायत और बड़े स्तर पर कमेटियों की नियुक्ति होनी चाहिए, जो हर माह सरकारी विद्यालय में हो रहे टेस्ट की परीक्षाओं का मूल्यांकन करें और उसी आधार पर अध्यापकों को ग्रेड दें, जिसकी सहायता से बच्चों और अध्यापकों का भी मूल्यांकन हो सके।
बच्चों और अध्यापकों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के आधार पर ज़िला स्तरीय, ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तरीय अध्यापकों का नाम भेजा जाए तथा उन्हें सम्मानित किया जाए। जिससे कि वह प्रोत्साहित हो और अपने काम को अच्छे तरीके से करें।
- विद्यालयों में पुस्तकालय, कंप्यूटर प्रयोगशाला तथा ज्ञान-विज्ञान, गणित और अंग्रेज़ी सीखने हेतु सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
- विद्यालय में ड्रेस कोड, जूते, बच्चों के लिए अच्छे बेंच, लाइट, पंखा, पीने के लिए अच्छा पानी, शौचालय तथा खेलने के लिए ग्राउंड तथा शारीरिक और मानसिक विकास हेतु योग और शारीरिक शिक्षा जैसे हर एक पहलुओं पर ध्यान दिया जाए। जिससे बच्चे में मानसिक विकास के साथ ही नैतिक विकास भी हो।
2.प्राइवेट स्कूल- प्राइवेट स्कूल आज देश में किस मुकाम पर हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। यदि संभव हो तो प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूल के बच्चों के बीच प्रतियोगिताओं का आयोजन हो।
3.सहायता प्राप्त संस्था-आज देश में कई सहायता प्राप्त संस्था हैं, जिसपर ज़िला स्तरीय कमेटी बनाकर एक विद्यालय खोलने और उसमें पढ़ने वाले बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा सकती है तथा समय-समय पर उसकी जांच भी होनी चाहिए।
- एनजीओ- आज पूरे विश्व में कई NGO हैं, जो एजुकेशन और खासतौर पर ग्रामीण और गरीब परिवार के लिए कार्य करते हैं। ऐसी संस्थाओं को अति पिछड़े आदिवासी बहुल क्षेत्रों में काम करने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए।
- विद्यार्थी- आज देश में लगभग लाखों की संख्या में युवा शिक्षित हो रहे हैं, ऐसे बच्चों को आदिवासी बहुल क्षेत्र या सरकारी विद्यालय में जाकर वहां के बच्चों को निशुल्क पढ़ाना चाहिए।
- जननी- जननी को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। माँ हर समस्या को हल कर सकती है और यह तो हमें पता ही है कि माँ बच्चों की पहली पाठशाला होती है। यदि माँ साक्षर हो तो बच्चों को शिक्षा मिल जाती है, किन्तु बड़ा प्रश्न यह है कि यदि माँ शिक्षित ना हो तो बच्चों का विकास कैसे होगा?
हमें सरकार द्वारा चलाई जा रही पढ़ाई की योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लाना होगा। जैसे- प्रौढ़ शिक्षा, तारा अक्षर और अक्षर ज्ञान कार्यक्रम आदि। सरकारी, गैर सरकारी, प्राइवेट स्कूल और एनजीओ जैसी संस्थाएं गाँव तक पहुंच सके इसके लिए कुछ काम करना होगा।