हिमा दास, भारतीय एथलेक्टिस के आसमान का एक चमकता हुआ सितारा और संभवत: आने वाले कल में एक दमकता हुआ प्रदीप्त आभामंडल। आज इस नाम से देश-दुनिया में शायद ही कोई अपरिचित हो। वजह है हिमा दास का मात्र 19 दिनों में अब तक 200 मीटर में चार और 400 मीटर में एक स्वर्ण पदक जीतकर, समस्त देशवासियों की आंखों का तारा बन जाना।
‘ढिंग एक्सप्रेस’ के नाम से मशहूर भारत की युवा एथलीट हिमा दास का यह इस महीने का कुल पांचवां स्वर्ण पदक है। इससे पूर्व में वह दो जुलाई को यूरोप में, सात जुलाई को कुंटो एथलेटिक्स मीट में, 13 जुलाई को चेक गणराज्य में और 17 जुलाई को टाबोर ग्रां प्री में अलग-अलग स्पर्धाओं में स्वर्ण जीत चुकी हैं।
अब नज़र टोक्यो ओलंपिक पर
भारतीय एथलेटिक्स के ‘हाइ परफार्मेंस’ डायरेक्टर वोल्कर हरमन का मानना है कि यूरोप में तीन सप्ताह में पांच गोल्ड मेडल जीतने वाली स्टार एथलीट हिमा दास, अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के करीब हैं। हरमन का कहना है,
टोक्यो ओलंपिक में अभी एक साल का समय है। हमें अपनी कमज़ोरियों और मज़बूत पहलुओं पर काम करना होगा ताकि एथलीट अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे सकें। साथ ही, हमें 2024 और 2028 के ओलंपिक को भी ध्यान में रखना होगा।
उड़नपरी पीटी ऊषा की शिष्या हिमा दास वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय दौड़ में भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह पहली ऐसी भारतीय महिला बन गई हैं, जिन्होंने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप ट्रैक में गोल्ड मेडल जीता है। उन्होंने 400 मीटर की रेस 51.46 सेकंड में खत्म करके यह रिकॉर्ड अपने नाम किया है।
हिमा की इस उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है। उनकी सफलताओं को देखते हुए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने भी ट्वीट करके उन्हें बधाई दी है।
India is very proud of @HimaDas8’s phenomenal achievements over the last few days. Everyone is absolutely delighted that she has brought home five medals in various tournaments. Congratulations to her and best wishes for her future endeavours.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 21, 2019
इसके अलावा, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर सहित बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन, अर्जुन कपूर, सोनम कपूर, अजय देवगन, प्रीति जिंटा और रवीना टंडन ने भी उनकी इस उपलब्धि की सराहना की है। अभिनेता अक्षय कुमार पहले से ही हिमा दास की उपलब्धियों को देखते हुए उनके जीवन पर फिल्म बनाने की चाह अभिव्यक्त कर चुके हैं।
होने वाली है पैसों की बारिश
स्पोटर्स इंडिया की महानिदेशक नीलम कपूर ने इस बात की पुष्टि की कि
गत वर्ष फिनलैंड में आयोजित आइएएएफ अंडर- 20 विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर हिमा दास पहली भारतीय महिला बन गई हैं। यही नहीं, महिला और पुरुष, दोनों वर्गों में ट्रैक स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतने वाली भी वह पहली भारतीय हैं।
अगर ट्रैक स्पर्धा की बात करें तो हिमा दास से पहले किसी भी भारतीय ने जूनियर या सीनियर किसी भी विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड नहीं जीता है। फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा भी ये कमाल नहीं कर पाये थे।
उस वक्त भारतीय बिजनेस टाइकून आनंद महिंद्रा ने भी सार्वजनिक रूप से हिमा दास को सर्वश्रेष्ठ एथलेटिक ट्रेनिंग प्राप्त करने हेतु आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी।
अब एक बार फिर से अपने कौशल के बूते दुनिया में अपनी दौड़ का लोहा मनवाने वाली हिमा दास पर पैसों की बारिश हो रही है। 19 वर्षीय एथलीट हिमा दास का मैनेजमेंट संभालने वाली स्पोर्ट्स मैनेजमेंट फर्म आइओएस की मानें, तो एक महीने पहले तक हिमा दास एक ब्रांड के एंडोर्समेंट के लिए 30-40 लाख रुपए लेती थी लेकिन हालिया प्रदर्शन के बाद अब हिमा दास की एंडोर्स वैल्यू 70-80 लाख रुपये तक पहुंच गई है। आगे उनके प्रदर्शन का स्तर अगर इसी तरह बरकरार रहा, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इसमें और बढ़त होने की पूरी संभावना है।
असम सरकार ने हिमा के विश्वस्तरीय प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें राज्य का ब्रांड एंबेसडर (खेल) बनाने का ऐलान किया है। उन्होंने हिमा के लौटने पर एक राज्य स्तरीय समारोह में उनका सम्मान करने का भी ऐलान किया है। भारत की उभरती हुई एथलेटिक्स स्टार हिमा दास को सरकार की टार्गेट ओलिंपिक पोडियम योजना के तहत 2020 टोक्यो ओलिंपिक तक आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है।
हर किसी को नहीं मिलते निपान जैसे ट्रेनर
वरिष्ठ पत्रकार, रवीश कुमार की मानें,
तो कैमरे ने हिमा दास के जीतने का इतिहास दर्ज किया है। हिमा ने कैसे उस जीत को हासिल किया है, उसका नहीं। यह भी सबक है कि कैमरे का फोकस जहां होता है, वहां विजेता नहीं होता। कैमरा चाहे जितनी देर तक किसी को विजेता बना ले, हिमा दास जैसी कोई-ना-कोई निकल आयेगी।
कुछ सालों पहले तक हिमा दास के नाम से शायद ही कोई व्यक्ति परिचित था। नौगांव ज़िले के कांदुलिमारी गॉंव के किसान परिवार में जन्मी हिमा के पिता रोंजीत दास पेशे से एक साधारण किसान हैं। हिमा अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। शुरुआत में हिमा की रुचि फुटबॉल में थी लेकिन अपने स्कूल कोच शमशुल शेख की सलाह पर फुटबॉल को अलविदा कह दिया और एथलेटिक्स में हाथ आज़माने लगीं।
इसी बीच एक स्थानीय प्रतियोगिता में हिमा पर खेल कल्याण निदेशालय में एथलेटिक्स के कोच निपान दास की नजर पड़ी। उन्होंने ज़िला स्तरीय स्पर्धा में जब सस्ते जूते पहनकर दौड़ने के बावजूद हिमा को गोल्ड मेडल हासिल करते देखा, तो हैरान रह गये। उन्होंने हिमा को धावक बनाने की ठान ली और उसे लेकर गुवाहाटी आ गए।
निपान को यह अंदाज़ा हो गया था कि राष्ट्रीय स्तर की अकादमी में पहुंचना हिमा की ज़रूरत है, क्योंकि उसके प्रदर्शन में एक बेहतर ट्रेनिंग की कमी साफ झलकती थी। लेकिन, हिमा की कमज़ोर पारिवारिक आर्थिक पृष्ठभूमि इस कोशिश के आड़े आ रही थी। फिर भी निपान लगातार कोशिश करते रहे। अंतत: राज्य अकादमी के अधिकारियों ने हिमा के प्रदर्शन को देख उसे अकादमी में लेने के लिए हामी भर दी। फिर तो हिमा ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और साल-दर-साल नित नई उपलब्धियां अपने नाम करती गईं।
फर्श से पहुंची है अर्श पर
हिमा ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से पूर्वोत्तर से ही निकली कुछ अन्य प्रतिभाओं की याद दिला दी है। इनमें ‘गोल्डन गर्ल’ एमसी मैरी कॉम, कुंजु रानी देवी, सरिता देवी और मीराबाई चानू आदि हैं। इन सभी खिलाड़ियों में एक समानता यह भी है कि इन्होंने कमज़ोर आर्थिक स्थिति, तमाम सामाजिक वर्जनाओं और घरेलू परेशानियों के बावजूद वह मुकाम हासिल किया, जो तमाम भारतीयों के लिए गर्व की बात है।
हमारे देश में ना जाने कितनी हिमा दास, रविंद्र जडेजा, गौरव विधुरी, दीपिका कुमारी जैसे खिलाड़ी होंगे, जो समुचित सहायता, निर्देशन एवं संसाधनों के अभाव में फर्श से अर्श तक पहुंचने के बजाय गर्त में समा जाते हैं।
International Journal of Physiology, Nutrition and Physical Education 2017 के अनुसार,
आमतौर पर देखा गया है कि राज्य/राष्ट्रीय स्तर के भारतीय खिलाड़ियों का पोषण और खान-पान सामान्य से कम होता है। उनमें जंक फूड (चाउमिन, कोल्ड ड्रिंक और आलू चिप्स) तथा ऑयली फूड (समोसा, ब्रेड पकोड़ा, छोले आदि) खाने की बड़ी ही खराब आदत होती है।
ऐसे तमाम अध्ययन और रिपोर्ट यह बताते हैं कि विभिन्न खेलों को खेलने वाले खिलाड़ियों में निम्न ऊर्जा वाले खाद्य पदार्थों के सेवन की समस्या आम है। उनके द्वारा कंज़्यूम किए जानेवाले कुछ ऊर्जा में से
- 60 फीसदी से कम कैलोरी और कार्बोहाइडेट्स के सम्मिश्रण वाले पदार्थों का सेवन,
- 20 फीसदी से अधिक मात्रा में प्रोटीन का सेवन और
- 30 फीसदी से अधिक वसायुक्त पदार्थ शामिल हैं।
भारत में खिलाड़ियों द्वारा कंज़्यूम किए जाने वाले पूरक पदार्थों के सेवन से संबंधित अध्ययन, अब तक काफी कम ही किये गए हैं।
अब यह तो हम सभी जानते हैं कि स्वस्थ्य रहने तथा खुद को बीमारियों से बचाये रखने में आहार एवं पोषण बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही, व्यक्ति द्वारा कंज्यूम किये जाने वाले खाद्य पदार्थों पर उसकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति का भी बेहद गहरा प्रभाव पड़ता है। इसी कारण विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के लोगों के हीमोग्लोबिन का स्तर बेहद निम्न होता है, जबकि बेहतर स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त मात्रा में पोषक आहार का सेवन करना ज़रूरी है, खासकर खिलाड़ियों को क्योंकि उन्हें अधिक ऊर्जा की ज़रूरत होती है।
पोषण शिक्षा की भारी उपेक्षा
निम्न मात्रा में फाइबर का सेवन कोलोन कैंसर का कारण बनता है। भारत में अभी भी राष्ट्रीय खेल कार्यक्रमों में पोषण शिक्षा की भारी उपेक्षा की जाती है, जबकि इस दिशा में अधिक गंभीर एवं व्यापक अध्ययन की ज़रूरत है, ताकि खिलाड़ियों को पर्याप्त पोषण और सेहत दोनों मिल सके।
इसके अलावा, आरंभिक स्तर पर भी खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और सुविधाओं पर अधिक फोकस करने की ज़रूरत है, क्योंकि भारत के हर गॉंव, कस्बे और शहर में असंख्य संभावनाएं मौजूद हैं। बस ज़रूरत है उन्हें पहचानने और उन्हें उचित मौका देने की। फिर तो देश में एक नहीं बल्कि कई हिमा दास और रविंद्र जडेजा निकलकर सामने आएंगे।
हिमा ने ऐसे खिलाड़ियों की आंखों में नये सपने दिए हैं और उनके मन में उम्मीदों की एक नयी रोशनी जलाई है। कई लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़की को अभ्यास के लिए सिंथेटिक ट्रैक तक नसीब नहीं हुआ, वह राष्ट्रीय प्रतियोगिता में ऐसा प्रदर्शन कैसे कर सकती है लेकिन अपनी लगन और मेहनत के दम में हिमा ने यह कर दिखाया। हिमा की इस दृढ़ इच्छाशक्ति और हौसले को दिल से सलाम।