केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा लगाने का निर्णय लिया है। शिक्षा के क्षेत्र में इतना क्रांतिकारी सुझाव मैंने इससे पहले नहीं देखा है। यह आइडिया कितना क्रांतिकारी है, इसका अंदाज़ा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि यह माननीय मुख्यमंत्री के उद्यमी दिमाग की उपज है, जो हमेशा अपने सुझावों के लिए सुर्खियों में रहते हैं।
इस प्रोजेक्ट के तहत क्लास-रूम में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे, जिसका सीधा प्रसारण अभिभावकों के स्मार्टफोन में होगा। जिससे कि वे अपने बच्चे की गतिविधियों पर नज़र रख सकेंगे।
अभिभावकों को दूसरा फायदा यह है कि क्रिकेट मैच के दौरान विज्ञापन आने पर वे स्मार्टफोन में देख सकेंगे कि चिंटू स्कूल में क्या कर रहा है? इस प्रोजेक्ट के अगले चरण में बच्चों के शरीर में ट्रांसमीटर लगाया जाएगा, जिससे अभिभावक और शिक्षक जीपीएस से ट्रैक कर सकेंगे कि बच्चा स्कूल बंक तो नहीं कर रहा है।
प्रोजेक्ट के आखिरी चरण में बच्चे के घर में सीसीटीवी कैमरे और उच्च तकनीकी सेंसर लगाए जाएंगे, जिससे शिक्षक स्मार्टफोन में देख सकें कि बच्चा समय से होमवर्क कर रहा है या नहीं।
टेक्नॉलाॅजी का इससे बेहतर और सार्थक उपयोग क्या हो सकता है? हालांकि कुछ नासमझ लोग बच्चों की निजता जैसे बेबुनियाद मुद्दे उठा रहे हैं। अरे! बच्चों की क्या निजता, बच्चे तो बच्चे हैं। निजता के उल्लंघन का डर तो शिक्षकों को है। अब वे किसी को मुर्गा नहीं बना सकेंगे, चाॅक नहीं फेंक सकेंगे और बेवजह क्लास से बाहर नहीं जा सकेंगे। हालांकि कुछ जायज प्रश्न तो ज़रूर बनते हैं।
- पहली बात तो यह कि सीसीटीवी के फुटेज में सिर्फ वीडियो रिकाॅर्ड होता है, ऑडियो नहीं। रिकाॅर्ड होती भी है तो इतनी नहीं कि बबीता और कविता की बातचीत सुनाई दे, मास्टर ललित को घोंचू कहे तो वो सुनाई दे। यह तो फिर मूक फिल्म हो गई।
- दूसरा, स्कूल में बच्चे यूनिफॉर्म पहनते हैं और यूनिफॉर्म तो एक जैसी होती है। अब सीसीटीवी फुटेज में एचडी प्रिंट तो होता है नहीं है, उसमें सारे बच्चे एक जैसे लग सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि क्लास में एरोप्लेन बनाकर अनिकेत उड़ाए और पिटाई घर पर हो जाए साकेत की।
- तीसरा, क्या गारंटी है कि अभिभावक इसका सही से उपयोग करेंगे? ऐसा भी हो सकता है कि चारू घर पहुंचे तो वहां मम्मी बेलन लेकर खड़ी हो और पूछे, “आज क्लास में किस लड़के के बगल में बैठी थी?” या राहुल के पापा उससे पूछे, “नीले सूट वाली मैडम का क्या नाम है?”
सवाल बहुत हैं लेकिन ऐसे सवालों से क्रांतिकारी विचारों को दबाया नहीं जा सकता है और दबाना भी नहीं चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में यह आज़ादी होती है कि कोई कुछ भी ऊटपटांग कर सके चाहे वह कितना ही अव्यवहार्य और अनावश्यक हो।