RTI को व्यवस्था में सकरात्मक बदलाव के लिए लाया गया था। यह व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने वाला कानून था। यह आम आदमी की आवाज़ थी जो सत्ता को झुकने पर मजबूर करती थी। यह आम आदमी का सबसे पावरफुल और सफल कानून था लेकिन अब इसे सरकार अपने मनमाफिक तोड़-मरोड़ रही है जिससे वह सत्ता में बनी रहे।
अब यह आम आदमी का कानून नहीं बल्कि सरकार का कानून हो गया है। अब इस कानून से आम आदमी की व्यवस्था नहीं बदलेगी बल्कि सरकार की व्यवस्था बनेगी। अब यह कहना गलत नहीं होगा कि
RTI कानून का RIP (रेस्ट इन पीस) या राम नाम सत्य हो गया है।
क्यों हो रहा है विरोध?
विपक्ष के पुरज़ोर विरोध के बाद भी सूचना का अधिकार (संशोधन) बिल, 25 जुलाई 2019 को संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया। सरकार का लोकसभा में बहुमत है इसलिए वहां बिल का पास होना निश्चित था लेकिन राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत ना होते हुए भी यह बिल वहां पास हो गया। यह इसलिए हुआ क्योंकि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP), तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) और बिजू जनता दल (BJD) ने समर्थन किया। हालांकि इन दलों ने आरटीआई संशोधन विधेयक का समर्थन क्यों किया इसपर बहुत से लोग प्रश्न उठा रहे हैं। इन दलों ने भी अपने इस समर्थन पर अपना रुख कुछ साफ नहीं किया है।
आप सभी को जानना चाहिए कि इस संशोधन के ज़रिए सूचना के अधिकार कानून 2005 में क्या बदलाव किए गए हैं, जिसपर विपक्षी दलों के साथ-साथ RTI एक्टिविस्ट और आम जन मानस भी गंभीर आपत्तियां जता रहे हैं।
- पहला बदलाव: केंद्र और राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और सूचना आयुक्त के अधिकारों में कटौती कर दी गई है।
- दूसरा बदलाव: मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल और कार्यसीमा की परिभाषा केंद्र सरकार ही तय करेगी और साथ ही इसमें यह भी जोड़ा गया है कि दोनों अधिकारियों के वेतन, भत्ते और सेवा से जुड़ी अन्य शर्तें भी केंद्र सरकार ही निर्धारित करेगी।
ये कुछ बदलाव हैं जिसकी वजह से विपक्ष के साथ-साथ RTI एक्टिविस्ट और आम जन मानस इसे पास नहीं होने देना चाहते थे। इन सबका आरोप है कि सरकार ने ये बदलाव इसलिए किए हैं ताकि सूचना आयुक्तों की शक्तियों को कम कर उन्हें अपने नियंत्रण में किया जा सके।
अक्सर देखा जाता है कि राज्यों की पुलिस पर उन राज्यों की सरकार का वर्चस्व कायम रहता है और उन्हें उनके दबाव में काम करना पड़ता है। पुलिस हमेशा नेताओं और सरकार से दब कर कार्य करती है। अब ठीक उसी प्रकार RTI एक्ट के साथ भी वही व्यवहार सरकार करने जा रही है। जिससे सूचना आयुक्त सरकार के दबाव में काम करे।
आरटीआई का मकसद
RTI एक्ट को भ्रष्टाचार खत्म करने, सरकारी काम में पारदर्शिता लाने, अधिकारियों की जवाबदेही बढ़ाने और जनता को सशक्त बनाने के मकसद से लाया गया था। यह आम जन मानस का सरकार से अपने हक के लिए लड़ने का सबसे मजबूत हथियार था। इसकी सबसे खास बात यह है कि
- इसमें जनता की ओर से पूछे गए सवाल का जवाब निश्चित समयावधि 30 दिन में देने की बाध्यता भी थी और ना देने पर उन्हें प्रतिदिन के हिसाब से फाइन/दंड का भी प्रावधान था।
- RTI एक्ट 2005 के तहत यह ज़रूरी किया गया था कि सवाल पूछे जाने पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अधिकारियों को अपने विभाग और उसकी प्रक्रिया से जुड़ी जानकारियां उजागर करनी पड़ेंगी।
- RTI एक्ट 2005 के मुताबिक केंद्र और राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल 5 साल का होता था, वहीं उनका वेतन केंद्र और राज्यों के मुख्य चुनाव आयुक्तों की तरह था। जिससे यह एक स्वतंत्र और निष्पक्ष कार्य करता था।
लेकिन नए संशोधन के बाद से अब यह केंद्र सरकार के आदेशानुसार चलेगा। केन्द्र सरकार जो जानकारी चाहेगी वही जानकारी आपको मिलेगी एक अन्य पहलू और है कि केंद्र से अलग जो राज्य सरकारें होंगी उन्हें भी प्रभावित किया जाएगा।
नए संशोधन के बाद का बदलाव
विपक्ष के साथ-साथ RTI एक्टिविस्ट और आम जन मानस का कहना है कि RTI एक्ट 2005 बनने के बाद से यह कानून बिना किसी दिक्कत के चल रहा था और सूचना आयुक्त का पद सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त था। इस दौरान वेतन और कार्यकाल के लिए वे किसी भी तरह से सरकार पर आश्रित नहीं थे और इसी वजह से अपना काम मुक्त होकर कर रहे थे।
लेकिन नए संशोधनों के बाद अब सूचना आयुक्तों का वेतन और कार्यकाल केंद्र सरकार ही तय करेगी। ऐसे में सूचना आयुक्तों को सरकार के प्रति जवाबदेह बनाते हुए उनकी आज़ादी को सीमित कर दिया गया है क्योंकि कहीं ना कहीं अपना वेतन और कार्यकाल बढ़ाने के लिए आयुक्त सरकार के खिलाफ फैसले लेने से बचेंगे।
RTI एक्ट 2005 के मूल स्वरूप के कानून ने सार्वजनिक सतर्कता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया और प्लेटफॉर्म बनाकर दिया था, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल है। ऐसे में विपक्ष के साथ-साथ RTI एक्टिविस्ट और आम जन मानस का कहना है कि सरकार ने इस कानून को बिना नाखून और दांत वाला शेर बना दिया है और पिंजरे में बंद करके इसकी शक्तियां हड़प ली हैं।
RTI एक्ट से सरकार के बहुत सारे घोटाले सामने आए थे। जिससे राजनैतिक दल को बहुत नुकसान भी हुआ इसके उदाहरण हैं-
1. कॉमनवेल्थ
2. 2G स्पेक्ट्रम
3. कोयला आवंटन
4. नोटबन्दी में वापस आई करेंसी और अन्य जानकारी
इन सभी और अन्य मामलों की जानकारी RTI से प्राप्त की गई थी, जिससे UPA सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा था।
आखिर क्यों बदला गया RTI एक्ट
वैसे 2014 से जब से मोदी सरकार आई है, तब से RTI एक्ट पर हमला कर रही है क्योंकि 2018 तक 11 में से 8 आयुक्त के पद खाली थे। जिसकी वजह से 32 हज़ार से ज़्यादा RTI एक्टिविस्ट के सवालों के जवाब पेंडिंग हैं ।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फटकार के बाद 2019 में 4 आयुक्तों की नियुक्ति की लेकिन फिर भी 4 पद अभी भी रिक्त हैं। अब तो पूरे तरीके से सरकार ने इस एक्ट को अपनी कठपुतली बना लिया है।
हाल ही में ही कुछ अन्य मामले सामने आए हैं जिनसे सरकार बेचैन हो गई और इसके चलते इस कानून में संशोधन ले कर आ गई है। वे मामले क्या हैं एक बार आप की नज़र में लाने की कोशिश करता हूं।
1. मोदी जी की डिग्री को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय मे RTI, जो अब कोर्ट में है
2. बैंक में NPA और डिफॉल्टरों की लिस्ट की जानकारी को लेकर RTI, जो अब कोर्ट में है।
यही सब मामले हैं जिसने सरकार को इस कानून को बदलने पर मजबूर कर दिया है।