चंद्रमा की सतह के लिए भारत का पहला मिशन और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के लिए दुनिया का पहला मिशन चंद्रयान-2 कल लॉन्च हो गया, जिसके 6 सितंबर को चंद्रमा पर पहुंचने की उम्मीद है। यह मिशन भारत के पहले चंद्र मिशन ‘चंद्रयान’ का अत्याधुनिक रूप है, जो 10 साल पहले लॉन्च हुआ था।
‘बाहुबली’ या जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क 3 रॉकेट इंजन के ज़रिए लॉन्च हुए इस यान में एक ऑर्बिटर, ‘विक्रम’ नामक एक लैंडर तथा ‘प्रज्ञान’ नामक एक रोवर शामिल है।
चंद्रयान-2 अपने साथ क्या-क्या ले जा रहा है?
चंद्रयान-2 अपने साथ भारत के 13 पेलोड्स और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ का एक लेज़र उपकरण ले जाएगा। इन सभी सैटेलाइट्स का वज़न करीब 3.8 टन या 3800 किलोग्राम है। इसे लेकर, इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने कहा था,
नासा का पेलोड मैत्रीपूर्ण संबंधों के आधार पर भेजा जा रहा है और उससे कोई भुगतान नहीं वसूला जाएगा।
नासा ने मिशन को लेकर कुछ दिन पहले कहा था,
इस उपकरण से चांद की सटीक दूरी मापने में मदद मिलेगी। हम पूरी सतह को जितना संभव हो सके उतने अधिक लेज़र रिफ्लेक्टर से भरने का प्रयास कर रहे हैं।
वहीं, भारत के 13 वैज्ञानिक उपकरण चंद्रमा की स्थलाकृति, वहां का खनिज विज्ञान, बाहरी वातावरण, हाइड्रॉक्सिल, उसकी सतह की मैपिंग और पानी की खोज के बारे में अध्ययन करेंगे।
पूरी तरह से एक स्वदेशी मिशन है चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 पूरी तरह से एक स्वदेशी मिशन है लेकिन भारत अंतरिक्ष में पेमेंट बेसिस के तहत गाइडेंस और नैविगेशन के लिए नासा के डीप स्पेस नेटवर्क का इस्तेमाल करेगा और इस मिशन को इसरो का अब तक का सबसे जटिल अभियान बताया जा रहा है।
इसकी लागत तकरीबन ₹1000 करोड़ है, जिसमें स्पेसक्राफ्ट के सिस्टम के लिए ₹603 करोड़ जबकि लॉन्चर के लिए ₹375 करोड़ खर्च हुए हैं। इस यान के लैंडर और रोवर में तिरंगा और रोवर के व्हील में अशोक चक्र अंकित है।
इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने इस मिशन को एजेंसी का अब तक का सबसे जटिल मिशन बताते हुए कहा है,
लैंडर के अलग होने एवं चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के बीच वाले 15 मिनट सबसे ज़्यादा बेचैनी भरे होंगे।
इसरो ने यह भी कहा है,
चंद्रयान-2 चंद्रमा के इस क्षेत्र का अध्ययन करेगा, जहां अब तक कोई मिशन नहीं पहुंच पाया है। यह यान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 70 डिग्री के साउथ लैटीट्यूड पर उतरेगा।
अब तक कौन-कौन से देश चंद्रमा की सतह पर उतर चुके हैं?
अब तक तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस), अमेरिका और चीन के अंतरिक्षयान ही चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतर पाए हैं। वहीं, जापान चंद्रमा की सतह पर अपना एक छोटा यान स्लिम 2020-21 के बीच भेज सकता है, जो वहां उसकी ज्वालामुखीय गतिविधियों का अध्ययन करेगा।
हाल ही में, चंद्रमा की सतह पर इज़रायल ने भी अपना यान बेरिशीट भेजने की कोशिश की थी लेकिन उसका यान क्रैश हो गया। अगर ₹690 करोड़ की लागत वाला यह मिशन सफल हो जाता तो भविष्य में चंद्रमा पर कम लागत वाले अंतरिक्षयान भेजने का रास्ता खुल जाता।
बेरीशीट निजी फंड से लॉन्च किया गया दुनिया का पहला चंद्रमिशन था। अगर भारत सतह पर उतरने में सफल हो जाता है, तो वह ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा सफल देश बन जाएगा।
चंद्रमा भविष्य में मंगल ग्रह समेत अंतरिक्ष के अन्य हिस्सों में जाने के लिए एक गेटवे का काम कर सकता है, जिसके लिए नासा काम भी कर रही है। नासा की 2026 तक चंद्रमा की ऑर्बिट में एक छोटा स्पेस स्टेशन बनाए जाने की योजना है।
अगर यह मिशन सफल होता है तो भारत पहला ऐसा देश बन जाएगा जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचेगा।
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सोर्स- DW.com, financialexpress.com, news18.com, thehindu.com, news18.com