मित्रों, बिहार में एक कहावत है कि अंधे के आगे रोए अपना दीदा (दृष्टि) खोए। हां, मैं उसी बिहार की बात कर रहा हूं जहां से इन दिनों रोज़ाना तटबंधों के टूटने और गांवों के बह जाने की खबरें आ रही हैं। बिहार डूब रहा है लेकिन यह कौन-सी नई बात है बिहार के लिए? बिहार तो साल भर आंसुओं के समंदर में डूबा रहता है। अभी महाराष्ट्र के एक मंत्री ने बांध टूटने के बाद बयान दिया कि केकड़ों ने बांध में छेद कर दिया जिससे बांध टूट गया। हालांकि बिहार के किसी नेता या बयानवीर मंत्री ने अभी तक इस तरह की महान घोषणा नहीं की है लेकिन मुझे लगता है कि बिहार में अगर ऐसा हुआ भी तो आरोप चूहों पर जाएगा क्योंकि बिहार के चूहे बड़े बदमाश हैं। हज़ारो लीटर शराब तक पी जाते हैं। वैसे भी बिहार में केंकड़े खाने की चीज़ हैं आरोप लगाने की नहीं।
वैसे बिहार के विभिन्न डूबे हुए ज़िलों से चूहों को खाने की खबरें भी आ रही हैं क्योंकि राहत या तो नदारद है या फिर जारी है भी तो उन बस्तियों से दूर जहां लोग फंसे हुए हैं, निर्जन स्थानों पर भोजन और पानी के पैकेट गिराए जा रहे हैं। वैसे भी जिस बिहार में बिना रिश्वत के एक पत्ता तक नहीं हिलता भोजन देने से पाप नहीं लगेगा क्या?
मित्रों, मैं पूछना चाहता हूं बिहार सरकार से कि बिहार के तटबंध इन दिनों बम क्यों बने हुए हैं? क्या इन तटबंधों की मरम्मत सिर्फ कागज़ पर नहीं की गयी? क्या सरकार के मंत्री भी इस कागज़ के खेल में शामिल होकर हर साल गाँधी छाप कागज़ नहीं कमा रहे? मैं पूछना चाहता हूं बिहार सरकार से कि अगर देखभाल नहीं कर सकते तो तटबंध बनाए ही क्यों गए और नदियों के नैसर्गिक प्रवाह में बाधा क्यों डाली गयी? क्या यह बाढ़ भ्रष्टाचार की बाढ़ नहीं है?
मित्रों, मैं बिहार की सरकार को कई बार अंधी-बहरी मगर बड़बोली सरकार कह चुका हूं इसलिए मुझे उससे तो कोई उम्मीद नहीं है वो तो पूछने की आदत है इसलिए पूछ लिया था लेकिन क्या केंद्र की सरकार भी अंधी-बहरी और बड़बोली है? अभी तक उसने बिहार के लिए किसी भी पैकेज की घोषणा नहीं की, क्यों? क्या बिहार कश्मीर, केरल और उड़ीसा की तरह भारत का हिस्सा नहीं है? क्या बिहार में इन्सान नहीं रहते कीड़े-मकौड़े रहते हैं? क्या भाजपा बिहार को अपनी ज़मींदारी मानती है और सोचती है कि चाहे इनको राम भरोसे छोड़ दो वोट तो ये हमें ही देंगे?
वैसे मैं आपको याद दिला दूं कि बिहार में 2008 के कोशी महाप्रलय के समय मोदी जी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने बिहार को 5 करोड़ का सहायता पैकेज भेजा था और नीतीश जी ने तब उसे स्वीकार नहीं किया था। खैर अब तो वो पुरानी बात हो गयी। मोदी जी को पैकेज की घोषणा कर देनी चाहिए, शायद इस बार नीतीश जी पैकेज को अस्वीकार नहीं करेंगे। कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी जी इस बार इसी डर से पैकेज की घोषणा नहीं कर रहे हैं कि कहीं नीतीश जी इस बार ले ही ना लें? कुछ भी हो सकता है!
मित्रों, प्रधानमंत्री जी ने दो दिन पहले भाजपा सांसदों को बैठक आयोजित कर निर्देश दिया कि वे अपने क्षेत्रों में जाकर लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दें। भाजपा सांसदों की धृष्टता तो देखिए अभी तक कोई सांसद बिहार नहीं आया जिससे उन लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में भरपूर जानकारी मिलती जिनके परिजन भ्रष्टाचार की बाढ़ में बह गए या फिर जिनकी ज़िंदगीभर की जमा पूंजी पानी बहा ले गया। आएं भी कैसे, संसद का सत्र जो चल रहा है और संसद का सत्र आगे तो बढ़ाया नहीं जा सकता भले ही बिहार में महाप्रलय ही क्यों ना आ जाए।
वैसे बिहार सरकार ने बड़ी दरियादिली दिखाते हुए घोषणा की है कि हर बाढ़ प्रभावित परिवार को 6-6 हज़ार रूपये दिए जाएंगे। 6-6 हज़ार रूपये भाई। बिहारियों के आंसुओं की कीमत 6 हज़ार, एक परिवार के वोट की कीमत 6 हज़ार, असहनीय भ्रष्टाचार को चुपचाप आंसू पी-पीकर सहने की कीमत मात्र 6 हज़ार रूपये। इसमें से भी ना जाने कितने रूपये फिर से भ्रष्टाचार के मौसेरे भाई घोटाले की भेंट चढ़ जाएंगे हर वर्ष की भांति। जब बिहार सरकार और भारत सरकार का कलेजा ही बिहार की जनता के लिए पत्थर का हो रहा है तो दुनिया क्यों अपने आंसुओं का अपव्यय करे। वैसे भी रफी साब कह गए हैं कि दुनिया पागल है या फिर मैं दीवाना।