नाम मत पूछो मेरा, कभी असम से कभी बिहार से हूं मैं
जात मत पूछो मेरी, एक बाढ़ पीड़ित हूं मैं
काम मत पूछो मेरा, बाढ़ से बचने के लिए दिन रात प्रयास कर रहा हूं मैं
धर्म मत पूछो मेरा, मेरे जैसे बाढ़ पीड़ितों के आंसू पोछ रहा हूं मैं
भगवान के बारे में मत पूछो मुझसे, जो भी हमारी मदद कर रहा है उसे ही भगवान समझ रहा हूं मैं
हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ आई
हमारे पास जो भी था वह अपने साथ ले गई
बस हमारी हिम्मत और हौसले को हाथ ना लगा पाई
इसी सोच के साथ किनारा ढूंढ रहा हूं मैं
जिस नदी के किनारे रहते हैं हम उसने रौद्र रूप धारण किया
मेरे घर में पानी घूस गया, मेरा गॉंव पानी में डूब गया
खेत खलिहानों को अपने में समा लिया
कैसे-तैसे करके खुद को और अपनों को बचाने में अपनी पूरी ताकद लगा रहा हूं मैं
पूरे प्रयासों के बावजूद भी कुछ लोग बुरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ गए
कुछ लोग मकान के गिरने से मलबे के अंदर दब गए
तो कुछ लोग बाढ़ में बह गए
जिन्होंने अपनों को खोया उनके दुख को समझ पा रहा हूं मैं
बाढ़ में हमारा जो कुछ था वह सब लुट गया
हमारे घर और खेतों को बर्बाद कर दिया
हमारी ज़िन्दगी को उजाड़ दिया
कल के नहीं बस आज के बारे में सोच रहा हूं मैं
सबकुछ बह गया पर मुझमें हिम्मत अभी बाकी है
जैसा था वैसा फिर से खड़ा कर पाऊंगा यह उम्मीद मुझमें बाकी है
पूरा भारत हमारा साथ देगा यह यकीन मुझमें बाकी है
एक नई शुरुआत के लिए कल की सुनहरी सुबह का इंतज़ार कर रहा हूं मैं
हर साल देश का एक हिस्सा बाढ़ से तो दूसरा सूखे से प्रभावित रहता है
एक ही देश में कोई पानी से तो कोई पानी के कारण लड़ता है
कोई पानी में तो कोई पानी के लिए तड़पता है
क्या यह सरकार इसमें सुधार लाएगी, यह सवाल सरकार से पूछ रहा हूं मैं।