जिस तरह से बंदूक उठाने वाले भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद देशभक्त हैं, आज उसी तरीके से गोडसे को भी देशभक्त बताया जा रहा है। समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा करके गोडसे का मान बढ़ाया जा रहा है या भगत सिंह और आज़ाद का मान घटाया जा रहा है।
30 जनवरी 1948 को गोली सिर्फ गाँधी जी पर नहीं चली थी। वह गोली रविन्द्र नाथ टैगोर के “बापू” पर भी चली थी, सुभाष चन्द्र बोस के “राष्ट्रपिता” पर भी चली थी, भगत सिंह और पटेल के आदर्शों पर भी चली थी।
जो लोग यह लांछन लगाते हैं कि गाँधी अय्याश थे और लड़कियों के साथ सोते थे, उन्हें मैं यह बताना चाहूंगा कि यह लांछन वे उन तमाम औरतों पर भी लगा रहे हैं जो दिल और जान से स्वतंत्रता आंदोलन में गाँधी जी के साथ थीं।
गाँधी जी की बेटियों समेत जयप्रकाश नारायण की पत्नी, एनी बेसेन्ट, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित और ऐसे कई नाम हैं, जो ‘सविनय आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में गाँधी जी के साथ लड़ी थीं। ऐसा करके आप उनके भी चरित्र पर सवाल उठा रहे हैं।
दरअसल, यह तमाम लांछन नए नहीं हैं। यह अफवाहें उस दौर में गाँधी जी को बदनाम करके स्वतंत्रता आंदोलन को निरस्त कर देने के लिए अंग्रेज़ों द्वारा उछाली गई थी। इन अफवाहों को आज भी लोग स्वार्थ सिद्धि के लिए फैलाते रहते हैं। इससे किसको फायदा है, यह सोचने की ज़रूरत है।
इसलिए पहले उस दौर को समझिए। उस दौर की भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियों को समझिए, गाँधी को समझिए फिर ज्ञान बांटिए। मैं यह नहीं कहता कि गाँधी जी में कोई कमी नहीं थी लेकिन कमी तो राम जी में भी थी। इसका क्या मतलब कि उनके कर्म और त्याग को उन गलतियों की आड़ में गालियां दी जाए? गाँधी जी की आलोचना बिल्कुल होनी चाहिए लेकिन कम-से-कम तथ्यों के आधार पर तो हो, ना कि फेक न्यूज़ के आधार पर।
गाँधी वह इंसान हैं जिनके दिखाए राह पर चल कर आज भी लोग नोबेल पुरस्कार जीत जाते हैं। नेल्सन मंडेला और कैलाश सत्यार्थी के उदाहरण हमारे सामने हैं। गाँधी वह इंसान हैं जिनकी मूर्तियां आज भी कई देशों की संसद में भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं।
फेक न्यूज़ के ज़रिये गाँधी पर कीचड़ उछालना देश के सम्मान पर कीचड़ उछालने के बराबर है। वह भी महज़ अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए यह काम करना शर्मनाक है। आपका गाँधी को बुरा कहना, नेहरू, पटेल, भगत सिंह, राजेन्द्र प्रसाद, टैगोर और सुभाष के आर्दशों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है।