दिल्ली यात्रा के दौरान मैंने कई महत्वपूर्ण किताबें खरीदी जिनमें ‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’, जो महान विद्वान प्रोफेसर डॉ. रामशरण शर्मा की एक कालजयी रचना है। हर भारतीय को यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए।
इस किताब में तथ्यों के आधार पर बड़े ही शानदार तरीके से यह बताने की कोशिश की गई है कि किस प्रकार वर्ण अव्यवस्था की कठोरता ने हिंदुओं को विभाजित किया। आज हिंदू, जाति, वर्ण और ऊंच-नीच को ही धर्म मानते हैं क्योंकि कोई भी हिंदू महर्षि ऐसे कानूनविद नहीं हुए जिन्होंने समाज की इकाई वर्ण-जाति की बजाय व्यक्ति को माना हो।
हमारे धर्म का आधार ही गलत है
इस किताब को पढ़ने से एक बात और स्पष्ट होती है कि धर्म सूत्रों के बहुत बाद मनुस्मृति लिखी गई थी। आर्यसमाजी भ्रम फैलाते हैं कि यह लाखों साल पुरानी है। हिंदू, हिंदू से नफरत करता है जिसका रहस्य हमारे धर्म शास्त्रों में है, जो हमें विभाजन पर आधारित सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, मर्यादा और कानून या धर्म देते हैं। जब कोई हिंदू इन नियमों को तोड़ता है तब उसे अधर्मी माना जाता है।
इस भेदभाव को बनाए रखना राजा या क्षत्रिय का कर्तव्य है। इसलिए हर स्मृतिकार कहता है कि वर्ण या जाति की रक्षा के लिए हथियार उठा लो। जैसे दलितों की बारात रोकने या अंतरजातीय विवाह के समय हिंदू हथियार उठा लेते हैं।
हिंदू, हिंदू के बीच में कभी भाईचारा नहीं हो सकता क्योंकि हमारे धर्म का आधार ही गलत है, जो हमें दूसरे हिंदू से समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय की बजाय असमानता, अस्वतंत्रता, अबंधुत्व और अन्याय सिखाता है। सारी दुनिया में मानव ने मानव का शोषण किया है मगर उसे कभी धर्म की संज्ञा नहीं दी गई। हमारे धर्म में एक हिंदू द्वारा दूसरे हिंदू से एक निश्चित दूरी बनाए रखना और उस दूरी के आधार पर भेदभाव या शोषण करना ही धर्म है।
यदि हम हिंदू वास्तव में एकता और भाईचारा चाहते हैं तो हमें अपने धर्म के आधार, वर्ण-जाति अव्यवस्था को मानने से इन्कार करना होगा। हिंदू एकता का आधार केवल मुस्लिम, ईसाई, पाकिस्तान और चीन का भय या उनसे नफरत नहीं हो सकता। हिंदू समाज के सबसे बड़े शत्रु वे शास्त्र हैं, जो वर्ण-जाति अव्यवस्था को धर्म की संज्ञा देकर हिंदू को हिंदू से तोड़ते हैं।
हिन्दुओं को करनी होगी पहल
आइए एक नए हिंदू समाज की रचना करें जिसमें समाज की इकाई वर्ण या जाति ना होकर व्यक्ति हो और हम सारे हिंदू मिलकर स्मृतियों पर आधारित अधर्म में आग लगाकर नई स्मृति (हिंदू कोड बिल) ‘हिंदू पर्सनल लाॅ’ के माध्यम से एक नूतन हिंदू समाज का निर्माण करें, जो समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय पर आधारित हो।
हमारे पूर्वज़ों ने हज़ारों सालों से जिन शूद्रों (OBC) और अंत्यजों (SC-ST) का सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक तौर पर बहिष्कार किया है, आइए उन्हें वर्गीय प्रतिनिधित्व देकर अपने समकक्ष बनाएं। उन्हें यह एहसास दिलाएं कि वे भी भारत माता के लाल हैं। उन्हें भी सम्मान से जीने का उतना ही हक है जितना हम तथाकथित सवर्ण हिंदुओं को है।
संदर्भ- लेख में प्रयोग किए गए तथ्य रामशरण शर्मा की किताब ‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’ से लिए गए हैं।