कई लोग यह मानते हैं कि महिलाओं की समस्याओं को महिलाएं ही ज़्यादा अच्छी तरह से समझ सकती हैं लेकिन पटना शहर के ट्रांसजेंडर्स समुदाय ने इन मान्यताओं को पूरी तरह से झूठला दिया है। उन्होंने भी महिलाओं की समस्याओं को समझते हुए एक अनूठी पहल की शुरुआत की है।
पटना में कुछ ऐसे ट्रांसजेंडर्स हैं, जिन्होंने महिलाओं के माहवारी की तकलीफ को बड़ी ही गंभीरता से समझा है और इसे ध्यान में रखते हुए वे रियूज़ेबल पैड तैयार कर रही हैं। सैनिटरी पैड निर्माण के इस काम में उन्हें बिहार राज्य भवन निर्माण निगम लिमिटेड द्वारा ज़रूरी मदद की जाती है।
ट्रांसजेंडर समुदाय की ओर से इस खूबसूरत पहल की शुरुआत ट्रांसजेंडर समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठन ‘दोस्ताना सफर’ की ओर से की जा रही है, जिसकी अध्यक्ष रेशमा प्रसाद हैं। रेशमा स्वयं एक ट्रांस वुमेन हैं। ‘दोस्ताना सफर’ के ज़रिये रेशमा किन्नर समुदाय की हक की लड़ाई लड़ रही हैं।
वह विभिन्न मंचों पर किन्नरों और महिलाओं के हक को लेकर काफी मुखरता से अपनी आवाज़ उठाने के लिए भी जानी जाती हैं। रेशमा प्रसाद बताती हैं कि उनकी पांच सदस्य की टीम है, जो रियूज़ेबल पैड बनाती है। उनकी टीम में डिंपल जैसमीन, वीरा यादव, रानी तिवारी, मानसी अग्रवाल, शोभा और मनोज शामिल हैं।
मनोज ने एनआइडी से डिज़ाइनिंग का कोर्स किया है। वह पैड की डिज़ानिंग का काम संभालते हैं। बिहार के भभुआ ज़िले में इसकी सिलाई होती है। सिलाई के काम में ट्रांसजेंडर समुदाय के ही कई लोग जुड़े हैं। पटना के गोरिया टोली स्थित ‘दोस्ताना सफर’ के ऑफिस में इन पैड्स की पैकिंग की जाती है।
पर्यावरण प्रदूषण को ध्यान में रखकर बना रही हैं रियूज़ेबल पैड
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक सैनिटरी नैपकिन के निर्माण में प्लास्टिक पदार्थ का उपयोग होता है। इसी वजह से इन नैपकिंस को स्वास्थ्य के लिहाज़ से बेहद खतरनाक माना जा रहा है। इससे कैंसर होने की आशंका भी जताई जा रही है।
इसके निस्तारण की सही जानकारी के अभाव में अधिकांश महिलाएं इसे कचरे के डिब्बे में फेंक देती हैं, जो अन्य प्रकार के कचरे में मिक्स हो जाता है। इसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता और खुले में ऐसा कचरा उठाने वाले के स्वास्थ्य को भी इससे खतरा होता है। बाज़ार और स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छता अभियानों के बीच बढ़ता यह असंतुलन पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
भारत में हर महीने एक अरब से ज़्यादा सैनिटरी पैड गैर निष्पादित हुए सीवर, कचरे के गड्ढों, मैदानों और जल स्रोतों में जमा होते हैं। जो बड़े पैमाने पर पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। यहां हर साल करीब 1,13,000 टन सैनिटरी पैड्स का कचरा निकलता है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए ‘दोस्ताना सफर’ के सदस्यों ने रियूज़ेबल पैड निर्माण की पहल की है। हाइजिन का ख्याल रखते हुए इन पैड्स को फलालेन के कपड़े से बनाया जाता है। इन पैड्स को एक बार यूज़ करने के बार इन्हें साबुन या डिटर्जेंट से अच्छी तरह धोने और धूप में सुखाने के बाद दोबारा भी यूज़ किया जा सकता है।
इस तरह एक पैड को करीब दो सालों तक इस्तेमाल किया जा सकता है। दोस्ताना सफर का उद्देश्य ऐसे पैड्स के उपयोग को बढ़ावा देकर प्लास्टिक प्रदूषण को महिलाओं के शरीर के डायरेक्ट संपर्क में आने से रोकना है।
हाल ही में विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस 2019 के अवसर पर बिहार राज्य भवन निर्माण निगम लिमिटेड के सहयोग से ‘दोस्ताना सफर’ के किन्नर साथियों द्वारा निर्मित पुनः प्रयोग किये जाने वाले इन सैनिटरी पैड्स का नि:शुल्क वितरण पटना के पूर्वी लोहानीपुर क्षेत्र में स्थित अंबेडकर नगर स्लम बस्ती में रहने वाली महिलाओं एवं किशोरियों के बीच किया गया। इस मौके पर शहर के कई गणमान्य अतिथिगण भी मौजूद थे।