कुपोषण, गरीबी और बदहाली के कारण बीमारी का कहर झेल रहे बिहार के दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और गरीबों को देखने वाला कोई नहीं है। सरकार ने नाम मात्र की व्यवस्था स्थानीय पीएचसी और हॉस्पिटल में कर रखी है, जिसके कारण प्रतिदिन बच्चों की मृत्यु की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
कुपोषण और गरीबी है इंसेफेलाइटिस का बड़ा कारण
इंसेफेलाइटिस बुखार से पीड़ित होने के कारण तो बहुत हैं लेकिन उनमें मुख्य कारण कुपोषण और साफ सफाई का नहीं होना है। विशेषज्ञ बताते हैं कि पीड़ितों में 90% बच्चे कुपोषित हैं, गरीब हैं। सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद यह स्थिति सरकारी दावों की पोल खोलती है।
अभी तक 200 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है, इन मौतों पर दैनिक भास्कर अखबार ने सामाजिक अध्ययन किया और पाया कि मृत्यु को प्राप्त करने वाले इन गरीब निस्सहाय बच्चों में 77% दलित हैं, 11% अल्पसंख्यक तथा 12% अन्य जाति के बच्चे हैं। इन आंकड़ों को देखकर यह प्रश्न उठता है कि इसके बाद भी दलित नेता चुप क्यों हैं? क्या इन बच्चों के माता-पिता वोट नहीं गिराते हैं?
जिस समय बिहार में बच्चे मर रहे थे, उस समय चिराग पासवान गोवा में थे
चुप रहने की तो बात छोड़ दीजिए महाराज बिहार और देश के बड़े दलित नेताओं में शुमार श्री राम विलास पासवान के राजनैतिक वारिस और पुत्र श्री चिराग पासवान ने तो हद ही पार दी। जिस समय बिहार में सैकड़ों बच्चों की जान बुखार के कारण जा रही थी, उस समय चिराग पासवान जी गोवा में फिल्मी अभिनेत्रियों के साथ मौज कर रहे थे।
इस खबर के छपने के बाद भी चिराग पासवान ने यह ज़हमत नहीं उठाई कि वह मुज़फ्फरपुर जाते और पीड़ित बच्चों का हाल-चाल जानते। गोवा में ऐश करने के बाद चिराग पासवान प्रधानमंत्री के साथ फाइव स्टार होटल में मौज करते हुए दिखे। इनकी संवेदनहीनता का कोई जवाब नहीं है, इनको अपने आपको दलित नेता कहने का कोई अधिकार नहीं है, अपने आपको दलित नेता कहना बंद कर दो चिराग पासवान।
कहां हैं रामविलास और जीतन राम मांझी
संवेदनहीनता की इतनी बड़ी पराकाष्ठा कुछ नहीं हो सकती है, खासकर दलित नेताओं की। बिहार में जीतन राम मांझी और रामविलास पासवान अपने आपको बड़े दलित नेता कहते हैं लेकिन इतनी बड़ी त्रासदी होने के बावजूद उनके मुंह पर दही जमा हुआ है। मरने वालों में 77% दलित हैं फिर भी उनकी आवाज़ नहीं निकल रही है क्यों? क्योंकि आज चुनाव नहीं है इसलिए?
मायावती दलितों की मौत पर चुप क्यों?
भारत के दलितों की सबसे बड़ी नेता कहलाने वाली मायावती कहां हैं? मायावती ने अभी तक इस पर एक भी बयान नहीं दिया है, ना ही उनकी पार्टी के किसी नेता ने पीड़ित बच्चों के परिवार वालों से मुलाकात की है।
क्या बिहार के मरने वाले दलितों और पिछड़ों के बच्चों से मायावती का कोई संबंध नहीं है? क्या यह दलित बच्चे जो मौत के शिकार हो रहे हैं, उनके माता-पिता वोट नहीं गिराते हैं? क्या ये 77% मरने वाले दलित मायावती के दलित वोट बैंक में शामिल नहीं हैं? ये सारे सवाल इस मुद्दे पर मायावती के संवेदनहीन रवैये को दर्शाता है।
जब सत्ता बेलगाम होती है तो लोगों को विपक्ष से आशा होती है लेकिन ऐसा लगता है कि विपक्ष के नेताओं को बिहार के बच्चों की मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता है।