शीर्षक पढ़कर लग रहा होगा कि यह कैसा सवाल है लेकिन जनाब ने इसी शब्द का प्रयोग किया था। हमने स्नातक की परीक्षा पास ही कि थी और परास्नातक में दाखिला लेने निकल पड़े थे। हमने अपना रिज़र्वेशन एसी 3 में कराया था। सोचा गर्मी है और स्वास्थ्य भी कुछ सही नहीं लग रहा तो एसी कोच में चले जाते हैं।
इत्तिफाक से हमारी बर्थ नीचे वाली थी। नई दिल्ली से हमने ट्रेन में अपने कदम रखे और प्रस्थान किया। ट्रेन जैसे ही हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंची तभी एक सभ्य परिवार ने भी प्रवेश किया। समान व्यवस्थित करने के बाद परिवार के मुखिया उनकी पत्नी और बच्चों से बातचीत का दौर चालू हुआ।
परिवार के मुखिया (जो अमूमन पुरुष होते हैं) देश के एक विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं, उनकी पत्नी अब गृहणी हैं। पहले वह एक निजी संस्थान में अच्छे पद पर कार्यरत थीं। उनके परिवार में महिलाओं का बाहर काम करना संस्कारों के विरुद्ध है, यही कारण बताया था उन्होंने।
बातों का दौर शुरू ही हुआ था कि अचानक टीटीई/टीसी जी टिकट चेक करने आ धमके। वह थोड़ा सांवले से थे। उनके जाने के बाद अचानक ही प्राध्यापक जी की ज़ुबान से निकाल पड़ा कि यहां भी आरक्षण की वजह से आदिवासियों को तो बिना पढ़े नौकरी मिल जाती है। एससी/एसटी/ओबीसी वालों को तो कुछ करना ही नहीं पड़ता और हमारी चर्चा का विषय बदलकर जाति और जातिगत आरक्षण पर केन्द्रित हो गया।
मेरे द्वारा टीटीई/टीसी की जाति का बचाव करने पर एक अजीब सी बात कही उन्होंने या यूं कहिए कि सवाल किया,
आप तो ऊंची जाति के हो ना? तो फिर इन नीची जाति का पक्ष कैसे ले सकते हो?
सबसे आश्चर्य तब हुआ जब उनकी धर्मपत्नी ने इस बात का प्रबल समर्थन किया। प्राध्यापक जी का कहना था कि ये नीची जाति के लोग आरक्षण के बलबूते ऊंचे ओहदों पर पहुंच जाते हैं और देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न करते हैं। मेरी तरफ से एक ही जवाब था,
सर, जब देश गुलाम हुआ तब देश में ऊंची जाति के लोगों का शासन था और आज देश तरक्की कर रहा है। ऐसा आपने कुछ समय पहले सरकार की उपलब्धियां बताते हुए कहा था तो फिर कौन सा काल आपके हिसाब से अच्छा है, वह जिसमें सवर्णों का शासन था और देश गुलाम हो गया या वह जहां संविधान में सबको बराबरी का दर्जा मिला है।
दस मिनट की शांति के बाद महोदय ने दोबारा से नाम पूछा और कहा कि बेटा आप तो ऊंची जाति के ही लगते हैं, फिर भी आप जातिगत आरक्षण का समर्थन करते हैं? मैंने गहरी सांस ली और कहा अंकल जी हम ऊंची जाति के नहीं हैं। उनका चेहरा देखने लायक था, पानी का जार उन्होंने हमसे दूर किया और कहा कि तुमने हमें अपवित्र कर दिया है। हमें मन ही मन बहुत दुख हुआ और उनके आचरण पर दया भी आई और हमने नींद की आगोश में जाने का निर्णय ले लिया।