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“बिहार के पुर्णिया में नशा करने वाले बच्चों को मैंने करीब से देखा है”

नशा करते बच्चे

नशा करते बच्चे

आज की तारीख में औसत घरों में आपको एक ऐसा व्यक्ति मिल जाएगा जो बुरी तरह नशे का आदी हो चुका है। देश के अलग-अलग हिस्सों से आए दिन नशे से जुड़ी खबरें आती हैं मगर इनका खात्मा कैसे हो, इसपर कोई खास बहस नहीं होती। आइए आज हम आपको लेकर चलते हैं बिहार के पुर्णिया ज़िले में और शुरू से बताते हैं कि नशे का कारोबार किस प्रकार पांव पसार रहा है जिससे प्रशाशन भी बेखबर है।

आए दिन शहर में अपराध होते रहते हैं जिनमें नाबालिगों की संलिप्तता पाई जाती है। पुर्णिया में कई ऐसी गलियां हैं जहां आपको बड़ी आसानी से नशा करते युवा दिख जाएंगे। मैं जानता हूं कि ऐसी चीज़ों के बारे में लिखना मुश्किल होता है लेकिन मैंने अपने शहर में बच्चों को काफी करीब से नशा करते देखा है।

धीरेन, जो कि सिर्फ 12 वर्ष का है, कचरे से प्लास्टिक की बोत्तलें और कबाड़ी चुनने का काम करता है। उसकी दिनभर की कमाई होती है लगभग 200 रुपये। इसमें से 100 रुपये वह घर पर देता है और बाकी के पैसों से ‘एडहेसिव ग्लू’ खरीद कर लाता है, जिसे सूंघने के बाद जैसे उसे तृप्ति मिलती हो।

उसका कहना है कि इसमें गांजा या शराब से भी ज़्यादा नशा होता है और वह इसका पिछले 2 वर्षों से सेवन करता है। ऐसा सिर्फ धीरेन या इस तबके के बच्चों के साथ ही नहीं है, बल्कि इस नशे की चपेट में ढेर सारे स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट्स भी हैं। दुकानदार यह ‘ग्लू’ और ‘व्हाइटनर’ के साथ मिलने वाला लिक्विड मात्र 5 या 10 रुपये ज़्यादा की लालच में इन बच्चों को दे देते हैं।

बच्चों में डिप्रेशन और आत्महत्या की प्रवृति

इस नशे से बच्चों में डिप्रेशन और आत्महत्या की प्रवृति का विकास होता है। ऐसा भी देखा गया है कि काफी बच्चों ने इसके नशे में छोटी-छोटी बातों पर आत्महत्या तक कर ली है। पुर्णिया में ऐसे 1 या 2 नहीं, बल्कि दर्ज़नों किस्से मिल जाएंगे फिर भी प्रशासन ना लोगों को जागरूक कर पा रही है और ना ही इसकी बिक्री पर रोक लगा पा रही है।

शराब की डिलीवरी भी है रोज़गार का माध्यम

शराबबंदी के बाद से यहां पर बेरोज़गार युवाओं के लिए नया रोज़गार आया है और वह रोज़गार है शराब की डिलीवरी का। यूं तो कहने को शराबबंदी है लेकिन दोगुने दामों पर आप जब चाहे तब घर बैठे शराब का आनंद ले सकते हैं। जिनके पास उतने पैसे नहीं होते हैं, वे अलग-अलग तरह से प्रयासों के ज़रिये किसी भी तरह से शराब पीना चाहते हैं।

शहर में रामबाग नामक एक प्रसिद्ध जगह है। यहां अगर शाम में आपको शराब की गंध या कोई शराबी नशे में धुत लड़खड़ाते हुए दिख जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नही है। वहां यह धंधा काफी फल-फूल रहा है। वहां के एक स्थानीय निवासी, पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताते हैं, “हमलोग यह धंधा बहुत समय से कर रहे हैं। हमारे बाप-दादा भी यही करते थे। शराबबंदी के बाद से ना हमें सरकार की तरफ से कोई रोज़गार मिला और ना ही कोई साधन। हम तो शुरू से ही यह काम करते आए हैं और इसके अलावा हमे कुछ आता भी नहीं है।”

वह आगे बताते हैं कि शराबबंदी से पहले महुआ के फूलों का आयात आसानी से हो जाता था एवं उससे बनी शराब इतनी हानिकारक भी नही होती थी। अब उसके आयात पर भी रोक लगा दी गई है। अब उन्हें मजबूरन नौसादर और अलग-अलग केमिकल्स से शराब बनानी पड़ती है, जो कि हानिकारक होने के साथ-साथ जानलेवा भी है।

कम पैसों में उपलब्ध होते हैं नशीले पदार्थ

आप सोच सकते है कि शरीर पर नौसादर, नींद की गोलियां और अन्य खतरनाक केमिकल्स का क्या असर पड़ता होगा। इस शराब का सेवन युवा रोज़ कर रहे हैं और यह 100-150 रुपये में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसके अलावा यहां गांजे का सेवन भी युवा धड़ल्ले से कर रहे हैं और यह भी यहां 60-100 रुपये में आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

पुलिस ने यहां कितनी बार छापा मारा फिर भी यह धंधा बदस्तूर जारी है। यहां तक तो ठीक था लेकिन विगत एक वर्ष से यहां हार्ड ड्रग्स जैसे हीरोइन, स्मैक, एलएसडी इत्यादि का भी आगमन हो चुका है और बहुत ही कम समय में यह युवाओ के बीच काफी लोकप्रिय हो चुका है।
इनमें से सबसे ज़्यादा बिक्री यहां स्मैक की हो रही है।

स्मैक और अन्य हार्ड ड्रग्स के नशे में घूमते लड़के अपने नशे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपराध का रास्ता भी अपना लेते हैं। आलम यह है कि वे आम जनमानस के लिए सर दर्द बने हुए है। यह आदत ‘शौक’ से शुरू होकर कब ‘ज़रूरत’ बन जाती है, पता ही नहीं चलता।

अभी हाल ही में मैंने देखा कि एक गिरोह को पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी जो अपने शौक और नशे को पूरा करने के लिए चोरी, छिनतई और चेन स्नैचिंग इत्यादि जैसे ज़ुर्मों को अंजाम देते थे और सबसे हैरतअंगेज़ बात यह है कि वे सभी नाबालिग थे। प्रशासन को इसपर संज्ञान लेना चाहिए, नहीं तो निकट भविष्य में स्तिथि और भी भयावह होगी।

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