कुछ दिनों पहले की खबर है, “गर्भवती बकरी के साथ सामूहिक बलात्कार।” हम लगभग रोज़ ही बलात्कार और यौन दुर्व्यवहार की खबरें सुनते-पढ़ते रहते हैं। यदि घटना को अधिक वीभत्स माना जाता है, तो कुछ दिनों तक टेलीविज़न के अलग-अलग चैनल और उन पर बैठे पैनल कानून व्यवस्था की कमियों, सरकार की कमियों और कथित रूप से लड़कियों की कमियों पर बहस करते रहते हैं लेकिन अब जानवरों के साथ बलात्कार पर आप किसे दोष देंगे?
दरअसल, समाज में यौनिकता और जेंडर के प्रति जो सोच है, उसकी कमियों के बारे में बात नहीं की जाती है और हम भी “क्या ज़माना आ गया है” कहकर भूल जाते हैं। हालांकि यह सिर्फ आज के ज़माने में ही नहीं, सदियों से होता आ रहा है। मीडिया की बदौलत जो घटनाएं रिपोर्ट नहीं हो पाती हैं, वह तो हम तक पहुंच जाती हैं लेकिन ज़्यादातर मामलों में दुर्व्यवहार करने वाला कोई करीबी ही होता है। ऐसी घटनाओं की संख्या हमारे आपके अनुमान से कहीं ज़्यादा है।
रिंकी और अनीता के साथ पति ने किया आक्रामक सेक्स
रिंकी की शादी महज़ 5 साल की उम्र में ही हो गई थी लेकिन 13 साल की उम्र में जब उसे ना तो माहवारी और ना ही सहवास के बारे पता था, तब उसकी पढाई छुड़ाकर उसे ससुराल भेज दिया गया। वहां उसके पति ने उसे बुरी तरह पीटा क्योंकि रिंकी ने सहवास के प्रति अनिच्छा जाहिर की थी लेकिन वह इसकी शिकायत किससे करती? मायके आने पर सहेलियों ने बताया कि उनके साथ भी ऐसा ही होता है और अम्मा ने पति की हर बात मानने और उसे खुश रखने को कहा है।
एम.ए. और बी.एड. तक शिक्षित अनीता द्वारा अपने अन्तरंग क्षणों में पति को ठंडा कह देने पर क्रोधित पति ने उनके साथ बहुत बर्बरतापूर्ण सम्बन्ध बनाया। जिससे मानसिक और शारीरिक रूप से आहत अनीता को चेतावनी मिली कि अगर दोबारा पति की मर्दानगी का मज़ाक बनाया तो इससे भी बुरा हाल होगा। अनीता को अपनी तथाकथित भूल की माफी मांगने के बाद भी कई दिनों बाद तक अपमानजनक कटाक्ष सहने पड़े। उन्होंने अपनी सहेली के साथ इसे साझा कर अपना मन हल्का करने की कोशिश की।
साहिर की कहानी आपको पढ़नी चाहिए
पढने-लिखने में होशियार साहिर जब 8 साल का था तब बस्ती के कुछ बड़े लड़कों ने पॉर्न सामग्री दिखाकर ना सिर्फ उसका यौन शोषण किया, बल्कि उसे ड्रग्स की लत भी लगाई, जो अब उसे बार-बार अपना यौन शोषण करवाने और यहां तक कि भीख मांगने पर मजबूर कर देती है। साहिर अब स्कूल नहीं जाता है और बस्ती वालों के लिए वह एक गंदा लड़का है।
सेक्स एजुकेशन का असल मतलब
हम कहते हैं कि हमारे देश में सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत नहीं है। हमें यह जानने की आवश्यकता है कि ग्रामीण भारत की 50% और शहरी क्षेत्र की लगभग 7% लड़कियों को आज भी ना तो माहवारी की जानकारी है और ना ही उस समय बरती जाने वाली स्वच्छता की। हम निजी अंगों, क्रियाकलापों और विभिन्न प्रकार की लैंगिकताओं से जुड़ी वैज्ञानिक चर्चा और जानकारी से दूर भागते हैं।
आंकड़े बताते हैं कि बाल-विवाह, अल्पायु-मातृत्व, असुरक्षित गर्भपात, जनसंख्या-वृद्धि, यौन-दुराचार, युवाओं में एचआईवी और एसटीडी के संक्रमण की दर के साथ-साथ मानवाधिकारों और महिला अधिकारों के हनन की दर के मामलों में दुनिया के अन्य देशों की तुलना में हम बहुत आगे हैं।
दरअसल, ज़्यादातर लोग सेक्स एजुकेशन को उसके सम्पूर्ण अर्थ में ना समझ कर, सेक्स शब्द के अर्थ से भ्रमित होते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। यौन विज्ञान और यौनिकता की शिक्षा के समर्थकों को भी वास्तव में यह समझना बेहद ज़रूरी है कि यौनिकता और जेंडर पर चर्चा का मतलब किशोरों को सेक्स करने के लिए प्रोत्साहित या हतोत्साहित करना नहीं है।
वर्ष 2007 में आई कुछ रिपोर्टों और सर्वे के नतीजों ने जब यह खुलासा किया कि एचआईवी एड्स के सबसे ज़्यादा संक्रमित भारतीय युवा हैं, तब तत्कालीन सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची कि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को अनिवार्य बनाया जाए। इसकी घोषणा होते ही बवाल खड़ा हो गया और इसे अमली जामा पहनाए जाने के पहले ही लोग दो खेमों में बंट गए। एक समर्थन में और दूसरा विरोध में।
अभिभावकों को भी करनी होगी पहल
संस्कृति के रक्षकों ने इसे भारत जैसे संस्कृति-समृद्ध राष्ट्र के लिए निहायत ही गैर-ज़रूरी और नुकसानदायक घोषित कर दिया। उन्हें लगता है कि अपनी उन्मुक्त जीवनशैली के कारण भारत को नहीं, बल्कि पश्चिमी देशों को ही सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत है। इसलिए इसका नाम फैमिली लाइफ एजुकेशन रखा गया ताकि लोग यह समझ सकें कि सेक्स एजुकेशन किशोरों के साथ शरीर और मन के बदलावों, ज़रूरतों, अपने और दूसरों के सम्मान, सहमति, सावधानी, और नियंत्रण से जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी और बातचीत है।
यह एक वृहद् विषय है और पाठ्यक्रम में शामिल किए गए एक या दो अध्याय या 2-3 दिन की वर्कशॉप के आयोजन से इसे मुकम्मल तौर पर समझा पाना मुश्किल होगा और नाकाफी भी। इसे नियमित पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाने की ज़रूरत है। आमतौर पर शिक्षक इस विषय को नहीं पढाना चाहते हैं। उनकी पहली पसंद कोई विशेषज्ञ या डॉक्टर होता है लेकिन अब इसे नियमित विषय के रूप में पढ़ाया जाना अनिवार्य होता जा रहा है तो हमें शिक्षकों को प्रशिक्षित करना होगा ताकि वे बिना हिचकिचाहट के इसे पढ़ा सकें।
इसकी शुरुआत घर से अभिभावकों द्वारा होनी चाहिए ताकि किशोर इसके साथ सहज हो पाएं। सेक्स एजुकेशन को लेकर अभिभावकों की चिंता भी जुड़ी है कि कहीं उनके बच्चों की यौन सक्रियता जल्द शुरू ना हो जाए और आखिर किस उम्र में उन्हें यह जानकारी देना सही रहेगा?
किशोरों की यौन विषयों से जुड़ी उत्सुकता किशोरावस्था की शुरुआत के साथ ही जन्म लेने लगती है यानि करीब 12 वर्ष की उम्र से ही। अब यदि हम उन्हें सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराएंगे, तो वे इंटरनेट या पॉर्न साहित्य के माध्यम से आधी-अधूरी, अप्रामाणिक जानकारी ले ही लेते हैं और कई बार असुरक्षित यौन व्यवहार अपना लेते हैं। यही कारण है कि भारत में एचआईवी संक्रमण का सबसे ज़्यादा प्रभाव किशोरों पर हो रहा है।
53% बच्चों के साथ होता है यौन दुर्व्यवहार
एक सर्वे के अनुसार भारत में 5-12 वर्ष की आयु के लगभग 53% बच्चे यौन दुर्व्यवहार का सामना करते हैं। यौन दुर्व्यवहारों का सामना बच्चों और महिलाओं को ज़्यादा करना पड़ता है। यौन दुराचार का सामना करने वाले बच्चों में 53% लड़के और 42% लडकियां हैं। यहां तक कि 18% व्यस्क पुरुष भी बलात्कार या जबरदस्ती का शिकार होते हैं।
इसके जवाब में सामाजिक संस्थाओं की पहल और मदद से स्कूलों और कहीं-कहीं बस्तियों में सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श की समझ, मदद और बाल यौन दुर्व्यवहार से जुड़े कानून की जानकारी पर सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। लड़कों के साथ भी बड़ी संख्या में यौन दुर्व्यवहार होता है, जिसे सामने लाने की कोशिश की जा रही है।
इधर सरकार ने मानव अधिकार संगठनों और बाल-अधिकार संगठनों के प्रबल विरोध के बावजूद अपनी सतर्कता और प्रतिबद्धता जाहिर करने की मंशा से बच्चों के साथ बलात्कार करने वालों को फांसी की सज़ा का एलान कर दिया।
शिक्षा हमेशा अंधेरों से उजालों की तरफ ले जाती है। यौन शिक्षा की ज़रूरत सभी को है, चाहे वे लड़के हो या लड़कियां, स्त्री हो या पुरुष। स्कूलों में यौन शिक्षा यानि सोशल लाइफ एजुकेशन को अनिवार्य बनाकर बड़े स्तर पर समाज में भी यौन शिक्षा के अनौपचारिक तरीके खोजकर हम आशावान हो सकते हैं।