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कड़े कानूनों के बावजूद भी क्यों चलन में हैं प्लास्टिक बैग्स?

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

दिन की शुरुआत से लेकर रात तक अगर गौर किया जाए तो आप पाएंगे कि प्लास्टिक ने किसी ना किसी रूप में आपके हर पल पर कब्ज़ा कर रखा है। जैसे- ऑफिस में दिनभर कम्प्यूटर पर काम करना हो, बाज़ार से कोई सामान लाना हो या वॉटर बॉटल में पानी लेकर चलना हो।

प्लास्टिक कैमिकल बीपीए शरीर में विभिन्न स्रोतों से प्रवेश करता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि इसका इस्तेमाल पानी की बॉटल, खेल के सामान, सीडी और डीवीडी जैसी कई वस्तुओं में किया जाता है।

पॉलिथीन ऐसे रसायनों से बनाया जाता है, जो ज़मीन में सैंकड़ों वर्षों तक गाड़ देने से भी नष्ट नहीं होता है। ज़रा सोचिए हमारी धरती माता संसार की हर चीज़ को ग्रहण कर लेती है किंतु पॉलिथीन नहीं। यह पृथ्वी और हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालता है। यह पानी और खनिजों का रास्ता रोक लेता है। अर्थात एक ऐसी बाधा जो जीवन के सहज प्रवाह को रोक लेती है।

प्लास्टिक के दुष्प्रभाव

हम धर्म के नाम पर पुण्य कमाने के लिए अक्सर गाय माता तथा अन्य जानवरों को पॉलिथीन में लिपटी रोटी, सब्ज़ी और फल आदि दे देते हैं और बेजुबान पशु, उसे ज्यों का त्यों निगल जाते हैं। जिससे उनकी आंतों में रुकावट पैदा होती है और वे तड़प-तड़प कर मर जाते हैं। ऐसा करने से भला हम कौन-सा पुण्य कमा सकते हैं?

नदी, नहरों, झीलों और तालाबों में हम ना जाने कितने पॉलिथीन अन्य समाग्रियों के साथ बहा देते हैं, जिससे पानी दूषित हो जाता है और बचा हुआ पॉलिथीन पानी में रहने वाले प्राणी अनजाने में निगल जाते हैं। इससे उनकी मौत भी हो जाती है।

सन् 2005 में पॉलिथीन के कारण नालों का पानी अवरुद्ध होने से आधी मुम्बई पानी में डूब गई थी। इसलिए हमें पॉलिथीन से परहेज करना चाहिए और इसे फेंकने की बजाय जला देना चाहिए।

भारत की समुद्री रेखा 7500 कि.मी. से ज़्यादा है और देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा समुद्र से सटे इलाकों में रहता है, जो प्लास्टिक से उपजे प्रूदषण का सबसे अधिक सामना कर रहा है। समुद्र के किनारे बसे कुछ महत्वपूर्ण इलाके हैं- पोरबंदर, सोमनाथ, भवनगर, सूरत, दमन, मुंबई, गोवा, उडुप्पी, कोच्चि, तिरुवनंतपुरम, रामेश्वरम, पुदुच्चेरी, चेन्नई, विशाखापत्तनम और पुरी।

प्लास्टिक का वर्गीकरण 

प्लास्टिक का आकार के हिसाब से वर्गीकरण किया जाता है-

  1. 25 मिलीमीटर से अधिक- मैक्रोप्लास्टिक
  2. 5-25 मिलीमीटर- मेसोप्लास्टिक
  3. 0.1-5 मिलीमीटर- माइक्रोप्लास्टिक

मैक्रोप्लास्टिक जहां समुद्र में बड़े ढेर के रूप में तैर रहे हैं, वहीं माइक्रोप्लास्टिक पानी में घुलकर हमारी खाद्य श्रृंखला को प्रदूषित कर रहे हैं।

पूरे वर्ल्ड में हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है। अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका “साइंस एडवान्सेस रिपोर्ट” के मुताबिक लाखों टन उत्पादित प्लास्टिक में केवल 9% ही रिसायकल की जाती है और 12% प्लास्टिक जला दी जाती है, जो हवा को जहरीला बनाती है। जबकि 79% इधर-उधर बिखरकर हमारे पर्यावरण को दूषित करती है।

प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के तरीके 

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