अगर भगवान के बली इंसान के हाथों देखनी हो तो कोलकाता मेडिकल कॉलेज चले जाइए जहां अपराध महज़ एक शब्द बनकर रह गया और सुरक्षा बल उनके रक्षक। एनआरएस मेडिकल कॉलेज कोलकाता में विगत 10 जून को कुछ इसी प्रकार का दृश्य देखने को मिला जहां 85 साल के एक वृद्ध की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ कि उनकी मृत्यु “हार्ट अटैक” से हुई जिसके बाद उनके परिजनों द्वारा कानून व्यवस्था कि इस प्रकार से धज्जियां उड़ाई गई मानो न्याय की देवी चीख पड़ी। डॉक्टर परीवह मुखर्जी और उसके बाद डॉक्टर यश तेक्वानी को इस प्रकार से मारा गया मानो प्राण के बदले प्राण की आहुति मांगना हो।
जब और डॉक्टर ने इसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई तो यह वाकया यहीं नहीं रुका, करीब सैकड़ों लोगों के हुजूम ने डॉक्टरों पर पथराव किया और कोलकाता की पुलिस महज़ दर्शक बनकर देखती रही।
एक अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार चार लोगों की गिरफ्तारी तो हुई है लेकिन सरकार की तरफ से डॉक्टरों को कोई भी सुरक्षा मुहैया नहीं कराया गया है। मेडिकल स्टूडेंट्स पर एसिड फेंकने से लेकर रेप करने की धमकी दी जा रही है। मेडिकल कॉलेज कोलकाता, बर्दवान मेडिकल कॉलेज, आईपीजीएमईआर मेडिकल कॉलेज, कलकत्ता नैशनल मेडिकल कॉलेज और आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज, ऐसा कोई भी संस्थान उग्र लोगों से सुरक्षित नहीं है। क्या बंगाल सरकार को सत्ता इतनी प्यारी हो गयी है कि अपने वोट बैंक के चलते कान में तेल डालकर अपने एसी रूम में ठाट से बैठी हुई है?
पिछले कई दिनों से सारे मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स हड़ताल पर बैठे हैं और सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं लेकिन सरकार सत्ता के नशे में इतनी चूर है कि खिड़की से भी बाहर झांकने को ठीक नहीं समझ रही। जब जान बचाने वाले के जान खुद संकट में होंगे तो आम लोगों की हालत क्या होगी ज़रा सोचिए और समझिए कि बंगाल की राजनीति किस दिशा में जा रही है।
द हिंदू के एक रिपोर्ट के अनुसार ममता दीदी ने डॉक्टरों को ही चेतावनी दी है कि वे काम पर लौट जाएं वरना उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। क्या कुर्सी इंसान से बड़ी है और वोट जान से? बंगाल क्रांति की जन्मभूमि है जहां राजा राममोहन राय ने अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी और वही और वही यह अन्याय घटित हो रहा है।
ज़रा सोचिए हम किस समाज की परिकल्पना कर रहे हैं और कैसा देश बना रहे हैं जहां जात-पात,धर्म राजनीति हिंदू मुस्लमान सबसे बड़ा हो गया है और इंसानियत सबसे नीचे।
अपनी व्यस्त जिंदगी में ज़रा ठहरिए और अपने नेतृत्व करता से सवाल पूछिए कि यह अन्याय क्यों?