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“मैं उन सोच पर झाड़ू मारती हूं, जो तय करती हैं लड़की के रहन-सहन का हिसाब-किताब”

आप-हम झाड़ू मारना तो जानते ही हैं लेकिन यहां मैं उस कचरे को झाड़ू मारने के लिए नहीं कर रही हूं, जिसे आप रोज़ना साफ करते हैं। मैं उस कचरे की बात कर रही हूं जिसे आपने फैलाया है, जो आपके पूर्वजों ने फैलाया है, आपके पिछड़े विचारों पर झाड़ू मारने की बात कर रही हूं मैं।

मैं आपकी उस सोच पर झाड़ू मारती हूं,

मैं आपके उन विचारों पर झाड़ू मारती हूं, जो तय कर देते हैं लड़की के रहन-सहन का हिसाब-किताब और लड़की के अपने ही घर में उसके सपने पल-पल घुटते हैं।

मेरे बहुत सपने थे पर ना जाने किस-किस डर से और अनेक कारणों से, आपकी पाबन्दियों से वो घर के किसी कोने में सिसकियों के साथ हर रोज़ रोते हैं। कभी घर में आप भी झाड़ू मारियेगा वो दिखेंगे आपको गर्भ में मरे बच्चे की तरह। मैं झाड़ू मारती हूं आपके उन चार लोगों पर जो हर समय टिकाये रखते हैं, निगाह मुझ पर, जो तय कर लेते हैं मेरे खुलकर हंसने, बात करने पर मेरा चरित्र। पापा, आपको इनकी दूर से उठती उंगलियां तो दिख गईं पर रात भींगा मेरा तकिया नहीं दिखा।

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- pexels.com

शराब, सिगरेट, डिस्क बिगड़ैल औलादों के शौक होते हैं और मंदिर मस्ज़िद के नाम पर आप खून बहाते हो, मैं ऐसी आतंकी सोच को झाड़ू मारती हूं। सेक्स को लेकर आपकी छुपन छुपाई और मुझे दिए आपके अधूरे ज्ञान को मैं झाड़ू मारती हूं। पापा, काश आप समझ पाते बढ़ती उम्र के साथ सेक्स के बारे में सही जानकारी देना आपका फर्ज़ और मेरी ज़रूरत है।

मैं झाड़ू ही नहीं पोछा भी मारना चाहती हूं, हर उस सीख पर जो आपने संस्कार के नाम पर मुझमें भर दिए हैं। मैं भेजूंगी अपनी औलाद को स्कूल झाड़ू मारना सीखने के लिए क्योंकि अभी बहुत कुछ है, आपका मुझमें जिस तक झाड़ू पहुंच नहीं पा रहा है।

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