19 मई को लोकसभा चुनाव 2019 का आखिरी चरण सम्पन्न हो गया। अब बस जनता को चुनाव परिणामों का इंतज़ार है। 23 मई को चुनाव परिणाम भी घोषित होने वाले हैं। इस बार चुनाव में भाजपा का जनाधार 2014 के चुनाव की अपेक्षा कम हुआ है।
2014 में सिर्फ मोदी लहर थी लेकिन इस चुनाव में जनता, भाजपा की नीतियों से तंग आकर वोट दे रही है। भाजपा के खिलाफ बेरोज़गारी, महंगाई, जीएसटी, नोटबंदी, राफेल, सांप्रदायिकता और भी बहुत सारे मुद्दे हैं, जिन्हें विपक्ष ने भुनाया है।
अंदाज़ा ऐसा लगाया जा रहा है कि बहुमत किसी भी बड़े राजनीतिक दल को नहीं मिल रहा। इंडिया टुडे के लीक हुए एक्ज़िट पोल भी यही दिखाते हैं कि बहुमत के आंकड़े से दोनों दल यानि काँग्रेस और भाजपा दूर हैं। अनुमान यह लगाए जा रहे हैं कि सरकार जिसकी भी बनेगी गठबंधन से ही।
बीजेपी सरकार का फिर से सत्ता में आना लोकतंत्र के लिए अच्छा होगा
मेरा मानना यह है कि अगर भाजपा की सरकार बनती है तो देश के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र के लिए अच्छा रहेगा क्योंकि भाजपा की सरकार ने लोकतंत्र को जितना बर्बाद कर दिया है उसकी भरपाई काँग्रेस भी नहीं कर सकती। अब किसी नए विकल्प की आवश्यकता है लेकिन इसके लिए लोग तैयार नहीं है। जनता पूरी तरह से तभी तैयार होगी जब उनका बहुत ही ज़्यादा शोषण हो जाएगा।
हमने भौतिक विज्ञान में न्यूटन के क्रिया प्रतिक्रिया का नियम पढ़ा हैं। यानि कि अगर किसी वस्तु द्वारा दूसरी वस्तु पर बल लगाया जाता है, तो वह उसे उतनी ही बल से अपनी विपरीत दिशा की ओर बढ़ाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि भाजपा सरकार ने जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जितनी समाप्त करने की कोशिश की, जनता उतना ही खुलकर सामने आई।
अभी भाजपा ने इस स्वतंत्रता का उस तरह से हरण नहीं किया कि समूची जनता खुलकर सामने आ सके। अभी केवल वही लोग बोल रहे हैं, जिनके साथ गलत हुआ है या फिर जो बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बंध रखते हैं।
ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या के अनुसार काँग्रेस ‘वाद’ थी। कुछ वक्त बाद उसका प्रतिवाद भाजपा हुई लेकिन अभी इसका समवाद आना बाकी है। वास्तव में काँग्रेस ने अपने राज में जो भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता फैलाई, उसके कारण उसे गद्दी पर नहीं बैठना चाहिए लेकिन भाजपा का शोषण अभी सिर्फ 5 साल का ही हुआ है। ऐसे में हम फिर से उसी काँग्रेस को चुन लेंगे लेकिन भाजपा के सत्ता में आने पर उसका ‘समवाद’ पैदा होने की आशंका ज़्यादा है।
हम देख सकते हैं पिछले 5 सालों में देश की जनता में राजनीतिक चेतना उतनी ही बढ़ गई है जितनी कि इमर्जेंसी के दौरान थी। आज भी स्टूडेंट्स ने राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है। वे भाजपा सरकार के खिलाफ खड़े होने की ताकत दिखा रहे हैं। जनता की राजनीतिक चेतना समाप्त करने का श्रेय काँग्रेस को जाता है। उसने जनता के सामने विकल्प ही नहीं छोड़ा था लेकिन जबसे भाजपा सरकार आई जनता में यह आस जगी है कि वे जिसकी चाहे सरकार बना सकते हैं।
सांप्रदायिकता के खात्मे के लिए जनता को करनी होगी पहल
भाजपा सरकार के दौरान जितनी सांप्रदायिकता फैली, उतनी या उससे ज़्यादा सिर्फ आज़ादी के समय तब फैली थी, जब भारत में अंग्रेज़ों का शासन था। इस सांप्रदायिकता को अब बीच में अधूरा छोड़ना बहुत ही ज़्यादा खतरनाक होगा।
इसे कोई भी राजनीतिक पार्टी के लिए समाप्त करना मुश्किल है। इसे सिर्फ जनता समाप्त कर सकती है। इसके लिए जनता को इस सांप्रदायिकता के भयानक परिणाम देखने ज़रूरी हैं, जिसके लिए भाजपा सरकार ज़रूरी है।
पिछले सालों में कितनी मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुईं, जिनमें मुसलमानों को निशाना बनाया गया। दलितों के खिलाफ भी कई घटनाओं को अंजाम दिया गया। उन सभी घटनाओं का देश में काफी विरोध हुआ। दलितों और मुसलमानों ने मिलकर यहां तक कि सवर्ण हिन्दुओं ने भी उन घटनाओं का विरोध किया।
इसका अर्थ यह है कि सभी लोग सांप्रदायिकता की भावना को नकार रहे हैं लेकिन इस भावना को पूरी तरह से नकारने के लिए एक बार और भाजपा सरकार की ज़रूरत है। कहावत है ना ‘लोहा ही लोहे को काटता है।’
बेरोज़गारी पर फेल भाजपा सरकार
इसी भाजपा सरकार के कार्यकाल में पिछले 45 सालों की बेरोज़गारी के सारे रिकॉर्ड टूट गए। लोग सवाल करना शुरू कर चुके हैं। स्टूडेंट्स प्रधानमंत्री की रैली के पास पकौड़े के स्टॉल लगा रहें हैं। किसान आंदोलनों की संख्या बढ़ रही है। यह सब देश के लोगों की लोकतंत्र में बढ़ती आस्था के साक्ष्य हैं।
लोकतंत्र को कोई सरकार तब तक समाप्त नहीं कर सकती जब तक जनता ना चाहे। 1975 के आपातकाल के दौरान भी जनता जिस लोकतंत्र के लिए लड़ रही थी, आज भी अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनता आवाज़ बुलंद कर रही है। इसके लिए ना सिर्फ जनता को तैयार रहना पड़ेगा, बल्कि अपनी सुस्त राजनीतिक चेतना को भी पूजा जागृत करना होगा। उसके लिए एक और भाजपा कार्यकाल की आवश्यकता है।
वास्तव में भारत को ऐसी राजनीतिक पार्टियों की आवश्यकता है, जिनकी शक्ति जनता के हाथ में हो, जो वास्तव में सेक्युलर हो, जो मुस्लिम तुष्टिकरण को सेक्युलरिज़्म का नाम ना दे, जो सेक्युलरिज़्म के नाम पर सिर्फ मुसलमानों को इफ्तार पार्टियां ना दे। देश को ऐसी राजनीतिक पार्टियों की आवश्यकता है, जो एक साथ हिंदुओं, दलितों और मुसलमानों का नेतृत्व कर पाए और जो वास्तव में सेक्युलर हो।