एक बार मैं मध्य प्रदेश के एक शहर में सहायक श्रम आयुक्त के दफ्तर में बैठा था, जो काफी भले आदमी थे। पहली मुलाकात में उन्होंने चाय ऑफर किया, जिसे मैं मना नहीं कर पाया। इसी बीच बाल श्रम की बात चली तो उन्होंने बताया कि हमारे संभाग में कोई बाल श्रमिक नहीं है।
उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पूर्व सर्वे में 40 बच्चे निकल कर आए थे। हमने ‘बाल श्रम उन्मूलन परियोजना’ के माध्यम से बच्चों को बाल श्रम से बाहर निकाल लिया है। जब यह बातें हो रही थीं तभी एक 12 साल का बच्चा चाय लेकर आया।
कमिश्नर साहब का दावा गलत
जाहिर है, कमिश्नर साहब का दावा तो गलत साबित हुआ लेकिन शर्मिंदा मैं भी था। आखिर कब तक हमारे समाज में बच्चे पेट पालने के लिए काम करने को मजबूर होंगे। जब हम सड़क से गुज़रते हैं तो अक्सर चौराहों पर बच्चों को अखबार, सामान बेचते या भीख मांगते हुए देखते हैं। खेती के काम में भी बड़ी संख्या में बच्चे शामिल हैं। ऐसे कई उद्योग हैं, जहां बच्चों द्वारा मज़दूरी की खास मांग है, जैसे कि बीड़ी उद्योग।
मप्र की बात करें तो जनगणना आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 7 लाख से अधिक बाल श्रमिक हैं और लाखों बच्चे काम के लिए उपलब्ध हैं।
जिसकी ज़िम्मेदारी वही कर रहा इंकार
जिस विभाग की यह ज़िम्मेदारी है कि वह बाल श्रम को समाप्त करने के लिए कदम उठाए। वह समस्या के अस्तित्व से ही इंकार करता है। अभी हमारे लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव यानि आम चुनाव अपने चरम पर है।
क्या आपने कोई उम्मीदवार देखा है जो भरोसा दिलाता हो कि वह समाज से बाल श्रम को समाप्त करने के लिए प्रयास करेगा? क्यों जीवन के वास्तविक सवालों पर भावनात्मक मुद्दों को प्राथमिकता में रखकर चुनाव जीते जाते हैं? विगत कुछ चुनावों से जनता के विभिन्न तबकों के मुद्दे राजनीतिक परिदृश्य पर लाने के लिए जन-घोषणा पत्रों की पहल आरम्भ हुई है।
बच्चों ने तैयार किया घोषणा पत्र
इसी क्रम में इस बार मप्र के विभिन्न अंचलों के बच्चों ने एक बाल घोषणा पत्र तैयार कर विभिन्न राजनैतिक दलों और उनके प्रत्याशियों को दिया है ताकि चुनाव घोषणा पत्र में बच्चों के मुद्दों को भी शामिल किया जाए। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल सुरक्षा, बाल विवाह और बाल श्रम आदि विषय समाहित हैं।
यदि बाल श्रम के मुद्दों की बात की जाए तो बाल घोषणा पत्र के माध्यम से बच्चों की मांग है कि प्रदेश में विभिन्न कार्यों में संलग्न बाल श्रमिकों का व्यापक सर्वे किया जाए तथा प्रत्येक बच्चे के लिए विशेषीकृत पुनर्वास प्लान बनाकर उन्हें बाल श्रम से बाहर किया जाए, शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल किया जाए और प्रदेश में बालक एवं कुमार श्रम प्रतिषेध एवं नियमन अधिनियम के पूर्ण क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जाए।
बच्चों के लिए लागू हो विभिन्न योजनाएं
सरकार को ऐसी योजनाओं को लागू करना चाहिए जिससे सभी परिवारों को रोज़गार मिले और बच्चों को काम ना करना पड़े ताकि वह शिक्षा से जुड़ सकें।
दोनों ही प्रमुख राष्ट्रीय दल-भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस ने अपने घोषणा पत्रों में इन बिंदुओं पर कोई स्पष्ट वायदा करने से बचने की रणनीति अपनाई है। भाजपा ने जहां कौशल विकास को प्राथमिकता दी है, वहीं काँग्रेस ने ‘न्याय योजना’ के माध्यम से वंचित परिवारों की आय बढ़ाने का संकल्प लिया है। यह दोनों ही रणनीतियां उपयोगी तो हैं मगर स्पष्ट बाल श्रम उन्मूलन योजना के अभाव में पूर्णरूपेण कारगर साबित नहीं हो सकतीं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार बनाने की वकालत की है। हालांकि सभी पार्टियों ने शिक्षा का बजट बढ़ाए जाने की बात कही है परन्तु हम लोग जानते हैं कि वायदा करने के बावजूद राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह मांग पूरी नहीं हो पा रही है।
पारिवारिक उद्यम में बच्चों को काम करने की मंजूरी?
यदि हम 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में बाल श्रम प्रतिषेध कानून का संशोधन करने की बात कही थी। सत्ता में आने के बाद उन्होंने यह किया भी और बच्चों के साथ किशोरों को शामिल करते हुए बालक एवं कुमार श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम-2015 पारित किया।
हालांकि इस कानूनी संशोधन को लेकर बहुत बहस और विवाद है क्योंकि अधिकांश बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार इस संशोधन से कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं आया है, बल्कि पारिवारिक उद्यम में बच्चों के काम करने को एक प्रकार से कानूनी मान्यता हासिल हो गई है।
आंकड़ों को छुपाने का प्रयास
जाहिर है, बाल श्रम की समाप्ति हेतु राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव और बजटीय आवंटन में कमी के चलते समाज में बाल श्रम दर में कम नहीं हो पा रही है। जब हम सड़क पर निकलते हैं तो अखबार बेचते हुए या भीख मांगते हुए बच्चे नज़र आते हैं।
अक्सर इन बच्चों की तस्वीरों को आंकड़ों से छुपाने का प्रयास किया जाता है। बाल श्रम रोकने हेतु ज़िम्मेदार श्रम विभाग के आंकड़ों के अनुसार पूरे मप्र में बाल श्रमिकों की कुल संख्या 108 है। यह जानकारी विधानसभा में विगत सरकार के समय प्रदान की गई थी। जबकि जनगणना के आंकड़े कुछ और ही कहते हैं।
बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या
2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 7 लाख से अधिक बाल श्रमिक मौजूद हैं, जिनमें से 1.39 लाख बच्चों की उम्र 5 से 9 साल के बीच थी जबकि 9 से 15 साल के आयु वर्ग से 5.64 लाख बच्चे पाए गए थे। 2001 में काम करने वाले बच्चों की संख्या 10 लाख से अधिक थी। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सरकार को इन चीज़ों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। सरकार क्या कर रही है, इससे जनता को तो लगता है कोई मतलब ही नहीं है।
इस तरह हम चाहें तो खुश हो सकते हैं कि प्रदेश में बाल श्रम घटा है लेकिन जनगणना से हमें यह भी पता चलता है कि इस संख्या में भीख मांगने वाले बच्चों और अन्य छिपे हुए कामों में संलग्न बच्चों को शामिल नहीं किया गया है।
यदि इन्हें भी शामिल कर लिया जाए तो बाल श्रमिकों की संख्या अकल्पनीय रूप से बढ़ जाएगी। एक और चिंताजनक तथ्य यह है कि 10 सालों में काम की तलाश में बच्चों की संख्या 74 हज़ार से बढ़कर 2.90 लाख तक पहुंच गई है। इन बच्चों की संख्या के मामले में भोपाल और इंदौर जैसे प्रदेश के महानगर शामिल हैं।
बाल श्रम की समाप्ति ज़रूरी
बाल श्रम के कारणों का पता लगाना बहुत मुश्किल काम नहीं है। मुश्किल है उन कारणों को दूर करना। परिवारों की आर्थिक दशा सबसे पहले इसके लिए ज़िम्मेदार है। सरकारों की आर्थिक नीतियों के चलते समाज में आर्थिक असमानता अपने चरम पर पहुंच गई है।
नौकरियों की संख्या में लगातार कमी होती जा रही है। जिस दौर में स्कूल छोड़कर बच्चे काम कर रहे हैं, उस समय में वयस्कों के लिए रोज़गार नहीं है।
बाल श्रम समाज के ऊपर लगा एक बदनुमा दाग है और इसे समाप्त करना ज़रूरी है। हमें अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों को बाध्य करना होगा कि चुनाव को भावनात्मक मुद्दों से हटाकर सबके लिए रोज़गार और आर्थिक-सामाजिक समानता के मुद्दों पर केंद्रित करें।
जाहिर है, इसमें नेताओं से अधिक भूमिका हमारी होगी कि हम भी असली मुद्दों को पहचाने और उन पर ही वोट करें तभी हमारी राजनीतिक बिरादरी को भी बच्चों के हित में संवेदनशील कर पाएंगे।