मुझे याद है उस समय मैं ग्यारहवीं क्लास में था, जब मेरे मामा की बेटी की शादी थी। शहरी इलाके से होने की वजह से मैं जातिगत घटनाओं से ज़्यादा परिचित नहीं था। मेरे मामा उत्तर प्रदेश में स्थित एक छोटे से गॉंव में रहते हैं। सामान्यतः वहां शादियों में मुसहर व अन्य अनुसूचित जातियों के लोगों को घर के आगे ढपली बजाने के लिए बुलाया जाता है। ना तो उनको घर मे घुसने के इजाज़त होती है और ना ही खाट पर बैठने की। आज भी उनको छूने से लोग कतराते हैं।
यह वही जाति है, जिन्हें चूहे मारकर खाने के लिए विवश किया जाता था। दशरथ मांझी इसी जाति के थे। इन्हें खाना तो दिया जाता है पर उसके लिए अलग से बर्तन होते हैं। वह उन्हीं बर्तन में खाते हैं और उसको धोकर वापस कर देते हैं। सब मैंने खुद देखा इसलिए लिख रहा हूं।
शादी के दौरान रस्मे लंबी होती हैं और गॉंव में मुझे लगभग 3-4 दिन हो गए थे। रोज़ मैं उस जाति के बूढ़े के साथ इस प्रकार का व्यवहार देखता था। मेरा दिल कचोट जाता था। पहले दिन के बाद से मैं उसे हाथ जोड़कर नमस्ते करने लगा। वह बड़ी संजीदगी से हाथ जोड़कर 1-2 मिनट तक मालिक-मालिक कहता रहता था।
मैं खुद से पूछने लगा, “क्या अंतर है इसमें और मुझमें? क्या इसे किसी और भगवान ने बनाया है? तो इसके प्रति ऐसा व्यवहार क्यों?
एक हफ्ता हो चला, हमें तिलक के लिए जाना था, सुबह से ही काफी चहल-पहल थी, मेहमान आ रहे थे। वह मुसहर जाति का बूढ़ा सुबह ही आकर ढपली बजाने लगा। 10 बजे के करीब मामी उसे उसके निकले बर्तनों में खाना देने लगीं। मैं वहीं था, मेहमानों के साथ। मामी उसके लिए लोटे में पानी लाईं, मैं उसके पास आया, नीचे रखा उसका लोटा उठाया और पानी पीने लगा। 5-6 घूंट पानी पीकर मैंने लोटा उसे वापस कर दिया।
वह बहुत सन्न हो गया, लगा जैसे बहुत डर गया हो। मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो सब मुझे घूर रहे थे। माहौल बहुत अजीब सा हो गया था। मुझे लगने लगा कि मैंने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है। मामी अपने सर पर हाथ मारते हुए अंदर चली गईं। अंदर से मेरी मां आईं और मुझे बहुत डांटा। मैं चुप रहा और याद करता रहा कि इन बड़ों ने ही कभी हमें बताया था कि हम सबको एक ही ईश्वर ने बनाया है।