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“बरेली में रोज़गार के नाम पर सिर्फ ठेंगा है”

संतोष गंगवार

संतोष गंगवार

बरेली और यहां की मशहूरियत यानि कि यहां का सूरमा और मांझा लेकिन ये दोनों व्यवसाय आजकल अपना वजूद बचाने को संघर्षरत हैं। वजह तो शायद किसी नेता जी तक को पता नहीं होगी लेकिन मानते हैं वे भी कि अब इस व्यापार की कमर टूट चुकी है।

वैसे तो बरेली की राजनीति अपने आप में अनूठी है लेकिन विकास शायद आज भी बरेली से रूठा हुआ है। वजह शायद यहां के नेताओं की लापरवाही या फिर विकास ना करने की मंशा।

वर्तमान में संतोष गंगवार लोकसभा के सांसद एवं केंद्र सरकार में वर्तमान वित्त राज्य मंत्री हैं। यही नेता जी इससे पूर्व केंद्र सरकार में कपड़ा राज्य मंत्री भी थे। संतोष गंगवार पहले भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पेट्रोलियम राज्यमंत्री रह चुके हैं। कुल मिलाकर अगर बात की जाये तो नाम तो गंगवार जी का काफी बड़ा हैं लेकिन इनके काम बिल्कुल ऐसे हैं, जैसे नाम बड़े और दर्शन छोटे।

रोज़गार के नाम पर ठेंगा

रोज़गार के नाम पर बरेली में सिर्फ ठेंगा है और हो भी क्यों ना, सारे नेताओं को दिल्ली पहुंचने की जल्दी जो हैं। अगर शिक्षण संस्थानों की बात की जाये तो कुल मिलाकर बरेली में 15 से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज हैं।

अगर इन आंकड़ों में दूसरे कोर्स यानि कि (बीएससी, बीकॉम इत्यादि) को जोड़ा जाए तो कॉलेज की संख्या 40 से ऊपर ही जाएगी लेकिन मामला तो तब फंसता हैं, जब बात की जाती है रोजगार की क्योंकि क्षेत्र में रोज़गार के नाम पर है तो सिर्फ ठेंगा।

सालों से बंद है रबर फ्रैक्ट्री

इस क्षेत्र में रबर फैक्ट्री बेहद मशहूर थी जो कि काफी सालों से बंद है। हालांकि सितंबर 2017 के समय केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि रबर फैक्ट्री कर्मियों के दिन भी बहुर जाएंगे। उन्हें जल्द ही उनका बकाया भुगतान मिल जाएगा। रबर फैक्ट्री की खाली ज़मीन पर शीघ्र ही नए उद्योग की स्थापना होगी और लोगों को रोज़गार के अवसर मिलेंगे।

रबर फैक्ट्री की हालत तो यह है कि 1999 के कर्मचारियों की पूरी पगार तो वर्ष 2018 में जाकर मिली हैं। अभी 2 साल होने जा रहे हैं मंत्री जी ने कोई कोई अग्रिम निर्णय लेने का सोचा तक नहीं हैं।

पढ़ाई के बाद नौकरी मिलने की कोई गारंटी नहीं

कुल मिलाकर आप ऐसे समझे कि अगर आप बरेली के निवासी हैं और आपने अपनी पढ़ाई यहीं पूरी की है तो आप इस वहम में मत रहिए कि आपको यहां रोज़गार मिलेगा क्योंकि पढाई के बाद आपके हाथ में रह जाएगी सिर्फ और सिर्फ आपकी डिग्री। आप योग्य चाहे कितने भी हो मगर आपको नौकरी तो नहीं मिलनी यहां पर।

फोटो साभार: फेसबुक

चाहे आपने स्नातक किया हो या परास्नातक, फर्क कुछ नहीं पड़ता। आपको नौकरी तलाशने जाना तो दिल्ली या बम्बई ही पड़ेगा। (हां अगर आप सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहते हैं तो आप इस श्रेणी में नहीं आते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की सरकारी नौकरियों की बहाली समझते ही होंगे) और अगर आपका बजट दिल्ली आने का नहीं है तो भूल जाइए कि आपको यहां कोई रोज़गार मिलेगा फिर चाहे आपने परास्नातक ही क्यों ना किया हो।

राजनेता सिर्फ चुनाव के वक्त नज़र आते हैं

आपको पता है बरेली की यह जो हालत है इसके ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ यहां के नेताओं का गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया है क्योंकि नेताजी चुनाव के समय ही क्षेत्र में नज़र आते हैं। कहने को तो संतोष जी राज्य में काफी बड़े नेता माने जाते हैं लेकिन असल बात तो यह है कि शायद संतोष जी के पास जनता की समस्याओं के लिए वक्त नहीं हैं।

मुझे याद है बीजेपी किस तरह से युवा वोटर्स को आकर्षित करने के लिए दिल्ली में आयोजन करवाती है लेकिन अगर इन आयोजनों के स्थान पर पार्टी युवाओं को रोज़गार दे दे तो शायद पार्टी को टीवी चैनलों के विज्ञापन पर “कमल का बटन दबाइए” वाला विज्ञापन नहीं देना होगा और शायद इससे कई करोड़ो रुपये भी बच जायेगा जिसका इस्तेमाल युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर तराशने पर किया जा सकता है।

विकास और रोज़गार के नाम पर झूठा भाषण

एक सवाल तो यह भी है कि जब मैंने अपनी ग्रेजुएशन बरेली से की है तो मुझे अपने क्षेत्र में नौकरी क्यों नहीं मिल रही? क्या विकास का मतलब सिर्फ दिल्ली एनसीआर (नोएडा-गाज़ियाबाद) है? जब वोट मैंने अपने क्षेत्र में दिया हैं तो रोज़गार के लिए दिल्ली-बम्बई क्यों जाना? मंत्री जी बरेली के युवाओं के भविष्य के बारे में क्यों नहीं सोच रहे? आखिर कब तक चलेगा यह विकास और रोज़गार का झूठा भाषण?

फोटो साभार: Twitter

इस बात पर मुझे राज ठाकरे का एक इंटरव्यू याद आता है, जब उन्होंने बोला था कि उत्तर प्रदेश के लोग यहां नौकरी करने इसलिए आते हैं क्योंकि उनके खुद के प्रदेश में रोटी खाने तक का रोज़गार नहीं हैं और ना ही वहां के किसी नेता को लोगों के रोज़गार की कोई चिंता हैं।

केन्द्रीय मंत्री का उदासीन रवैया

मुझे आश्चर्य तो तब होता है जब मैं देखता हूं कि इतने सालों में मुंबई, दिल्ली के अलावा अन्य शहरों ने अपने यहां इतना रोज़गार पैदा कर दिया कि उत्तर प्रदेश के लोग वहां जाकर नौकरी कर सकते हैं और बरेली अपने शहर के लोगों तक को रोज़गार नहीं दे पा रहा हैं। राजनीतिक सत्यता तो यह है कि बरेली में केंद्रीय मंत्री तो हैं लेकिन यहां रोजगार नहीं है।

सवाल तब और बड़ा हो जाता है, जब इस क्षेत्र में विकास के भाषण तो जोरदार होते हैं लेकिन विकास ना तो कागज़ पर दिखता है और ना ही वास्तविकता में

मुझे याद है अभी जब बरेली में लोकसभा चुनावों की वोटिंग हो रही थी, तब गंगवार साहब युवाों के साथ खूब सेल्फी खिंचवा रहे थे और मैं खड़ा होकर यही देख रहा था कि शायद गंगवार जी को कैमरे की तरफ देखकर ही अपना पद और काम याद आ जाए मगर ऐसा हुआ नहीं। सेल्फी के बाद गंगवार साहब अपनी फॉर्च्यूनर में बैठ कर अगली जगह सेल्फी खिंचाने के लिए निकल पड़े।

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