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रोज़गार की तलाश में बिहार के पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवाओं की कहानी

बेरोज़गारी

बेरोज़गारी

नमस्कार ,

मेरा नाम प्रिंस (अन्ना राय) है। मैं बिहार के छोटे शहर फारबिसगंज का रहने वाला हूं। मैं पेशे से एक अदना सा पत्रकार हूं। मेरा मकसद हर किसी की आवाज़ बनना है और उनकी आवाज़ों को सत्ता में बैठे हुक्मरानों तक पहुंचाना है।

बहरहाल, बीते 23 अप्रैल को हमारे अररिया ज़िला में लोकसभा आम चुनाव के मतदान खत्म हुए हैं और हम अभी कुछ दिनों के लिए उत्तर भारत से दक्षिण भारत की तरफ आए हैं। दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलोर यूं तो आना जाना लगा रहता है क्योंकि इस शहर में हमारे अपने जो रहते हैं।

हम मुद्दे पर आते हैं, हम बात करेंगे बेरोज़गारी की। बेरोज़गारी किसी भी देश के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। भारत में बेरोज़गारी एक गंभीर मुद्दा है। शिक्षा का अभाव, रोज़गार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधी समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं, जो बेरोज़गारी का कारण बनती हैं।

इस समस्या को खत्म करने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारों को भी प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत है। विकासशील देशों के सामने आने वाली मुख्य समस्याओं में से एक बेरोज़गारी है। यह केवल देश के आर्थिक विकास में खड़ी प्रमुख बाधाओं में से ही एक नहीं बल्कि व्यक्तिगत और पूरे समाज पर भी एक साथ कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालती है। वहीं, युवा रोज़गार की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य पलायन करने के लिए विवश हैं।

फोटो  साभार: pixabay

बेरोज़गारी का ऐसा आलम है कि लोग घर, द्वार, माई, बाप, भाई, बहन से कोसों दूर महज़ 10-15 हज़ार की नौकरी करने के लिए विवश हैं। वहीं, बीते 3 दिन पहले हमें बैंगलोर के होसूर रोड के समीप बिहार के कुछ पढ़े-लिखे नौजवान मिले, जिनमें से कुछ का नाम अमरकान्त, सुधीर एवं प्रकाश था। इन सबकी उम्र 22-24 साल की थी।

ये नौकरी की तलाश में बिहार के भागलपुर, कटिहार ज़िला से बैंगलोर आए हैं। सबने स्नातक की पढ़ाई की है। इन लोगों ने बताया कि बिहार में रोज़गार नहीं है, वे लोग पढ़े लिखे हैं और उन्होंने बताया कि उनके बड़े भाई यही पर प्लास्टिक की फैक्टरी में काम करते हैं, उन्हीं के साथ यहां आए हैं।

उन्होंने बताया कि पापा बीमार रहते हैं, बहन की शादी करनी है, भैया अकेला कमाते हैं। पापा-भैया ने खुद नहीं पढ़ा है लेकिन हमलोगों को पढ़ाया है ताकि हम पढ़कर अच्छी नौकरी कर सकें। पापा के बीमार होने से भैया पर ज़्यादा भार आ गया है। बहन शादी के लायक हो रही है, बिहार में रोज़गार नहीं है इसलिए जितना पढ़े हैं उसके मुकाबले की नौकरी की तलाश में बिहार से बैंगलोर आए। यहां हमलोग कई कॉल सेंटरों में साक्षात्कार देने जा रहे हैं। तपती धूप में 10-15 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करते हैं, क्योंकि हमारे पास उतना भाड़ा देने के लिए पैसे नहीं हैं।

वहीं, सुधीर ने बताया कि वो कितने कष्ट से बिहार आए हैं, अगर उन्हें कोई कॉल सेंटर में जॉब नहीं मिलता है तो वे लोग किसी फैक्टरी या रेस्टोरेंट में भी काम कर लेगें, क्योंकि वे यहां काम के लिए आए हैं।

वहीं, हमारी मुलाकात बिहार के कटिहार ज़िला के एक युवक से भी हुई। उन्होंने अपना नाम राजेश बताया। राजेश ने बताया

वो भी उनके एक पड़ोसी के साथ इसी वर्ष जनवरी महीने में बैंगलोर आए थे नौकरी के तलाश में। महीनों लग गए उसके बाद होम क्रेडिट इंडिया कंपनी जो कि फाइनेंस कंपनी है, उसमें वॉइस प्रोसेस की नौकरी मिली। उसमें 12 हज़ार 600₹ वेतन मिल रहा है। इंसेटिव 10000₹ वो 3 महीने के बाद चालू होगा।

उन्होंने बताया कि बिहार में कोई रोज़गार है नहीं, सरकारी नौकरी मिलती नहीं जल्दी, इसलिए जीवनयापन करने के लिए इतना दूर आया हूं। बस कैसे भी चल रही है दाल रोटी।

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