गाँव या शहर, सुबह, रात हो या दोपहर
हुआ लड़की को पीरियड का डर, जान निकल जाती है हफ्ताभर।
हर महीने फ्री की खुशी मिले या ना मिले लेकिन यह दर्द मिल ही जाता है,
इस दर्द के बिना ज़िंदगी की खुशी अधूरी लगती है।
भारत के कई जगहों पर पहले मासिक धर्म की खुशी मनाई जाती है फिर उस मुद्दे पर बात तक नहीं की जाती। लोग पीरियड्स को ऐसा विषय समझते हैं कि सार्वजनिक जगहों पर बात करने से भी कतराते हैं। वे सोचते हैं कि इस मुद्दे पर केवल पति-पत्नी ही बात कर सकते हैं। हमें इसी सोच को बदलना है क्योंकि पीरियड्स की वजह से ही एक जान धरती पर आती है और यह बात सभी जानते हैं।
पीरियड्स के वक्त मिलती है अपवित्र की संज्ञा
पीरियड शुरू होने पर एक माँ ही अपनी बेटी को बोल देती है कि इस बारे में किसी से बात मत करना। घर पर भी इस बारे में ज़िक्र मत करना जबकि एक लड़के को यह उत्सुकता होती है कि क्यों इस लड़की को एक निश्चित कार्य करने से रोका जा रहा है।
स्कूल, कॉलेज या किसी भी अन्य सार्वजनिक जगहों पर अगर कपड़े में पीरियड्स के खून का दाग लग जाए तो लड़के मज़ाक उड़ाना शुरू कर देते हैं। यह सिर्फ लड़कों की बात नहीं है बल्कि कई औरतें भी इसे गंदा खून समझती हैं। मदद मांगने पर अपवित्र की संज्ञा दे देते हैं।
पीरियड्स के वक्त नहीं करने दिए जाते यह काम
लोगों को समझना होगा कि यह एक जैविक प्रक्रिया है। हर महीने खून यूटरस पर जमा होता है ताकि गर्भधारण हो तो वक्त मदद मिले। वह खून फिर कैसे अपवित्र हो सकता है? दुःख तो इस बात की है कि कई औरतें भी यही धारणा रखती हैं कि यह गंदा खून है और इस हालत में मदद भी नहीं करती। इसी अंधविश्वास में कि वे भी अपवित्र हो जाएंगी।
मुझे समझ नहीं आता कि यह खून अपवित्र कैसे हो सकता है? जिस खून से एक नई ज़िंदगी शुरू होती है, वह खून आखिर कैसे अपवित्र हो सकता है।
क्यों घर की किसी चीज़ को छूने से मना कर दिया जाता है? क्यों पूजा करने से रोक दिया जाता है? भगवान के पास दीया जलाने से मना कर दिया जाता है।
मुझे यही सिखाया गया इसलिए..
पीरियड्स के वक्त दर्द सहते हुए ही घर के काम करने पड़ते हैं। सैनिटरी पैड्स की ज़रूरत होने पर भी आप किसी से कह नहीं सकते। कभी-कभी बहुत लड़कियों के मन में यह सवाल आता है कि क्यों इतनी लुका-छिपी करते हैं हमलोग? जवाब तो मिलता है लेकिन बिना तर्क के। वह यह कि मुझे मेरी माँ ने यही सिखाया था इसलिए तुम्हें भी यही सब करना होगा।
पैरेंट्स ही अपने बच्चों के पहले दोस्त होते हैं इसलिए उन्हें ही बच्चों को पीरियड्स के बारे में बताना चाहिए लेकिन वह अपने बच्चों से खुलकर बात नहीं करते। बेटी को तो फिर भी पीरियड्स शुरू होने के बाद धीरे-धीरे सबकुछ समझ आ जाता है लेकिन एक बेटे को यह सब बताने में पैरेंट्स हिचकिचाते हैं।
माँ को देखकर बाकी के जेनरेशन भी यही करते हैं। कहीं जब कोई मेडिकल कैंपेन होता है, तो वहां पैरेंट्स को बताया जाता है कि वे अपने बच्चों से खुलकर बात करें। उस वक्त सभी भले हां कह देते हैं लेकिन घर आकर सब भूल जाते हैं।
ऐड बदलने की ज़रूरत क्यों?
बच्चों को अगर इसकी शिक्षा दी जाएगी तो टीवी पर आने वाले पीरियड्स के ऐड बदलने की ज़रूरत नहीं होगी। छुपाकर काली पॉलीथीन में पैड फेंकने की ज़रूरत नहीं होगी। शॉपिंग करते हुए भी सैनिटरी पैड्स खरीदने में शर्म महसूस नहीं होगी।
शहर में तो तरक्की हुई है। आज मॉल्स से सैनिटरी पैड्स खरीदने में शर्म नहीं आती लेकिन गाँव में लोग पैड खरीदने की बजाय कपड़ा इस्तेमाल करते हैं। जबकि कई स्कूलों में यह कैंपेन चलाया जाता है कि पीरियड्स के वक्त कपड़ा नहीं पैड का इस्तेमाल करें। सैनिटरी पैड्स के फायदों और उसके इस्तेमाल करने के तरीकों को बताया जाता है फिर भी लोग दूसरों की बातों और मज़ाक के डर से कपड़ा इस्तेमाल करते हैं।
सहेलियां एक दूसरे से पूछती हैं, “देखना मेरे कपड़ों में दाग तो नहीं लगा है?”
क्यों का जवाब ढूंढना होगा
डर को श्रद्धा मानते हैं और इस डर के कारण आने वाली पीढ़ी को भी हम यही शिक्षा दे देते हैं। हमें इस सोच को बदलने की ज़रूरत है। जितने भी रीति-रिवाज़ हैं, उनके बारे में हमें चर्चा के स्तर को व्यापक करना होगा।
मैं लड़कियों से कहती हूं, उठो आवाज़ उठाओ। क्यों का जवाब ढूंढो। पीरियड्स के वक्त लड़की क्यों अपवित्र है? उसी खून से हमारा जन्म हुआ है और हम उसी खून को अपवित्र कह रहे हैं। ऐसे में मूर्ख तो हम ही हुए।
आइए सब मिलकर इस अंधविश्वास को खत्म करें, बातें करें और पीरियड्स से जुड़ी भ्रांतियों पर खुलकर चर्चा करें।
- पीरियड्स के बारे में लोगों को झिझक तोड़ने की ज़रूरत है। इस विषय पर मज़ाक उड़ाना भी बंद करना होगा।
- मेडिकल स्टोर या दुकान से सैनिटरी पैड्स खरीदने पर उसे ढकने की प्रथा को खत्म करने की ज़रूरत है।
- ज़रूरत पड़ने पर अपने घरवालों को सैनिटरी पैड्स के लिए बोल सकें।
- लड़कियों या महिलाओं को डॉक्टर्स के पास अपनी समस्यायएं खुलकर रखनी होगी।
- यह एक जैविक प्रक्रिया है इसलिए इसपर लड़की को अपवित्र मानना गलत है।
- गाँव और शहर के फर्क को मिटाने के लिए सही शिक्षा की ज़रूरत है।
- पीरियड्स से शर्म ना करें बल्कि अंधविश्वास से किनारा करें।
- देश के सभी स्कूल में पीरियड्स से संबंधित सकारात्मक बातें हो।
- सैनिटरी पैड्स और कपड़ों के बीच जो फर्क है, उसपर बात करने की ज़रूरत है।