ज़रा याद कीजिये राजेश जोशी की कविता-
जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, वो मारे जाएंगे
कठघरे में खड़े कर दिये जाएंगे
जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएंगे
बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज़ हो
उनकी कमीज़ से ज़्यादा सफेद
कमीज़ पर जिनके दाग नहीं होंगे, मारे जाएंगे
धकेल दिये जाएंगे कला की दुनिया से बाहर
जो चारण नहीं होंगे
जो गुण नहीं गाएंगे, मारे जाएंगे
धर्म की ध्वजा उठाने जो नहीं जाएंगे जुलूस में
गोलियां भून डालेंगी उन्हें, काफिर करार दिये जाएंगे
सबसे बड़ा अपराध है इस समय निहत्थे और निरपराधी होना
जो अपराधी नहीं होंगे, मारे जाएंगे।
जाति तो वह है, जो कभी नहीं जाती, रोहित वेमुला से लेकर डॉक्टर पायल तडवी तक। डॉ. पायल की मौत ने एक बार फिर से इस देश की बहुत बड़ी खूबी की याद दिला दी है और वह खूबी है, जातिवाद और इस देश में व्याप्त जातिवादी मानसिकता।
डॉ. पायल की मौत ने रोहित वेमुला की याद दिलाई है-
इस पुस्तक पर छपा रोहित का चित्र और इसका शीर्षक साफ-साफ और चीख-चीखकर कह रहा है कि जाति कोई अफवाह नहीं है, जिसे आप लोग हवा में फैला देते हो, उड़ा देते हो।
अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि मैं आज एक बार फिर रोहित वेमुला को क्यों याद कर रहा हूं। रोहित को याद करने का कारण साफ है। डॉक्टर पायल तडवी की मौत। जैसे हमने एक अच्छे लेखक को खो दिया था, वैसे ही आज हमने एक अच्छी डॉक्टर को खो दिया है।
मैं आपको यह किताब क्यों दिखा रहा हूं। लगभग दो साल पहले आई यह किताब आपको बतायेगी कि कैसे हमारे जातिवादी समाज ने एक बेहतरीन लेखक की जान ले ली। यह किताब मैंने ना जाने इन 2 सालों में कितनी बार पढ़ी है। जितनी बार भी पढ़ता हूं, उतना ही रोहित के लेखन के बारे में कुछ नया जानने को मिलता है। यह किताब रोहित के 8 सालों के लेखन की किताब है। रोहित कितना बेहतरीन लेखक रहा होगा या बन सकता था, उसका पता उसकी इस एक लाइन से लगा सकते हैं आप,
अगर हमें सिर्फ मारने की कला आती है तो यह एक अभिशाप है।
रोहित की मौत कोई सामान्य मौत नहीं थी, यह एक सोची समझी रणनीति के तहत की गई हत्या थी। साज़िश के तहत ही इन घृणित, कुण्ठित मानसिकता के लोगों ने रोहित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया था। वैसे ही इन लोगों ने डॉक्टर पायल की हत्या की है।
मुझे लगा था कि रोहित की मौत ने इस कुण्ठित समाज को कुछ तो बदला होगा मगर नहीं मैं गलत था। रोहित की मौत से पूरे देश में इतना हो-हल्ला मचा लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। रोहित की मौत ने इस देश के असली चेहरे को सबके सामने उजागर किया है। हमने एक अच्छे लेखक की जान ले ली। रोहित के लेखों से कोई अछूता नहीं था, फिर चाहे वह राइट विंग हो या लफ्ट विंग, चाहे गाये पर कोई बात हो या राजनीति पर कोई बात हो, हर मुद्दों पर रोहित ने लिखा है।
मैं यहां पर रोहित का वह आखिरी खत लिख रहा हूं। उसको अच्छे से पढ़िए और फिर एक ज़िम्मेदार नागरिक की तरह सोचिए। रोहित की मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश कीजिये कि रोहित कितने डिप्रेशन में था-
गुड मॉर्निंग,
आप जब यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा। मुझ पर नाराज़ मत होना। मैं जानता हूं कि आपमें से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख्याल भी रखा। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे हमेशा से खुद से ही समस्या रही है। मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं। मैं एक दानव बन गया हूं। मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था, विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सेगन की तरह लेकिन अंत में मैं सिर्फ यह पत्र लिख पा रहा हूं।
मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और यह नहीं जान पाया कि वो कबके प्रकृति को तलाक दे चुके हैं। हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं, हमारा प्रेम बनावटी है, हमारी मान्यताएं झूठी हैं, हमारी मौलिकता वैध है, बस कृत्रिम कला के ज़रिए। यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी ना हो।
एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है, एक वोट तक। आदमी एक आंकड़ा बनकर रह गया है, एक वस्तु मात्र। कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग से नहीं आंका गया है। एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी, हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में।
मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं, पहली बार मैं आखिरी पत्र लिख रहा हूं। मुझे माफ करना अगर इसका कोई मतलब ना निकले तो। हो सकता है कि मैं गलत हूं, अब तक दुनिया को समझने में, प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में। ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था, बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए। इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा। मेरा जन्म एक भयंकर दुर्घटना थी। मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया। बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला।
इस क्षण मैं आहत नहीं हूं, मैं दुखी नहीं हूं। मैं बस खाली हूं। मुझे अपनी भी चिंता नहीं है। यह दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं। लोग मुझे कायर करार देंगे, स्वार्थी भी, मूर्ख भी। जब मैं चला जाऊंगा, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे, मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यकीन नहीं करता। अगर किसी चीज़ पर मेरा यकीन है तो वो यह कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है।
आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फेलोशिप मिलनी बाकी है, एक लाख 75 हज़ार रुपए। कृपया यह सुनिश्चित कर दें कि यह पैसा मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे रामजी को चालीस हज़ार रुपए देने थे, उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे लेकिन प्लीज़ फेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें।
मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो। लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया। मेरे लिए आंसू ना बहाए जाएं। आप जान जाएं कि मैं मरकर खुश हूं जीने से अधिक, ‘छाया से सितारों तक’।
उमा अन्ना, यह काम आपके कमरे में करने के लिए माफी चाहता हूं। अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सबको निराश करने के लिए माफी। आप सबने मुझे बहुत प्यार किया। सबको भविष्य के लिए शुभकामना।
आखिरी बार
जय भीम
अब आप खुद सोचिये कि क्या हुआ था रोहित के साथ कि वह इतने डिप्रेशन में जी रहा था।
कौन था रोहित?
रोहित वेमुला हैदराबाद विश्वविद्यालय का छात्र था और पीएचडी का शोधार्थी था। रोहित ने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली थी। रोहित एक शानदार लेखक था और उसका लेखन आधुनिक भारत में जाति की पीड़ादायक हकीकत को बयान करता है। रोहित ने फेसबुक पर आठ साल के अपने लेखन के दौरान गाजा से गाज़ियाबाद तक, शायद ही कोई मुद्दा हो जिसपर टिप्पणी नहीं की हो। जाति से लेकर गाये की राजनीति पर लिखी गई उसकी पोस्टों में एक गज़ब की काव्यात्मक भाषा और रेडिकल नज़रिया होता था, जिसमें ताज़गी है, मुद्दों को सुलझाने की एक ज़िद्द है और सवाल करने का अपार साहस है।
अब आते हैं, आज के ताज़ा मुद्दे पर यानि डॉक्टर पायल पर-
कौन थी डॉक्टर पायल?
डॉक्टर पायल तडवी आदिवासी समाज से थी। वह आदिवासी समाज में भील समुदाय से थी। भील समुदाय को ज़्यादा बड़ी जनसंख्या वाला समुदाय नहीं है। इस समुदाय की संख्या महज़ 80 लाख के लगभग है। पायल भील जनजाति में पहली लड़की थी, जो एमबीबीएस और अब पीजी यानि एमडी की पढ़ाई कर रही थी। पायल मुम्बई के BYL नायर अस्पताल में गायनेकोलॉजी में एमडी कर रही थी।
आत्महत्या या हत्या?
पायल की तीन सीनियर डॉक्टर्स ने उसे लगातार तंग किया। आरक्षण को लेकर ताना दिया, उसके रंग को लेकर नीचा दिखाया। परेशान होकर पायल ने हॉस्टल के अपने कमरे में आत्महत्या कर ली।
पायल की जगह पर अपने आपको रख कर देखिये, फिर सोचिये कि पायल आज जिस मुकाम तक पहुंची थी, उसके लिए उसने कितना संघर्ष किया होगा। जिन तानों को वह आज बर्दाश्त नहीं कर पाई, उनको वह बचपन से सुनती और झेलती आ रही होगी।
अब तो बस यह ही सवाल है मेरा आपसे कि रोहित और पायल की मौत का ज़िम्मेदार कौन है? किसने कहा है कि आपकी जाति ऊंची है और दूसरे की नीची? मैं बताता हूं यह आपके माता-पिता ने आपको सिखाया है। एक गन्दगी आपके अन्दर आपके परिवार द्वारा डाली गयी है।
अब ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता याद कीजिये-
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फसल ठाकुर की।
कुआं ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मोहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गांव?
शहर?
देश?
सोचिये क्या आपने भी कभी किसी के साथ ऐसा किया है?