राजस्थान में बीते कुछ दिनों में बलात्कार की कई घटनाएं सामने आई हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकार का ध्यान बस चुनाव जीतने में लगा हुआ है। पुलिस व्यस्त है क्योंकि लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है इसलिए नेताओं को जीतना ज़रूरी है।
जिस तरह चौतरफा घटनाएं हुई हैं, उसके हिसाब से लग रहा है कि प्रदेश के परिवेश पर वहशी-दरिंदों का कब्ज़ी हो गया है। ना सरकार की कोई राज्य व्यवस्था नज़र आ रही है और ना सामाजिक नैतिकता दिखाई दे रही है।
राजनेताओं के लिए चुनाव जीतना सब कुछ
यह बेहद शर्मनाक है कि बीते कुछ वक्त में रेप की घटनाओं में लगातार बढ़त दर्ज़ की गई है। ऐसे में राजस्थान के सीएम की नैतिक ज़िम्मेदारी तो बनती ही है क्योंकि गृह मंत्रालय भी उनके पास हैं।
यह मामला बेहद गंभीर है और यहां तक कि पूरी सरकार सवालों के घेरे में है। जब जनता की चुनी हुई सरकार से इस्तकबाल ही खत्म हो जाए तो सत्ता में बैठे लोगों को लोकतंत्र के नाम पर क्यों पाला-पोसा जाए? राजनेताओं के लिए चुनाव जीतना ही सब कुछ हो जाए तो जनता सिर्फ वोट देने वाली भीड़ मात्र हो जाती है।
उच्च शिक्षा के नाम पर युवाओं के साथ खेल
कई बार सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि लोकतंत्र के नाम पर इतना बड़ा लूटतंत्र, गुंडातंत्र और ढोंगतंत्र खड़ा होता गया और आज़ादी के बाद से अब तक इतनी बड़ी भीड़ से कोई भगत सिंह नहीं निकल पाया। क्या कमी रह गई?
दरअसल, अनुभव व उच्च शिक्षा के नाम पर इस देश के युवाओं के साथ बहुत बड़ा खेल खेला गया है। सामाजिक ताने-बाने के जानकार, ज़मीनी हकीकत की पहचान रखने वाले, रोज़-रोज़ की समस्याओं से जूझकर तपे हुए व व्यवस्था परिवर्तन का जोश रखने वाले युवाओं को कभी सत्ता में नहीं आने दिया गया इसलिए हज़ारों सालों से चली आ रही गुलामी की मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आ सका है।
भ्रांति को क्रांति समझ बैठे हैं
बलात्कारों से हमारे धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं मगर वह बहुत आदर्श है क्योंकि उनको श्राप, नियोग और हलाला आदि अलग नाम दिए गए थे। संविधान में हमने बलात्कार लिखकर बहुत बड़ी क्रांति कर दी। ऐसा हमें सत्ता पर कब्ज़ा करके बैठे एलीट क्लास वालों ने बताया है इसलिए हम भी इस भ्रांति को क्रांति समझ बैठे हैं।
जब भी ऐसी घटनाएं घटती हैं तो हम इनके सामने गिड़गिड़ाते नज़र आते हैं और हमारे बीच से ही कुछ लोग न्याय दिलवाने की दुकान खोलकर इसी ग्रुप में जाकर शामिल हो जाते हैं।
हर जज, एमएलए, एमपी, मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल सहित तमाम बड़े पदों पर बैठे लोगों के चरित्र की ईमानदारी के साथ जांच की जाएं तो जिस तरह आजकल बाबा, मौलवी और पादरी जेलों की तरफ गमन कर रहे हैं। उसी तरह से 90% लोग यौन शोषण करने या सरंक्षण देने के आरोप में जेलों की तरफ गमन करते नज़र आएंगे।
देश के मुख्य न्यायाधीश पर यौन शोषण के आरोप लगे और उसी पीठ ने महिला को बिना निष्पक्ष जांच के झूठी करार दी है। मैंने इतिहास बारीकी से पढ़ा है। मुझे तो राजशाही, धर्मशाही और लोकशाही आदि में कुछ हटकर नज़र आया नहीं।
इंसान के लिए आगे बढ़िए
पहले मंदिरों में देवदासियों के नाम पर यौन शोषण होता था और अब जिस तरह इन धर्म गुरुओं के कारनामे सामने आ रहे हैं। उसके हिसाब से अब गुफाओं में आशीर्वाद के नाम पर शोषण हो रहा है। आसाराम के खिलाफ गवाही देने वाले कितने लोगों की हत्या कर दी गई।
हमें बीच-बीच में ऐसी इंसाफ वाली क्रांतियां करते रहना है इसलिए आगे बढ़िए। अपने इतिहास को हम गौरवशाली बताते हैं मगर कलंकित वर्तमान पर हमें शर्म नहीं आती।
इस्तीफा देने से कुछ होगा?
गहलोत इस्तीफा दो, इस्तीफा दो। इस नारे के साथ मैं भी बोल देता हूं गहलोत इस्तीफा दो। क्या इससे जो घटनाएं हो रही हैं, वह खत्म हो जाएंगी। हमारे चिल्लाने से कौन इस्तीफा देगा। इस्तीफा देने मात्र से ऐसी घटनाएं रुकती तो लाल बहादुर शास्त्री के रेल दुर्घटना पर इस्तीफा देने के बाद क्या कोई रेल दुर्घटना नहीं हुई?
इस देश की जवानी भगत सिंह के साथ ही शहीद हो गई थी और तथाकथित अनुभवी व उच्च शिक्षित का देश पर कब्ज़ा हो गया। सिस्टम बदलने के लिए हर युवा को भगत सिंह व हर बेटी को झलकारी बाई बनकर लड़ना पड़ेगा। गाँधी व लक्ष्मीबाई की कथाएं बहुत सुन ली हमने।