हम आज के छात्रों का भविष्य उनके द्वारा लाए गए अंकों से निर्धारित करते हैं। जो छात्र अपनी परीक्षाओं में 98% से 100% अंक लाते हैं, हम समझते हैं कि उनका जीवन बाकी छात्रों से बेहतर होगा।
इसके कारण छात्र किताबी कीड़ा तो बन ही जाते हैं, साथ ही उनकी सोच का दायरा महज़ किताबों तक ही संकुचित हो जाता है। इसके विपरीत जो छात्र 60% से 70% अंकों तक ही सीमित रह जाते हैं, उन्हें विफल समझा जाता है।
शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता
यह प्रणाली आज की दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था का सही रूप दर्शाता है। हज़ारों मील के सफर की शुरुआत एक छोटे कदम से ही होती है। हमारी आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में एक मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है ताकि आने वाले समय में वह विश्व की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए छात्रों में क्वालिटी नॉलेजेबल शिक्षा का विकास करने में सक्षम हो।
यह बेहद ज़रूरी है कि शिक्षा से बच्चों का आत्मविश्वास कायम किया जा सके, ना कि उन्हें अयोग्य ठहरा कर उनके अंदर हीन भावना विकसित की जाए। विद्यालय का उद्देश्य क्वालिटी नॉलेजेबल शिक्षा देकर छात्रों के आत्मविश्वास को विकसित करना है और इस योग्य बनाना है कि वह अपने ज्ञान से संपूर्ण देश को विकसित करे।
आज की शिक्षा प्रणाली ने भारत में छात्रों के बीच असमानताओं को और भी बढ़ा दिया है। आज देश में शिक्षित छात्रों का अनुपात तो बढ़ा है लेकिन शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ पाया है क्योंकि विद्यालयों में जो शिक्षा दी जाती है, उसमें बुद्धि का विकास कम होता है। छात्र अच्छे अंकों की दौड़ में शामिल होते हैं और इसमें उनके अध्यापक भी उन्हें बढ़ावा देते हैं लेकिन उन्हें बेसिक क्वालिटी शिक्षा नहीं दी जाती है।
भाषाओं की दिशा तो मानो पाताल में चली गई है। भाषाओं का शुद्धीकरण तो समाप्त ही हो गया है फिर चाहे वह अंग्रेज़ी हो, हिंदी हो या कोई भी क्षेत्रीय भाषा हो। पहले के समय में छात्रों की वाक्य रचना बहुत अच्छी होती थी। उन्हें पंक्चुएशन अच्छी तरह से सिखाया जाता था।
कम अंक आने पर डिप्रेशन में चले जाते हैं छात्र
शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ तथ्यों को सीखना नहीं होता, बल्कि दिमाग को प्रशिक्षित करना होता है। आज छात्रों की बुनियादी गलतियों को नज़रअंदाज़ करके उन्हें अधिक से अधिक अंक दे दिए जाते हैं। आसानी से अंक प्राप्त करने की वजह से छात्र सही स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं। आज अंकों की अंधाधुंध दौड़ ने अच्छे से अच्छे विद्यार्थी के मन में एक डर सा पैदा कर दिया है कि यदि वह 95-100% तक नहीं ला पाया तो उसका दाखिला अच्छे कॉलेज में नहीं हो पाएगा।
जिन छात्रों के कम अंक आते हैं वे डिप्रेशन में चले जाते हैं। आज स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि 90-95% अंक लाने वाले छात्र भी अपने आप को असहाय महसूस करते हैं। उनकी मनोस्थिति बहुत कष्ट पूर्ण होती जाती है। 80% और उससे कम अंक लाने वाले छात्र तो जीवन में उत्साह ही खो देते हैं।
99% अंक लाने वाले छात्र स्कूलों में तो आसानी से मिले नंबरों की वजह से अच्छे कॉलेजों में चले जाते हैं पर यदि उनके नॉलेज का स्तर कम है तो वे आगे अच्छे परिणाम नहीं दे पाते हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। केवल वही छात्र आगे जा पाते हैं जिन्होंने स्कूलों में क्वालिटी और नॉलेजेबल एजुकेशन प्राप्त किया है।
अंक लाना आसान, ज्ञान अर्जित करना मुश्किल
प्राइवेट स्कूल अधिक कमाने के लिए बढ़ा-चढ़ा कर अंक दे देते हैं ताकि उनका प्रचार हो सके। शिक्षा का स्कूलों ने व्यवसायीकरण कर दिया है। उनके अपने मनमाने नियम होते हैं। इससे शिक्षा का स्तर गिरा है। आज का छात्र केवल किताबी ज्ञान की वजह से अन्य चीज़ों का ज्ञान नहीं रख पाता है। वह केवल उन्हीं प्रसिद्ध व्यक्तियों और उनके योगदान को जानता है जो उसकी किताबों में लिखे होते हैं।
उदाहरण के लिए किसी भी साइंस के छात्र से पूछिए कि देश के किसी महान साइंटिस्ट का नाम बताए तो वह केवल अब्दुल कलाम का ही नाम जानता होगा, जबकि भारत में अनेक विश्व स्तरीय साइंटिस्ट हैं। छात्रों को इन वैज्ञानिकों के बारे में कुछ जानकारी नहीं होती। इसका तात्पर्य यह है कि वे केवल किताबी ज्ञान या प्रचलित लोगों को ही जान पाते हैं, जबकि उन्हें करंट अफेयर्स का भी ज्ञान होना चाहिए।
प्राइवेट विद्यालयों में छात्रों को बेसिक विषय का ज्ञान ना होने पर भी उसे हम कक्षा में आगे बढ़ाते रहते हैं। छात्र काल्पनिक दुनिया में रहते हैं क्योंकि उनके अच्छे अंक आ जाते हैं मगर वे उच्च स्तर की कक्षाओं में अंक प्राप्त नहीं कर पाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनका बेसिक स्तर और ज्ञान दोनों ही उसमें नहीं थे। छात्र इस बात को समझ नहीं पाते हैं कि वह एकाएक इतना पीछे क्यों हो रहे हैं और इसी कारण वे मानसिक तनाव में आ जाते हैं।
छात्र समाज का सामना भी नहीं कर पाते हैं और माता पिता भी बार-बार यही पूछते हैं कि स्कूल में इतने अच्छे अंक लाने के बावजूद कॉलेज में अच्छे अंक क्यों नहीं आ रहे हैं। छात्र धीरे-धीरे अपना आत्मविश्वास खोने लगते हैं। उन्हें एक अदृश्य डर लगने लगता है और वह डर होता है असफलता का।
यदि स्कूलों में इन्हीं छात्रों को सही शिक्षा अर्थात प्राथमिक कक्षाओं से ही उनके हर पहलू पर ध्यान दिया जाए तो वे बेहतर हो सकते हैं। वाक्य रचना, बेसिक मैथ, साइंस आदि उचित स्तर पर पढ़ाते हुए, व्यवहारिक व मुल्यपरक ज्ञान भी साथ में देते हुए यदि उन्हें आगे बढ़ाया जाए तो वे उचित दिशा की तरफ ही जाएंगे। ऐसे में उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान भी होगा।
छात्रों को विकसित करें, शिक्षा का व्यवसायीकरण ना करें
सीबीएसई के सभी नियमों का पालन करें और छात्रों का मूल्यांकन उचित रूप से करें। यदि 98, 99 और 100% की दौड़ यूं ही बनी रही तो छात्र असंतोष और हीन भावना के शिकार हो जाएंगे क्योंकि सभी विद्यालय अच्छे अंकों के विद्यार्थियों को ही उच्च स्तरीय शिक्षा में स्थान देते हैं। इससे एक और नुकसान होगा कि कोचिंग सेंटर भी अपना मनमाना पैसा वसूल करेंगे और बच्चों को रटाने की प्रणाली को बढ़ावा देंगे।
जिनके पास सुविधाएं हैं वे तो इसका लाभ उठा लेंगे लेकिन जिनकी आर्थिक स्थिति कमज़ोर है ऐसे छात्रों को अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। सरकार को आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों को सरकारी विद्यालयों में सारी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।
ग्रामीण विद्यालय के छात्रों के भी अनेक सपने होते हैं पर उन्हें सुविधाएं नहीं मिल पाती। वो लोग भी डॉक्टर, इंजीनियर बनना चाहते हैं पर पैसे वालों के साथ कंपटीशन की वजह से वे हमेशा अपने आप को असहाय पाते हैं।
यदि सरकार और सभी विद्यालय इस ओर कदम नहीं उठाएंगे तो यह असमानता की खाई और भी चौड़ी होती जाएगी। अंत में इसका मुख्य समाधान यह है कि अध्यापक, स्कूल और छात्र सब को एक उचित शुद्ध शिक्षा पद्धति को अपनाना होगा जिसमें सभी वर्गों को एक छत के नीचे, एक जैसे नियमों का पालन करना होगा।
हमारी शिक्षा व्यवस्था को देश के सभी वर्गों के छात्रों को उच्च कोटि की शिक्षा उपलब्ध करानी होगी और असमानता की खाई को कम करना होगा। इससे छात्रों को क्वालिटी शिक्षा मिलेगी और उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।