सार्वजनिक जनादेश किसी राष्ट्र की मनोदशा का आंकलन करने का एक स्पष्ट तरीका है। बीजेपी की जीत इस बात का सबूत है कि लोग उनका समर्थन करते हैं। यदि आपको यह पसंद नहीं है तो खुद से पूछिए कि यह कैसे हुआ। जनता को मूर्ख बता देना इसका जवाब नहीं है।
बीजेपी ने ज़ाहिर तौर पर कुछ ऐसा किया है जिससे लोगों को उन पर भरोसा हुआ लेकिन इस लोकसभा चुनाव में कुछ उम्मीदवारों को जीतते हुए देखकर मेरा दिल टूट गया। जिन उम्मीदवारों ने राष्ट्र के शहीदों का अपमान किया या एक विशिष्ट समुदाय को धमकी दी, वे भारी अंतर से जीते।
ऐसा नहीं है कि ऐसे उम्मीदवार भाजपा में ही मौजूद हैं लेकिन अगर वे अभी भी जीत रहे हैं तो इसका मतलब है कि हमें एक बड़ी समस्या के बारे में बात करने की ज़रूरत है। हम अपने निजी स्थानों जैसे कि हमारे घरों में या कुछ दोस्तों के साथ इसकी चर्चा करते हैं लेकिन हम इस मुद्दे को सार्वजनिक रूप से संबोधित करना पसंद नहीं करते हैं।
मुद्दा क्या है?
“हिंदू लोग मुसलमानों से डरते हैं। हिंदू किसी को भी वोट दे देंगे जो उन्हें सुरक्षित रखने का दावा करता है।” यह भय अभी हाल ही में विकसित नहीं हुआ है। मोहम्मद गौरी के आगमन के बाद से यह भय हिंदुओं में पैदा हुआ और औरंगज़ेब और उसके अत्याचारों ने इसे और मज़बूत कर दिया। अत्याचार से अराजकता पैदा होती है। उस समय की अराजकता इतनी अधिक थी कि इस समस्या से निपटने के लिए एक नए धर्म को सामने आना पड़ा। आज उस धर्म को सिख धर्म कहा जाता है।
मुगल काल के बाद भी यह भय बना रहा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस भय में अंग्रेज़ों की भलाई छिपी थी। विभाजित लोगों पर शासन करना और उनका शोषण करना आसान था।
अंग्रेज़ों के ज़माने के बाद भी यह डर बना रहा। इसका कारण यह है कि यह डर 756 वर्षों से बना हुआ है। यह इतनी आसानी से खत्म होने वाली चीज़ नहीं है। अन्य मुस्लिम बहुल देश कभी भी एक अच्छा उदाहरण तक नहीं बन पाए। आज मध्य पूर्व, जो मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल है, या तो अराजक है या प्रतिगामी है।
इस्लाम पर गाँधी और अंबेडकर के विचार
इस बारे में बीआर अंबेडकर ने कहा था, “इस्लाम का भाईचारा मनुष्य का सार्वभौमिक भाईचारा नहीं है। यह केवल मुसलमानों के लिए मुसलमानों का भाईचारा है।” यहां तक कि गाँधी जी ने भी इस्लाम अनुयायियों के आक्रामक स्वभाव के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की थी। अगर अपने ज़माने के शीर्ष नेताओं के ये विचार थे तो आप ज़मीनी स्तर पर एक साधारण हिंदू की मानसिकता की कल्पना कर सकते हैं।
गाँधी जी ने यह स्वीकार किया कि इस्लाम के अनुयायी तलवार के साथ बहुत स्वतंत्र हैं लेकिन उनकी राय में यह इस्लाम की शिक्षा के कारण नहीं, बल्कि उस माहौल के कारण था जिसमें इस्लाम का जन्म हुआ था। गाँधी जी ने यह भी स्वीकार किया कि कुरान से कुछ अंश हटाए जा सकते हैं जो हिंसा को बढ़ावा दे सकते हैं लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ईसाई और हिंदू धर्म में भी ऐसा ही पाया जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि इस्लाम अभी भी एक नया धर्म है और अभी तक कई अलग-अलग तरीकों से व्याख्या करने में सक्षम है।
हिन्दू-मुस्लिम एकता के किस्से
यह डर अभी भी मौजूद है और कुछ राजनेता हिंदुओं के इस डर का इस्तेमाल करके उनसे ज़्यादा से ज़्यादा वोट बटोर रहे हैं। इससे हमारे समाज में एक गहरा विभाजन पैदा होगा। इसलिए यह उचित समय है जब मैं अपने हिन्दू दोस्तों से कहना चाहूंगा कि भारत अलग है और इस्लाम वह नहीं है जो आप सोचते हैं।
अकबर भी मुस्लिम थे और उन्होंने लंगर में खाया था। हुमायूं आध्यात्मिक परामर्श लेने के लिए एक सिख गुरु के पास गए थे। औरंगज़ेब के भाई, दारा शिकोह ने वेद और उपनिषद जैसे हिंदू ग्रंथों का उर्दू अनुवाद किया था। हाल ही में एक मुस्लिम व्यक्ति ने एक ज़रूरतमंद व्यक्ति को रक्त दान करने के लिए अपने रमज़ान के उपवास को तोड़ दिया।
मेरे कॉलेज के दिनों में मेरे एक सीनियर ने मुझसे पूछा था कि दुनिया में ऐसा कौन सा मुस्लिम बहुल देश है, जो धर्मनिरपेक्ष है। शायद वह नहीं जानते थे लेकिन इंडोनेशिया दुनिया में सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश होने के बाद भी धर्मनिरपेक्ष है।
कॉलेज में मेरे दो सीनियर मुस्लिम थे और उन्होंने हमारे साथ कभी भी छोटे भाई से कम समझ कर व्यवहार नहीं किया। मेरा मानना है कि हिन्दू-मुस्लिम सभी एक हैं, डर तो राजनेता पैदा करते हैं।
हमारा डर मुख्य रूप से बना हुआ है क्योंकि कुछ राजनेता चाहते हैं कि यह डर उनके वोट बैंक के लिए कायम रहे। अफसोस की बात यह है कि अगर यह तरीका काम करता है तो अन्य दल भी इसे अपनाएंगे और मुसलमान अलग-थलग पड़ जाएंगे।
आपको पता है कि कई गिद्ध मौजूद हैं जो मुसलमानों को निशाना बनाते हैं और उन्हें कट्टरपंथी बनाते हैं फिर वे कुछ अमानवीय हरकत करते हैं, मीडिया उसे प्रसारित करता है जिससे आपका डर बढ़ता जाता है। यह कभी नहीं खत्म होने वाला दुष्चक्र है।
कम-से-कम आप इसे रोकने के लिए कुछ कर सकते हैं। जहां भी यह डर आपको दिखे, इससे निपटने की कोशिश करें। किसी भी हिंदू को किसी मुसलमान से भेदभाव नहीं करने दें। ऐसे लोगों के साथ झगड़ा करने या उन्हें बेवकूफ कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। बस उन्हें समझाने की कोशिश करें कि भारत एक सेक्युलर राष्ट्र है।