भारतीय रेलवे आज भी प्रबंधन की समस्याओं से जूझ रहा है। जहां एक ओर जनरल डिब्बों में ज़रूरत से ज़्यादा टिकट बेचे जाते हैं। वहीं कुछ ट्रेनें ऐसी भी हैं जो खाली चल रही हैं। इनमें से एक है लखनऊ से दिल्ली तक चलने वाली आनंद विहार डबल डेकर ट्रेन (12583)। हालांकि यह एयरकंडिशन्ड (AC) ट्रेन है परंतु लखनऊ से दिल्ली और दिल्ली से लखनऊ रूट पर ट्रेनों के टिकट के लिए जितनी मारामारी है। उस स्थिति में इस ट्रेन में सीटों का खाली होना समझ से परे है।
ट्रेन बेहाल और मीडिया चकल्लस में व्यस्त
मीडिया का छात्र होने के नाते मुझे और भी अधिक आश्चर्य हुआ कि कुछ मीडिया बंधु इस चुनावी मौसम में लोगों की राय लेने के लिए ट्रेन में घूम रहे हैं लेकिन इस ओर उनका ध्यान नहीं गया।
चलिए कोई बात नहीं हमने आज मीडिया को ऐसा ही बना दिया है जो लोगों की समस्याओं को सुलझाने से ज़्यादा चकक्लस करने में व्यस्त है। उसका काम बस हंसी-ठिठोली के लिए वायरल कंटेंट ढूंढना और पैसे कमाना है।
ट्रेन कैंसल होने पर खेद
मैं दिल्ली से लखनऊ मतदान करने इसी ट्रेन (12584) से गया। मुझे आसानी से टिकट मिल गया और वापस आने में भी कोई परेशानी नहीं हुई। वापस आने के लिए पहले मैंने नीलांचल एक्सप्रेस (12875) में टिकट लिया लेकिन ट्रेन एक दिन पहले कैंसिल हो गई।
रेलवे ट्रेन कैंसिल होने पर विकल्प के बारे में बता सकता है लेकिन उसने ट्रेन कैंसिल होने पर खेद जता दिया। उसके बाद मैंने दूसरी ट्रेन में जाने के बारे में सोचा तो फरक्का एक्सप्रेस (13483) में टिकट मिला।
ट्रेन 6 मई की शाम 7:10 की थी लेकिन दिन में ही रेलवे की तरफ से स्टेटस अपडेट्स आने शुरू हुए। ट्रेन मालदा स्टेशन से 5.49 घंटे देरी से चल रही थी। इसका कारण शायद फानी तूफान होगा, इसमें रेलवे का कोई दोष भी नहीं था। ट्रेन के स्टेटस अपडेट का सिलसिला जारी रहा और सुबह ढाई बजे तक फरक्का 10 घंटे 16 मिनट लेट हो चुकी थी।
उपलब्ध सीटों की जानकारी ऑनलाइन मिले
एक बात जो अच्छी हुई वह यह थी कि अब रेलवे ट्रेन लेट होने की स्थिति में स्टेटस की जानकारी लगातार पैसेंजर को उपलब्ध करवाने लगा है। मुझे इस बात का अंदाज़ा पहले हो गया था कि इस ट्रेन से जाना अब उचित नहीं होगा इसलिए मैंने लखनऊ से अगली सुबह चलने वाली डबल डेकर ट्रेन (12583) में सीट आरक्षित कर ली। सुबह ट्रेन में बैठने पर मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि जिस रूट पर टिकट के लिए मारा मारी थी, वहां इस ट्रेन की ज़्यादातर सीटें खाली क्यों है?
रेलवे उपलब्ध सीटों से ज़्यादा टिकट बेचता तो है लेकिन सिर्फ जनरल डिब्बों में सफर करने वाले पैसेंजर के लिए। आरक्षित श्रेणी के लिए उसने अलग व्यवस्था कर रखी है। यह सब बताने के पीछे मेरा इरादा भारतीय रेलवे को यह सुझाव देने का है कि वह ट्रेन रुकने वाले स्टेशनों पर कम-से-कम आधे घंटे या 15 मिनट पहले तक उपलब्ध सीटों की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध करा दे। इससे भारतीय रेलवे को भी कुछ वित्तीय लाभ अवश्य हो जाएगा।