मैं किसी आंकड़े को सामने रख कर किसी भी विषय पर बात करना पसंद नहीं करती क्योंकि आंकड़े महज़ अंदाज़ा होते हैं लेकिन अनुभव खुद के द्वारा भुक्ता गया सच होता है। अगर मैं खुद के पीरियड्स के अनुभव की बात करूं तो एक दिन अचानक सुबह दर्द से करहाने लगी थी।
मेरी योनि से खून आता देख घबरा गई थी मैं। माँ ने मुझे कपड़ा इस्तेमाल करने को देते हुए पीरियड्स के बारे में बताया और जो जानकारी दी, वह बड़ी ही अजीब थी। माँ ने कहा अब तुम बड़ी हो गई हो, अब तुम्हें कुछ चीज़ों का ध्यान रखना होगा।
- इन दिनों तुम पूजा पाठ के कामों से दूर रहोगी।
- अचार को नहीं छुओगी, और
- सबसे बड़ी और अजीब बात कि तुम कन्या भी नहीं रही। यानि मेरा जेंडर चेंज हो गया।
मुझे लगा यह अचानक से कौन सा पाप कर दिया है मैंने जिसने मेरा बचपन ही मुझसे छीन लिया। मुझे भगवान से अगर इन दिनों कुछ मांगना होगा तो?? और अचार तो मुझे इतना पसन्द है कि इसको हाथ तक ना लगाऊं भला क्यों?
यहां तक कहा जाता था कि तुलसी के पौधे के पास मत जाना। अरे! तुलसी का पौधा मुझे देख मुरझा जाएगा क्या? ऐसी कौन सी बीमारी हो गई मुझे??
मेरी सारी दोस्त कंजक है। तो मेरा कंजक होना किसने छीन लिया मुझसे? लगता है एक सुबह ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। एक 12, 13 साल की लड़की के ऊपर इसका कैसा असर हुआ होगा, आप समझ सकते हैं। जैसे एक सुबह किसी काली परी ने उसकी ज़िन्दगी में जादुई छड़ी घुमाकर अंधेरा कर दिया।
इसे मेरी माँ की अज्ञानता कह लीजिए या अंधकार जो उन्हें उनकी माँ से मिली हो। जो चीज़ें उन्हें विरासत में मिली थीं, मुझे वैसा का वैसा ही सब कुछ सौंप दिया गया।
मेरी माँ 8वीं तक पढ़ी हैं। लड़कियों को तो 8वीं और 9वीं क्लास से ही पीरियड्स आने शुरू हो जाते हैं। मेरी माँ ने जिस तरह मुझे उन दिनों संभाला और तमाम तरह की जानकारियां दी, यह तय है कि स्कूल में उन्हें पीरियड्स के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई होगी और मेरे स्कूल में भी मुझे कोई जानकारी नही मिली।
यानि मेरी माँ के 25 साल बाद भी स्कूलों की वही हालत थी, जो सबसे ज़रूरी बात थी कि मुझे सैनिटरी पैड्स की जगह कपड़े का इस्तेमाल करने के लिए दिया गया, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक था मगर मेरी माँ को स्वास्थ्य से ज़्यादा बेबुनियादी बातों का ज्ञान था।
पीरियड्स एक सामान्य क्रिया है, जिससे हर औरत गुज़रती है लेकिन पता नहीं क्यों उसे धर्म से जोड़कर अछूत या रहस्मयी चीज़ समझकर छुपाया जाता है। आज भी हम लड़कियां एक दूसरे के कान में जाकर ज़रूरत पड़ने पर पैड मांगती हैं, सबके सामने में बोलने पर शर्माती हैं।
यह पैड ही एक वजह है जिसके कारण लड़की के बैग में हाथ डालना आदमियों को मना है। जैसे उनके बैग में हाथ डालते ही विस्फोट हो जाएगा। थैंक गॉड वह काली पॉलीथिन वाला चलन तो खत्म हुआ, काली पॉलीथिन में तो पैड को ऐसे डालकर दिया जाता था कि जैसे कोई काला जादू हो।
खैर, हालात अब पहले से काफी बदले हैं। अब पीरियड्स के संदर्भ में किसी पुरुष मित्र के साथ बात करना कोई गोला बारूद जैसी चीज़ नहीं है, धीरे-धीरे ही सही मगर उनकी चुप्पी भी टूट रही है। मौजूदा दौर में पुरुषों का इस विषय पर बात करना आने वाले दिनों में तमाम स्टीरियोटाइप्स को तोड़ने की दिशा में शानदार कदम है।
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था भी इस दिशा में कारगर नहीं है, जहां रिप्रोडक्शन चैप्टर पढ़ाते वक्त शिक्षक स्टूडेंट्स के समक्ष स्वतंत्र विचार से पढ़ा ही नहीं पाते हैं।
माहवारी को लेकर समाज तो सदियों से ऐसा ही था और आने वाले समय में भी ऐसा ही रहेगा, जब तक कि इसे हउआ बनाकर रखा जाएगा और इस पर खुलकर बात नहीं की जाएगी। हमे खुद समझना होगा कि यह वह रक्त है जो उन्हें जीवन देने के लिए तैयार करता हैं, तो भला उसके लिए शर्मिंदा क्यों होना? उन्हें तो इसपर गर्व होना चाहिए।
मैं अगर खुद की बात करूं तो मैं अचार को हाथ भी लगाती हूं और खाती भी हूं और उन दिनों पूजा तो खासतौर पर करती हूं। हां, अभी भी पैड को बाथरूम तक खुले रूप में ले जाने पर थोड़ी डरी हुई हूं। मैं इस अनकंफर्टेबल दलदल से निकलना चाहती हूं।
मैं मानती हूं कि पीरियड्स के संदर्भ में कई चीज़ों पर काम करने की ज़रूरत है ताकि इसके जुड़े स्टीरियोटाइप्स तो टूटे ही और साथ ही साथ नए कानूनों के ज़रिये कोई सकारात्मक पहल भी हो।
- पीरियड्स सिर्फ एक चर्चा का विषय ना रहे इसके लिए ज़रूरी है कि हमारे राजनेता बिना किसी राजनीतिक स्वार्थ के गरीब महिलाओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराएं।
- सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों में पीरियड्स के दौरान महिला को छुट्टी दी जा रही है या नहीं, इसकी समीक्षा भी होनी चाहिए।
- एक घरेलू कामगार महिला या किसी भी असंगठित सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं को भी मासिक धर्म के समय छुट्टी देनी के लिए उचित कानून लागू कराना।
- स्टार्टअप इंडिया के ज़रिये ज़िला और तहसील स्तर पर ग्रामीण महिलाओं द्वारा सैनिटरी पैड्स बनाने वाली कंपनी की शुरुआत करनी होगी।
- स्कूलों में सैनिटरी पैड्स हैं भी या नहीं, इसकी समय-समय पर जांच होनी चाहिए।
- पीरियड्स के दौरान कई दफ्तरों में देखा जाता है कि पुरुष कर्मचारी महिलाओं को यह पूछकर असहज कर देते हैं कि उन्हें क्या हुआ है।