एक बार फिर मोदी सरकार बनाने के आसार मुख्यधारा मीडिया के एक्ज़िट पोल के आंकड़ों में देखने को मिलने लगे थे और अंतत: ऐसा हुआ भी। बीजेपी अगर ताबड़तोड़ चुनावी अभियान के बाद दोबारा सत्ता बनाने में सफल हुई है, तो इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को दिया जाना गलत नहीं होगा।
कई वजहों से जनता के मन में उत्पन्न हुए बीजेपी के खिलाफ संशय के बीज
भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह अंतिम क्षणों में साध्वी और योगी जैसे कट्टरपंथी नेताओं को अपना हमसफर बनाया, उससे बीजेपी की छवि कुछ मतदाताओं के बीच खराब हुई। सबका साथ, सबका विकास के नारे के बाद मुस्लिम मतदाओं के मन में, इन कट्टरपंथी नेताओं के कारण एक सशंय के बीज पड़े, जिसने नरेन्द्र मोदी से कुछ मतदाताओं का मोहभंग किया। इसी तरह गाय को लेकर उपजी कट्टरवादी सोच ने भी कई मतदाताओं को नरेन्द्र मोदी से विमुख किया, जो पिछले चुनाव में उनके मतदाता थे।
बीजेपी के पक्ष में वे मुद्दे जिनके आगे ये संशय छोटे पड़ गएं
विकास के नाम पर राजनीति
इन सभी बातों के साथ उज्जवला, आवास और आयुष्मान भारत ने उन मतदाताओं के मन में नरेन्द्र मोदी के प्रति एक विश्वास पैदा करने का काम किया, जिनके पास विकास की एक छद्म छवि बनी हुई है। इन मतदाताओं को विकास की उस परिभाषा का भान नहीं है कि विकास वास्तव में हर मतदाता के जीवन से जुड़ा वह पहलू है, जिसमें वह अपनी हर अस्मिता के साथ सम्मानपूर्ण जीवन जी सके। इन योजनाओं के छद्म विरोधाभासी फायदे ने कई ज़मीनी मतदाताओं को उनसे विमुख नहीं होने दिया।
उनसे बड़ा कोई नेता नहीं
निसंदेह, नरेन्द्र मोदी इस मायाजाला को भी रचने में कामयाब रहे हैं कि उनके समक्ष विपक्ष में कोई नेता सर्वमान्य रूप से नहीं दिखता है, जो देश को सक्षम नेतृत्व दे सके। इस छवि को बनाए रखने में मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया ने एड़ी चोटी का जोड़ लगाया।
इसी छवि का कमाल रहा है कि कई प्रत्याशी जो उतने कामयाब नहीं थे, उनके समक्ष नरेन्द्र मोदी ही एक प्रत्याशी बनकर मतदाताओं के समक्ष खड़े हो गए।
देश की सुरक्षा और मोदी जी
नरेंद्र मोदी खेती-किसानी, बेरोज़गारी के मद्दे से ऊपर देश की सुरक्षा का मुद्दा मतदाताओं के बीच अहम बनाने में सफल रहे हैं।
विपक्ष की हर छवि को साफ करने का टैलेंट
इसके साथ-साथ विपक्ष के तमाम हमलों के बाद भी नरेन्द्र मोदी अपनी करिश्माई क्षमता के कारण मतदाताओं की नज़र में अपनी छवि एक ईमानदार, नेक और मेहनती प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने में सफल रहे हैं।
“आप मेरे साथ में या मेरे विरोध में” वाली राजनीति
नरेन्द्र मोदी छद्म राष्ट्रवाद के तर्क से देश को दो हिस्सों में बांटने में कामयाब रहे हैं कि आप मेरे साथ में या मेरे विरोध में। अगर आप मेरे विरोध में हैं तो राष्ट्र-विरोध में खड़े हैं, इस तर्क को भुनाने में मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया ने आग में घी का काम किया है, जो मतदाताओं के अंदर “अंडरकरंट” मौजूद रहा और इसी से चुनावी नतीजे प्रभावित हुए हैं।
बहरहाल, अपनी दूसरी पारी में अब नरेन्द्र मोदी जिस भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं, वो पिछले चुनाव जैसा अब नहीं है। देश आर्थिक मोर्चे पर अपार चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके बारे में अरुण जेटली कई ब्लॉग लिख चुके हैं। कई कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं, कई कगार पर खड़ी हैं। भारत को तेल के लिए अब संघर्ष करना पड़ेगा, क्योंकि अमेरिका और चीन ने अपने व्यापार युद्ध में भारत के विदेशी कारोबार को खतरा पैदा कर चुके हैं।
नई चुनौतियों और भक्त कार्यकताओं के उन्मादी व्यवहार के कारण नरेन्द्र मोदी मतदाताओं के मन में कब तक स्थायी रूप से सर्वमान्य नेता रह पाते हैं, यह एक यक्ष प्रश्न है। इन चुनौतियों के साथ अठारवीं लोकसभा का नेतृत्व एक कांटों से भरा ताज है, जिसको पहनना नरेन्द्र मोदी की मजबूरी भी है, क्योंकि यह चुनाव उनकी पार्टी नहीं, वह अकेले लड़ रहे थे।