डॉ. पायल की मौत कई मामलों में रोहित वेमुला की मौत याद दिलाती है। बस अंतर यह है कि वहां जाति के नाम पर संस्थागत भेदभाव था और पायल की मौत के ज़िम्मेदार उसके ही कुछ सहपाठी डॉक्टर थे।
कुछ ऐसे डॉक्टर जो ज़ाहिर तौर पर खासे पढ़े लिखे होंगे। ढेरों डिग्रियां उनके पास होंगी लेकिन जिन्हें नहीं पता कि खुद उन्हें कितनी गंभीर मानसिक बीमारी है। वह बीमारी जो उच्च जाति में पैदा होने, उसके दर्शन के साथ जीने और बड़े होने से आती है।
जो यह मानती है कि आरक्षण कब का खत्म हो जाना चाहिए, आरक्षण दरअसल दोयम दर्जे़ के डॉक्टर, इंजीनयर, शिक्षक और प्रोफेशनल तैयार करता है। जो मंडल कमिशन के दौर से यह मानता आया है कि आरक्षण अभिशाप है।
जो यह सोचने को तैयार नहीं कि सरकारी कॉलेजों में एडमिशन और सरकारी नौकरी के अवसर लगातर सिकुड़ते जा रहे हैं। ऐसे में दिक्कत आरक्षण नहीं, अवसरों के कम होने की है।
खैर, मसला सिर्फ पायल के कुछ सहपाठी डॉक्टरों की ही सोच का नहीं है। ऐसे तमाम लोग हमें अपने घर, परिवार, दोस्तों के बीच और स्कूल- कॉलेजों के सहपाठियों के रूप में रोज़ मिलते हैं।
आरक्षण के सवाल पर लोगों की तंग मानसिकता
दरअसल, एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो आरक्षण के सवाल पर इसी नज़रिये के साथ ‘Nation First’ का दम सबसे ज़्यादा भरता है, जो भारतीय पासपोर्ट के बढ़ते ‘वजन’ से खासा खुश होता है। जो जनसंख्या नियंत्रण के लिए ‘बेहद सख्त’ कदम उठाए जाने की वकालत करता है और ‘अंदर घुस कर मारने’ की बात सुनकर छाती फुला लेता है।
इस दौर में जातिवाद को लेकर तंग मानसिकता इस कदर हावी हो गई है कि लोग यहां तक कहते हैं, “आरक्षण के सहारे डॉक्टर बनने वाले से इलाज कराने से बचें या फिर एक दलित डॉक्टर से डिलिवरी कराने से बचें क्योंकि एक तो वह नाकाबिल हो सकती है और दूसरा एक दलित के हाथ से नवजात अपवित्र हो सकता है।” ऐसे में आप ही सोचिए कि देश महान कैसे बनेगा?
जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी
‘सबका साथ और सबका विकास’ कैसे होगा? जातियों को जोड़कर सत्ता का मैनजमेंट राजनीतिक दल करते रहेंगे मगर सवाल यह है कि जाति व्यवस्था के खिलाफ असल लड़ाई कैसे होगी?
यह ज़िम्मेदारी उन सभी की है जो देश के संविधान में यकीन रखते हैं, जो मज़बूत भारत के साथ ही साथ एक न्याय प्रिय भारत भी देखना चाहते हैं। मज़बूती सिर्फ अंतरिक्ष में मिसाइल मार गिराने से या जीडीपी बढ़ने और सेंसेक्स की उछाल से ही नहीं आती।
घर की मज़बूती के लिए ज़रूरी है उसमें रहने वाले लोगों के बीच परस्पर प्यार, भरोसा और सामाजिक व आर्थिक अवसरों में किसी भी धर्म, जाति और मजहब के लोगों को बराबरी का दर्ज़ा मिले।