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“मोदी जी, उन उम्मीदों का क्या जो 2014 में जनता ने आपसे किया था?”

जु़ल्‍मत को जिया, सरसर को सबा, बन्‍दे को खुदा क्‍या लिखना

पत्थर को गुहर, दीवार को दर, कर्गस को हुमा क्या लिखना

ऐ मेरे वतन के फनकारों ज़ुल्‍मत पे ना अपना फन वारो

ये महल सराओं के वासी कातिल हैं सभी अपने यारों।

ऊपर की ये पंक्तियां पाकिस्तान के बगावती शायर हबीब जालिब ने लिखी है। इन पंक्तियों को हर उस दौर में दोहराते रहना चाहिए जब सरकार दमनकारी नीतियों को अपनाने लगे और लोकतंत्र को खत्म करने का दुस्साहस करे।

चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने माना कि प्रधानमंत्री ने नियमों का उल्लघंन किया है-

फोटो सोर्स- Getty

क्या प्रधानमंत्री खुद को लोकतंत्र से ऊपर समझते हैं? अभी हाल ही में प्रधानमंत्री को उनके महाराष्ट्र में दिए गए एक बयान के लिए चुनाव आयोग ने क्लीन चिट दे दिया है। जबकि इसी चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने इसका विरोध किया और चुनाव आयोग के संविधान का हवाला देते हुए यह कहा कि प्रधानमंत्री सैनिकों के नाम पर वोट मांग कर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।

इसके बावजूद भी चुनाव आयोग ने कहा कि उन्होंने अपनी पार्टी के नाम का इस्तेमाल नहीं किया, इसलिए उन पर उल्लंघन का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। यह तो हुआ पहला मामला।

अब दूसरे मामले पर गौर कीजिए। हाल ही में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सुरक्षाबल के 15 कमांडो नक्सलियों द्वारा किए गए एक धमाके में शहीद हो गए। सबसे पहले तो उन शहीद जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि जो सरकार की नाकाम नीतियों की बलि चढ़ गए। अब करते हैं प्रधानमंत्री की बात, जो अपनी एक चुनावी रैली में उस वक्त यह कहते हैं कि उनके पांच साल के कार्यकाल में कोई बड़े हमले नहीं हुए हैं।

प्रधानमंत्री से यह पूछा जाना चाहिए कि

अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री जी आपकी आलोचना तब तक होनी चाहिए जब तक कि आपको अपनी इस कोरी बयानबाज़ी पर शर्मिंदगी महसूस ना होने लगे।

प्रधानमंत्री महाराष्ट्र में शहीदों के नाम पर वोट मांगते हैं, श्रीलंका में हुए आतंकी हमले में मारे गए लोगों के नाम पर वोट मांगते हैं। क्या ये सब एक देश के प्रधानमंत्री को शोभा देता है?

स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए प्रखरता से प्रशंसा हो और प्रमुखता से आलोचना-

Narendra Modi
फोटो सोर्स- Getty

प्रधानमंत्री जी, मैं आपके संघर्ष का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। जिस तरीके से आपने संघर्ष किया, जिस रास्ते पर चलकर आप देश की शीर्ष सत्ता पर काबिज़ हुए वह काबिल-ए-तारीफ है। यही कारण है कि गरीबों ने आपको अपना मसीहा मान लिया। मध्यमवर्गीय लोगों ने आपको अपना नेता मान लिया। आपने एक परिवार के सत्तारूपी अहंकार और उस परिवारवादी सोच का दमन कर दिया जो पिछले 60 वर्षों से चली आ रही थी।

यूएन द्वारा मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित होने पर आपकी सरकार व काँग्रेस की पूर्व सरकार को बधाई और धन्यवाद। धन्यवाद इसलिए क्योंकि यह आपके कार्यकाल में सम्पन्न हुआ और काँग्रेस को बधाई इसलिए क्योंकि इस प्रस्ताव की नींव उस सरकार द्वारा ही रखी गई थी। इन सब बातों के लिए आपकी प्रखरता से तारीफ होनी चाहिए।

इन सबके बावजूद मैं आपका उतना ही बड़ा आलोचक भी हूं क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता के सही कामों पर जितनी प्रखरता से प्रशंसा होनी चाहिए उतनी ही प्रमुखता से गलत नीतियों पर उसका विरोध भी होना चाहिए। आपने भले ही संघर्ष किया हो लेकिन आप उस संघर्ष का या तो मोल जानते ही नहीं हैं या जानते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं।

क्या आपको इस बात का एहसास है कि आपने सरकारी संस्थाओं की क्या स्थिति बना दी है? आज चुनाव आयोग से लेकर पुलिस प्रशासन तक किसी संस्था का काम निष्पक्ष नहीं रह गया है।

चुनावों के दौर में आपने राष्ट्र के मुद्दे आतंकवाद की ओर मोड़ दिए। राष्ट्र के मुद्दे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा व्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, रोज़गार, कानून व्यवस्था, इन सब पर आधारित होने चाहिए थे। इसके विपरीत राष्ट्र के मुद्दे हिन्दू-मुसलमान और पाकिस्तान पर आधारित कर दिए गए।

प्रधानमंत्री महोदय अगर आपको यही सब करना है तो आप इस प्रधानमंत्री पद को त्याग दीजिए क्योंकि यह पद देश का भविष्य सुनिश्चित करने के लिए है, देश की जनता को गुमराह करने और उनके बीच नफरत फैलाने के लिए नहीं। क्या आपकी सरकार ने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि देश में सरकारी अस्पतालों की क्या स्थिति है? क्या आपने कभी यह सोचने का प्रयास किया कि देश में सरकारी स्कूलों की व्यवस्था इतनी बद्तर क्यों है?

जब आपसे ये सब सवाल पूछे जाते हैं तो आप पिछले 65 सालों का हवाला दे देते हैं। अगर आप भी पिछली सरकारों की तरह काम करेंगे तो उनमें और आप में क्या अंतर रह जाएगा? फिर जनता आपको क्यों चुने जब आप उनसे अलग ही नहीं हैं? अगर आप ऐसे ही सवालों को टालने के लिए पिछले 65 सालों की दुहाई देते रहेंगे तो आपको प्रधानमंत्री पद की कुर्सी छोड़ देनी चाहिए।

उन उम्मीदों का क्या जो आपसे 2014 में जनता ने किया था?

चाहे वह 200 स्मार्ट सिटी का वादा हो या हर साल 2 करोड़ रोज़गार का, मोदी सरकार हर वादा निभाने में विफल रही है। जिन युवाओं से हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वादा किया गया वही युवा दिल्ली में एसएससी घोटाले पर इंसाफ मांगने के लिए लाठियां खा रहे थे।

प्रधानमंत्री जी, उन सब बातों पर आपसे चीख-चीखकर सवाल पूछे जाएंगे जिनका आपने वादा किया था और आपको जवाब देना पड़ेगा। यही लोकतंत्र की नियति है और यही लोकतंत्र का गौरव है। आपको जवाब देना होगा क्योंकि इस देश का इतिहास रहा है कि जब भी सरकारों ने जनता के सवालों की अनदेखी की है तब जनता ने क्रांति का रुख अख्तियार किया है।

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