सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें प्रियंका गॉंधी हैं और उनके सामने हैं कोई 20-25 बच्चे। ये बच्चे ज़ोर-ज़ोर से जोश के साथ-साथ ‘चौकीदार चोर है के नारे’ लगा रहे हैं और प्रियंका गॉंधी चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ उनका हौसला-अफज़ाई करते हुई दिख रही हैं।
इसके बाद बच्चे जोश-जोश में मोदी को गाली देने वाला नारा लगाने लगते हैं, जिसपर प्रियंका गॉंधी बच्चों को मना करते हुए कहती हैं कि ऐसा नहीं बोलो।
लेकिन यहां बात यह है कि चौकीदार चोर है वाला नारा भी बच्चों से लगवाना क्या सही है? क्या एक बड़ी नेता होने की खातिर उनका फर्ज़ नहीं बनता था कि वो बच्चों से सवाल करे कि आखिर वो बीच दोपहरी विद्यालय ना जाकर यहां राजनीतिक कार्यक्रम में क्या कर रहे हैं? जिन बच्चों को राजनीति का कहकहरा नहीं पता वे राजनीतिक बयानबाज़ी कर रहे थे, उसपर प्रियंका गॉंधी ने आपत्ति क्यों नहीं जताई?
सामान्यत: गाँव-मोहल्ले में भी जब कोई बच्चा अपशब्दों का प्रयोग करता है, तो बड़े उन्हें डांट लगाते हुए पूछते हैं कि आखिर ये बातें उन्होंने कहां से सीखी, ताकि उस स्त्रोत या व्यक्ति को इंगित किया जा सके ताकि बच्चों को ऐसे लोगों से दूर रखा जाए, वरना वो भटक सकते हैं। प्रियंका गॉंधी ने लेकिन ऐसा नहीं किया, उन्होंने इन नारों को हल्के-फुल्के लहज़े में मना किया और वहां से निकल पड़ी। क्या उनका फर्ज़ नहीं था कि वो ऐसे कार्यकर्ता के प्रति कार्रवाई करें, जिन्होंने बच्चों को ऐसे नारे सिखाए?
कड़वी सच्चाई यही है कि इस तरह की घटनाओं के लिए हम स्वयं ज़िम्मेदार हैं। चुनाव में हम जिस विवेकहीनता का परिचय देते हैं, उसका नतीजा है कि हमारे बच्चों को उनकी सज़ा मिलती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर क्षेत्र के नेताओं के बच्चे बड़े स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण करते हैं, अपना भविष्य संवारते हैं और हम चुनाव के वक्त अपने बच्चों के बेहतर भविष्य को ना देख, हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, जाति और नेता को देख मत देते हैं।
शिक्षा और बच्चे चुनावी एजेंडे से हमेशा नदारद रहते हैं। सरकार किसी की भी हो शिक्षा व्यवस्था का सबने बेड़ा गर्क किया है। बच्चों के पास किताबें नहीं हैं, शिक्षकों की घोर कमी है लेकिन ना उनकी तरफ से, ना हमारी तरफ से इसको लेकर बेचैनी है। नेताओं का तो हम समझ सकते हैं कि हमारे बच्चों का अशिक्षित रहना उनके हक में है, ताकि वो आसानी से उन्हें बरगला सकते हैं, जैसे प्रियंका गॉंधी के इस वीडियो में स्पष्ट नज़र आता है।
इन बच्चों को तो पता भी नहीं होगा कि आखिर वो ये नारा क्यों लगा रहे हैं? किसके लिए लगा रहे हैं? लेकिन हमारा क्या? हम आखिर अपने बच्चों के लिए क्या कर रहे हैं? यही कि वो जोश के साथ राजनीतिक बयानबाज़ी करे। बड़े बुद्धिजीवी वर्ग चुप हैं, शायद वो इसे छोटी-मोटी घटना मानते हो लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय लोकतंत्र की सबसे दुखद घटनाओं में से यह एक है।
राजनीतिक सोच विचारधाराएं अलग हो सकती हैं किन्तु अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए बच्चों को दिग्भ्रमित करना कही से भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। ना केवल कॉंग्रेस पार्टी को अपितु प्रियंका गॉंधी को भी इस पर माफी मांगनी चाहिए।