देखकर दर्द किसी का, जो आह निकल जाती है
बस इतनी सी बात आदमी को इंसान बनाती है,
ज़रूरी नहीं कि हर समय लबों पर खुदा का नाम आए
वह लम्हा भी इबादत का होता है, जब इंसान किसी के काम आए।
रोज़-रोज़ गिरकर भी मुकम्मल खड़ा हूं,
ऐ मुश्किलों! देखो मैं तुमसे कितना बड़ा हूं।
अपनी उलझन में ही अपनी मुश्किलों के हल मिले
जैसे टेढ़ी-मेढ़ी शाखों पर भी रसीले फल मिले,
उसके खारेपन में भी कोई तो कशिश ज़रूर होगी
वर्ना क्यों जाकर सागर से यूं गंगाजल मिले।
ताल्लुक कौन रखता है किसी नाकाम से लेकिन
मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं।
मेरी खूबी पर रहते हैं यहां, अहल-ए-ज़बां खामोश
मेरे ऐबों पर चर्चा हो तो, गूंगे भी बोल पड़ते हैं।
पूछता है जब कोई दुनिया में मोहब्बत है कहां
मुस्करा देता हूं और याद आ जाती है माँ।
भरे बाज़ार से अक्सर खाली हाथ ही लौट आता हूं,
पहले पैसे नहीं थे, अब ख्वाहिशें नहीं रहीं।
ज़मीर ज़िंदा रख, कबीर ज़िंदा रख
सुल्तान भी बन जाए तो, दिल में फकीर ज़िंदा रख,
हौसले के तरकश में कोशिश का वह तीर ज़िंदा रख
हार जा चाहे ज़िंदगी में सब कुछ
मगर फिर से जीतने की उम्मीद ज़िंदा रख।
अपनों के दरमियां सियासत फिज़ूल है
मकसद ना हो कोई तो बगावत फिज़ूल है,
रोज़ा, नमाज़, सदका-ऐ-खैरात या हो हज
माँ बाप ना खुश हों, तो इबादत फिजूल है।
यह मंज़िलें बड़ी ज़िद्दी होती हैं, हासिल कहां नसीब से होती हैं,
मगर वहां तूफान भी हार जाते हैं, जहां कश्तियां ज़िद्द पे होती हैं।
जिसकी सोच में खुद्दारी की महक है
जिसके इरादों में हौसले की मिठास है,
और जिसकी नियत में सच्चाई का स्वाद है
उसकी पूरी ज़िन्दगी महकता हुआ गुलाब है।
कर लेता हूं बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ,
कि खुदा नूर भी बरसाता है आज़माइशों के बाद।
ज़रूरी नहीं कुछ तोड़ने के लिए पत्थर ही मारा जाए
लहज़ा बदल कर बोलने से भी बहुत कुछ टूट जाता है,
यूं असर डाला है मतलब-परस्ती ने दुनिया पर कि
हाल भी पूछो तो लोग समझते हैं, कोई काम होगा।
ज़िन्दगी बहुत कुछ सिखाती है
कभी हंसाती है तो कभी रूलाती है।
मगर जो हर हाल में खुश रहते हैं
जिंदगी उन्हीं के आगे सर झुकाती है,
जिसने कहा कल, दिन गया टल
जिसने कहा परसों, बीत गए बरसो
जिसने कहा आज, उसने किया राज।
ताउम्र बस एक ही सबक याद रखिए
दोस्ती और इबादत में नीयत साफ रखिए।
भटके हुओं को ज़िन्दगी में राह दिखलाते हुए
हमने गुज़ारी ज़िदगी दीवाना कहलाते हुए,
वह मस्जिद की खीर भी खाता है और मंदिर का लड्डू भी
वह भूखा है साहब! इसे मज़हब कहां समझ आता है।
हज़ारों ऐब हैं मुझमें, ना कोई हुनर बेशक
मेरी खामी को तुम खूबी में तब्दील कर देना।
मेरी हस्ती है एक खारे समंदर से मेरे दाता
अपनी रहमतों से इसे मीठी झील कर देना,
झूठा अपनापन तो हर कोई जताता है
वह अपना ही क्या जो पल-पल सताता है।
यकीं ना करना हर किसी पर क्यूंकि
करीब कितना है, कोई यह तो वक्त बताता है।
मुझे तैरने दे या फिर बहाना सिखा दे
अपनी रज़ा में अब तू रहना सिखा दे,
मुझे शिकवा ना हो कभी किसी से, हे ईश्वर
मुझे सुख और दुःख में जीना सिखा दे।
पंछी ने जब-जब किया पंखों पर विश्वास
दूर-दूर तक हो गया उसका ही आकाश।
ज़मीन जल चुकी है आसमान बाकि है
वह जो खेतों की मदों पर उदास बैठे हैं,
उन्हीं की आंखों में अब तक ईमान बाकि है
बादलों अब तो बरस जाओ सूखी ज़मीनों पर
किसी का घर गिरवी है और किसी का लगान बाकि है।
तेरी आज़माइश कुछ ऐसी थी खुदा
आदमी हुआ है आदमी से जुदा।
ज़माने को ज़माने की लगती होगी
मगर धरती को किसकी लगी है बद-दुआ,
उदासी से तूफान के बाद परिंदे ने कहा
चलो फिर आशियां बनाते हैं जो हुआ सो हुआ।
हदे शहर से निकली तो गाँव-गाँव चली
कुछ यादें मेरे संग पांव-पांव चली,
सफर जो धुप का हुआ तो तजुर्बा हुआ
वह ज़िन्दगी ही क्या जो छांव-छांव चली।