‘माँ’ आखिर क्यों
हर दु:ख हर संकट में तुने मेरा साथ निभाया है
फिर भी मैंने हर छोटी बात पर तुझ पर गुस्सा दिखाया है।
आखिर क्यों मुझे छाव में रखकर
तुने धूप में खुद को जलाया है,
‘माँ’ आखिर क्यों
हर दु:ख हर संकट में तुने मेरा साथ निभाया है।
खुद को भूखा रखकर तुने
कितनी दफा मुझे मेरे पसंद का खाना खिलाया
एक नन्ही सी जान को अपने रक्त से सींच कर,
इस मुकाम पर लाया
‘माँ’ आखिर क्यों।
हर संकट हर दु:ख में तुने मेरा साथ निभाया
होस्टल की हर शाम याद दिलाती है मुझे,
तेरे हाथ की बनी चाय जो हर शाम मैं मज़े से पिया करता था
विचलित होकर मन यही सोचा करता है
आखिर क्यों मैं तेरे साथ होकर तेरी कदर नहीं करता था।
जब मैं बीमार पड़ता तु मेरे लिए रोती थी
चोट मुझे लगती मगर दर्द में तु होती थी,
पीछे मुड़ कर देखता हूं तो यही लगता है
कि हर कदम मैंने तुझे अपने साथ पाया है।
मैंने तो हर पल तुझे निराशा का सामना करवाया है
फिर आखिर क्यों
हर दु:ख हर संकट में तुने मेरा साथ निभाया है।
सच तो यह है कि मैं डरता हूं तुझे खोने से
डरता हूं उस दिन से जब तु हमेशा के लिए मुझसे दूर हो जाएगी।
कौन रोकेगा मुझे रोने से
कौन मुझे तुम्हारी खाना खिलाएगी?
अब जवाब मिल चुका है मुझे
क्यों तुने हमेशा मेरा साथ निभाया है।
तु माँ है मेरी
और धरती पर भगवान का अवतार माँ ने ही तो पाया है।